जयपुर :- राजस्थान कांग्रेस के नए प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा 27 दिसंबर को जयपुर आएंगे। राजस्थान का प्रभारी बनने के बाद रंधावा का यह पहला आधिकारिक दौरा होगा। रंधावा 27 दिसंबर की रात को जयपुर पहुंचेंगे। इसके बाद 28 और 29 दिसंबर को 2 दिन जयपुर में ही रहेंगे। इस दौरान वह पहली बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक लेंगे। इसके लिए रंधावा ने पीसीसी को भी निर्देशित कर दिया है।
संगठन को मजबूत करना प्राथमिकता
रंधावा ने अपने दौरे को लेकर कहा कि वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक लेंगे। इसके अलावा अन्य छोटे-बड़े लीडर्स के साथ भी मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि इस दौरे को लेकर उनका पूरा फोकस कांग्रेस संगठन पर होगा। रंधावा ने कहा कि कार्यक्रम बना लिया गया है। संगठन को मजबूत करना मेरी प्राथमिकता है और इस दौरे पर उसे लेकर ही सारी बातचीत होगी।
कार्यकर्ता को कॉन्फिडेंस में लेना जरूरी : रंधावा
रंधावा ने भास्कर से बातचीत में कहा कि यात्रा के दौरान मेरी जितने भी छोटे-बड़े लीडर्स से बातचीत हुई, उसमें यह बात निकलकर आई कि जो पार्टी के कार्यकर्ता है, उसको कॉन्फिडेंस में ज्यादा लेना पड़ेगा। वो हमारी बैकबॉन है। वो मजबूत है, उसको और मजबूत करेंगे। उनका फोकस होगा कि राजस्थान में संगठन के तौर पर जो कांग्रेस कमजोर हुई है, उसे एक बार फिर मजबूत कर सकें।
माकन के इस्तीफे के बाद रंधावा को दी थी जिम्मेदारी
राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रभारी अजय माकन के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने रंधावा को राजस्थान का प्रभारी घोषित किया था। राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 5 दिसंबर को उनकी नियुक्ति की गई थी। उनके साथ हरियाणा और छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी बदले गए थे। इससे पहले अजय माकन ने 25 सितंबर की घटना से आहत होकर दोषियों पर कार्रवाई नहीं होने के चलते इस्तीफा दे दिया था। रंधावा को प्रभारी बनाए जाने के बाद वे भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल हुए थे। इस दौरान राहुल गांधी से भी उनकी काफी चर्चाएं हुई थी।
रंधावा के सामने राजस्थान में 4 चुनौतियों
सुखजिंदर सिंह रंधावा के राजस्थान कांग्रेस का प्रभारी बनने के बाद उनके सामने 4 बड़ी चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों से रंधावा को जूझना होगा।
1. अनुशासनहीनता के दोषी नेताओं पर कार्रवाई
25 सितंबर को हुई इस्तीफा पॉलिटिक्स के बाद राजस्थान के मंत्री शांति धारीवाल, डॉ. महेश जोशी और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को कांग्रेस ने अनुशासनहीनता का नोटिस दिया था। इस मसले पर अब तक कांग्रेस ने कोई निर्णय नहीं लिया है। इस पर जो भी निर्णय होगा, वह राजस्थान की राजनीति को प्रभावित करेगा। ऐसे में इस मसले का निर्णय कराकर माहौल को बनाए रखना रंधावा के लिए चुनौती होगी।
गहलोत-पायलट का सत्ता संघर्ष
राजस्थान की सबसे बड़ी चुनौती सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच आपसी खींचतान की है। इस खींचतान को 2 प्रभारी दूर नहीं कर पाए। पहले अविनाश पांडे और फिर अजय माकन इस विवाद को सुलझाने के बजाय इसी में उलझ गए। इसके चलते जहां पहले पांडे को हटाया गया, फिर माकन ने भी इस्तीफा दे दिया। अब रंधावा इस मसले को कैसे हैंडल करते हैं ये उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।
बिखरे हुए संगठन को खड़ा करना
आपसी खींचतान और गुटबाजी के चलते राजस्थान में कांग्रेस का संगठन पूरी तरह से बिखर चुका है। ज्यादातर जिलों में नए अध्यक्ष और कार्यकारिणियां नहीं बनी है। प्रदेश में भी कार्यकारिणी अधूरी है। इसके अलावा निचले स्तर तक कार्यकर्ता और नेता गुटबाजी के चलते बंटे हुए हैं। ऐसे में उनको एकजुट कर संगठन को फिर से खड़ा करना भी रंधावा के लिए चुनौती होगी।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बढ़त दिलाना
रंधावा हाल ही में प्रभारी बने हैं। कुछ बेहद अप्रत्याशित नहीं होता है तो वो ही 2023 के विधानसभा चुनाव तक राजस्थान के प्रभारी रहेंगे। ऐसे में उनके सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि राजस्थान में कैसे सरकार को रिपीट कर पाए। इसके अलावा यह भी बड़ी चुनौती होगी कि गुटबाजी, एंटी इनकम्बेंसी और हर 5 साल में सरकार बदलने की परंपरा के बीच कांग्रेस को कैसे बढ़त दिलाई जाए। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर कांग्रेस आपसी खींचतान को खत्म करके लड़े तो बीजेपी की गुटबाजी का फायदा उठा सकती है। ऐसे में रंधावा इसमें कितने सफल होते हैं, यह भी देखने वाली बात होगी।