उत्तराखंड में UCC लागू करने की तैयारी:दिवाली के बाद एक्सपर्ट कमेटी CM को दे सकती है रिपोर्ट,जल्द बुलाया जा सकता है विशेष सत्र

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देहरादून:-उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। जल्द ही उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो सकता है। सूत्रों की मानें तो रंजना देसाई के नेतृत्व में बनी समिति दिवाली बाद अगले एक या दो दिन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को रिपोर्ट सौंप सकती है। इसे लेकर राज्य में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की तैयारी भी की जा रही है।

माना जा रहा है नवंबर के अंत या दिसंबर के पहले हफ्ते तक विशेष सत्र बुलाकर UCC को कानून का रूप दे दिया जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन जाएगा जहां पर UCC लागू होगा।

जल्द बुलाया जा सकता है विशेष सत्र
उत्तराखंड सरकार लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में UCC को कानूनी रूप दे देगी। आपको बता दें, 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान पुष्कर सिंह धामी ने वोटिंग से एक दिन पहले ही उत्तराखंड में भाजपा सरकार आने पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का वादा किया था।

इसके बाद 27 मई 2022 को जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया। इसमें चार सदस्य शामिल हैं। समिति ने प्रदेशभर में तकरीबन ढाई लाख लोगों से बात कर यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार किया है।

भाजपा का लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में UCC लागू करने का प्लान
भाजपा लोकसभा चुनावों से पहले उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करके इस मुद्दे को फिर से उठाना चाहती है। जानकारों के मुताबिक भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि लोकसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कर दिया जाता है तो इसे चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है और इसका फायदा भी BJP को मिल सकता है।

ऐसे में धामी सरकार UCC को लेकर फाइनल तैयारी भी कर चुकी है। रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित एक्सपर्ट कमेटी ने UCC का फाइनल ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया है और अभी से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपने की तैयारी की जा रही है ताकि सरकार इसका अध्ययन कर आगे की प्रोसेस कर सके।

यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या?
आमतौर पर किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल कानून और सिविल कानून। क्रिमिनल कानून में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह की कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है।

यानी कत्ल हिंदू ने किया है या मुसलमान ने या इस अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान, इस बात से FIR, सुनवाई और सजा में कोई अंतर नहीं होता।

सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय सेटलमेंट या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। मसलन दो लोगों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी पब्लिक प्लेस का प्रॉपर्टी विवाद हो।

ऐसे मामलों में कोर्ट सेटलमेंट कराता है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाता है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की खास भूमिका होती है।

शादी-ब्याह और संपत्ति से जुड़ा मामला सिविल कानून के अंदर आता है। भारत में अलग-अलग धर्मों में शादी, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं। यही वजह है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं।

जैसे- मुस्लिमों में शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होता है। वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ हैं।

इधर यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को खत्म करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।

जैसे- पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध क्यों
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। इसलिए शादी-ब्याह और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है।