नेपाल फिर सियासी संकट की ओर:PM प्रचंड का कतर दौरा रद्द, सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी ने अलायंस छोड़ा; 9 मार्च को राष्ट्रपति चुनाव

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काठमांडू:-नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने 3 मार्च को होेने वाला कतर दौरा रद्द कर दिया है। उन्होंने यह फैसला 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के पहले गठबंधन सरकार में आई दरार के चलते किया है।

3 मार्च से कतर की राजधानी दोहा में सबसे कम विकसित देशों की पांचवीं कॉन्फ्रेंस होने वाली थी। इसमें प्रचंड का हिस्सा लेना काफी जरूरी था, लेकिन देश की बजाए उन्होंने सियासत को तरजीह दी और कतर दौरा रद्द कर दिया।

सोमवार को गठबंधन सरकार में शामिल नेपाल यूनिफाइड मार्कसिस्ट लेननिस्ट (CPN-UML) ने अलायंस छोड़ने का ऐलान किया। इसके चीफ पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली हैं।

पहले जानिए ताजा विवाद की जड़ क्या है

  • नेपाल में दो महीने पहले प्रचंड की अगुआई में गठबंधन सरकार बनी थी। तय ये हुआ था कि शुरुआती ढाई साल प्रचंड प्रधानमंत्री रहेंगे और इसके बाद CPN-UML के मुखिया केपी शर्मा ओली कुर्सी संभालेंगे।
  • दो महीने तक सरकार ठीक-ठाक चली। 9 मार्च को राष्ट्रपति चुनाव होना है, क्योंकि वर्तमान राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी का कार्यकाल खत्म हो रहा है। प्रचंड को गठबंधन सरकार के प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट का समर्थन करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने सबको हैरान कर दिया।
  • दो दिन पहले प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि वो विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस (NC) के कैंडिडेट रामचंद्र पौडयाल का समर्थन करेंगे। प्रचंड के इस कदम से ओली की पार्टी भड़क गई।
  • दूसरी तरफ, नेपाली कांग्रेस ने पौडयाल के दावे को मजबूती देने के लिए 8 पार्टियों के नेताओं की टास्क फोर्स बना दी। इससे भी बड़ी बात यह हुई कि इस टास्क फोर्स की मीटिंग प्रचंड की अगुआई में उनके ऑफिशियल रेसिडेंस (बालुवाटर) में हुई। ओली और बिफर गए।
  • इन पार्टियों के सांसदों से कहा गया कि वो प्रेसिडेंट इलेक्शन की वोटिंग से 2 दिन पहले यानी 7 मार्च को काठमांडू पहुंच जाएं। प्रचंड ने NC प्रेसिडेंट शेर बहादुर देउबा के साथ सीक्रेट मीटिंग भी की।
  • ‘काठमांडू पोस्ट’ के मुताबिक- CPN-UML के गठबंधन छोड़ने से फिलहाल, प्रचंड सरकार पर असर नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि CPN-UML के पास 79 सांसद थे। उसके अलायंस छोड़ने के बाद नेपाली कांग्रेस (89) गठबंधन में शामिल हो जाएगी।
  • इसके पीछे सौदेबाजी भी साफ है। नेपाली कांग्रेस के रामचंद्र पौडयाल राष्ट्रपति बन जाएंगे। दूसरी तरफ, प्रचंड को शायद ढाई साल बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी न छोड़नी पड़े। इसकी वजह यह है कि CPN-UML और ओली इस शर्त पर सरकार और गठबंधन का हिस्सा बने थे कि पहले ढाई साल प्रचंड कुर्सी पर रहेंगे और इसके बाद ओली। अब चूंकि ओली ने गठबंधन छोड़ दिया है तो प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना फिलहाल टूट गया है।
  • ओली की पार्टी का आरोप है कि प्रचंड ने उसे गठबंधन छोड़ने पर मजबूर किया। वो मंत्रियों पर इस्तीफे देने का दबाव बना रहे थे। हैरानी की बात यह है कि प्रचंड ने फॉरेन मिनिस्टर बिमला राय पौडयाल को काठमांडू एयरपोर्ट से वापस बुला लिया था। वो एक कॉन्फ्रेंस के लिए जिनेवा जा रहीं थीं।

अभी उलझेगा मामला
68 साल के प्रचंड पिछले साल 26 दिसंबर को प्रधानमंत्री बने थे। तब उन्होंने नेपाली कांग्रेस के साथ प्री-पोल अलायंस तोड़कर उसे धोखा दिया था और ओली के साथ चले गए थे। अब ओली को धोखा दिया और नेपाली कांग्रेस के साथ चल दिए। दोनों ही बार अपने सियासी हित देखे।

खास बात यह है कि पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव के बाद नेपाली कांग्रेस ने साफ कर दिया था कि वो प्रचंड को राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बनने देगी। जब प्रचंड नहीं माने तो नेपाली कांग्रेस ने गठबंधन छोड़कर ओली को प्रचंड से हाथ मिलाने का मौका दे दिया।

अब लेन-देन का फॉर्मूला बिल्कुल साफ है। नेपाली कांग्रेस का कैंडिडेट राष्ट्रपति बनेगा और प्रचंड प्रधानमंत्री बने रहेंगे। लेकिन, नेपाली कांग्रेस और प्रचंड के रिश्ते कभी लंबे नहीं चले। लिहाजा इस बार यह साथ कितना लंबा होगा। इंतजार करना होगा।

उप-प्रधानमंत्री राजेंद्र सिंह लिंगदेन समेत राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) के 4 मंत्री पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।

शिक्षक से राजशाही को खत्म करने वाला चेहरा रहे प्रचंड

  • 90 के दशक में नेपाल से राजशाही को खत्म करने वाले चेहरों में सबसे बड़ा नाम प्रचंड का ही रहा है। 25 साल तक भूमिगत रहने वाले पेशे से शिक्षक 68 साल के प्रचंड के नेतृत्व में दस साल का सशस्त्र संघर्ष चलाया गया। और ये संघर्ष नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन का एक बड़ा कारण रहा है। माओवादी इस संघर्ष को एक ‘जनयुद्ध’ के रूप में देखते हैं।
  • चितवन के नारायणी विद्या मंदिर में क्लास 10 में पढ़ते समय, प्रचंड ने अपना नाम छविलाल दाहाल से बदलकर पुष्प कमल दाहाल रख लिया। साल 1981 में पंचायत विरोधी आंदोलन में भूमिगत हुए प्रचंड 20 जुलाई 2006 को बालूवाटार में सार्वजनिक रूप से दिखाई दिए।
  • भूमिगत रहते हुए उन्होंने कल्याण, विश्वास, निर्माण और प्रचंड नाम लिया। इससे पहले वे छविलाल से पुष्प कमल बने थे। जब वह एक शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे, तब वह कल्याण नाम से जाने जाते थे। इसके बाद मशाल के केंद्रीय सदस्य बनने पर वह विश्वास नाम से जाने गए।

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