लक्ष्मीकांत शर्मा की रिपोर्ट
राजकीय शाकम्भर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सांभरलेक में राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) की इकाई के तत्त्वावधान में स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अन्तर्गत "इण्डिया से भारत की ओर" विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मां शारदे की प्रतिमा के माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन कर किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. सुरेश कुमार शर्मा ने भारतीय साहित्य और शास्त्रों की चर्चा करते हुए कहा कि पुराणों और स्मृतिग्रन्थों में भारत का नाम भारतवर्ष, आर्यावर्त्त, ब्रह्मावर्त्त आदि मिलते हैं । आजकल हिन्दुस्तान नाम भी प्रचलन में आ रहा है, फिर ये इण्डिया की संकल्पना कहां से आई । इस सन्दर्भ में उन्होंने बताया कि अंग्रेज जो भारत में केवल व्यापार के उद्देश्य से आये थे, धीरे-धीरे उन्होंने यहां अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये । यहां की शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता पर कुठाराघात किया और देखते ही देखते अपना निरंकुश साम्राज्य स्थापित कर लिया । उन्होंने ही भारत को इण्डिया बनाने की कोशिश की, लेकिन हम उनकी इस धारणा को सफल नहीं होने देगें । हमारी सभ्यता और संस्कृति सनातन है, सर्वदा वैभवसम्पन्न और समृद्ध रही है, भविष्य में भी हम इसे अक्षुण्ण बनाए रखेंगे । हम भारतीय थे, भारतीय हैं और भारतीय ही रहेंगे । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे रुक्टा (राष्ट्रिय) के अध्यक्ष डाॅ. दीपक कुमार शर्मा ने भारतीय संस्कृति के आंतरिक और बाह्य स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा कि वास्तविक अर्थ में स्वतन्त्रता वह होती है जो अपने स्व को अभिव्यक्त करती हो । आज हमें हमारी सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प लेना है। भविष्य में जैसा भारत हम देखना चाहते हैं, उसका बीजरोपण तथा पौध-संवर्धन आज करना होगा ।
कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन प्रो. रुबेन सरन माथुर ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के संकाय सदस्य और विद्यार्थी उपस्थित रहे।