झालवाड़:-राजस्थान में 25 नवंबर को विधानसभा चुनाव से ठीक 15 दिन पहले पूर्व CM वसुंधरा राजे ने रिटायरमेंट के संकेत देकर राजनीति में हलचल मचा दी। वसुंधरा ने शुक्रवार शाम को झालवाड़ में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा- मुझे लग रहा है अब मैं रिटायर हो सकती हूं।
वसुंधरा ने आगे कहा- मेरे पुत्र सांसद साहब को सुनकर मुझे लगा कि जनता ने उन्हें अच्छी तरह से सिखा दिया है। कुछ प्यार से और कुछ आंख दिखाकर, आपने उसे ऐसा बना दिया है कि अब मुझे उसके पीछे पड़ने की जरूरत ही नहीं है, वो आप लोगों ने ही कर दिया है।
इसके साथ ही जो पार्टी के विधायक भी हैं मुझे विश्वास है कि मुझे उन पर निगाह रखने की कोई जरूरत नहीं है। वो सब ऐसे लोग हैं,चाहे जिलाध्यक्ष हों, चाहें दूसरे कार्यकर्ता। ये सब ऐसी पॉजिशन में आ गए हैं कि पीछे पड़ने की जरूरत नहीं है, वे आप लोगों के काम वैसे ही करेंगे।
इस झालावाड़ को हम हमेशा याद रखेंगे
वसुंधरा राजे ने झालाचाड़ की जनता का शुक्रिया अदा करते हुए कहा- इस झालावाड़ को हम हमेशा याद रखेंगे। एक समय था हम लोग पढ़ाई, इलाज के लिए कोटा भागते थे, जयपुर भागते थे। आज झालावाड़ में मेडिकल कॉलेज है। वसुंधरा राजे ने कहा झालावाड़ में मेरा 10वां नामांकन है। पहला नामांकन नवंबर 1989 में सांसद के लिए भरा। लगातार 5 बार सांसद और 4 बार विधायक चुनी गई।
सांसद दुष्यंत सिंह को लगातार 4 बार सांसद बनाया। झालवाड़ के आशीर्वाद से 1998 में केंद्र में विदेश मंत्री बनी। उसके बाद केंद्र में महत्वपूर्ण विभागों की मंत्री बनी। अभूतपूर्व बहुमत के साथ 2003 और 2013 में प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। जब-जब भी मैंने नामांकन भरा। झालावाड़ वासियों ने मुझसे एक ही बात कही, आपका काम नामांकन भरने का है। बाकी काम हमारा है। अब यहां से आप नहीं, हम चुनाव लड़ रहे हैं। झालावाड़ चुनाव लड़ रहा है।
झालावाड़ वासियों ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा
वसुंधरा राजे ने कहा- अधिकांश प्रत्याशी नामांकन भरने से लेकर चुनाव परिणाम आने तक अपना रण क्षेत्र छोड़ कर कहीं नहीं जाते, अपने क्षेत्र में ही डटे रहते हैं, लेकिन मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे पूरे समय झालावाड़ रुकने की आवश्यकता कभी नहीं हुई। आपके साथ बीते इस लंबे समय में कभी सुख तो-कभी दुख का सामना हुआ। कभी उतार तो-कभी चढ़ाव आए, लेकिन झालावाड़ वासी जीवन के हर लम्हे में मेरे साथ रहे। कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा।
वसुंधरा राजे ने कहा- पहली बार 1989 में यहां आई थी, तब मुझे ऐसा लगा था कि किसी गांव या कस्बे में आई हूं। कई रास्ते ऐसे थे,जहां सफ़र करना मुश्किल था, लेकिन आज उसी झालावाड़ से बड़े-बड़े हवाईजहाज उड़ान भर सकते हैं। ट्रेनें दौड़ रही है। कोई बीमार होता था,तो उसे इलाज के लिए कोटा या जयपुर लेकर दौड़ना पड़ता था। आज उसी झालावाड़ में मेडिकल कॉलेज है। कैंसर अस्पताल है। जो झालावाड़ राजस्थान में अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा था,आज वही झालावाड़ देश की पहचान बन गया है।