जयपुर के प्रताप नगर स्थित एक ई-मित्र केंद्र पर लगभग 18 दिन पहले पुलिस ने छापा मारकर 16 निजी विश्वविद्यालयों की फर्जी डिग्रियों के दस्तावेज जब्त किए थे। जांच में खुलासा हुआ है कि इस घोटाले में कई विश्वविद्यालय शामिल हैं, जो आवेदकों से फर्जी डिग्रियों के लिए पैसे वसूलते थे।
इस फर्जीवाड़े में आरोपी ई-मित्र संचालक और उसके दो साथी आवेदकों से मार्कशीट, डिग्री, और माइग्रेशन सर्टिफिकेट के नाम पर राशि वसूलते थे और ये रकम सीधे विश्वविद्यालयों के बैंक खातों में जमा करवाई जाती थी। इन विश्वविद्यालयों से कमीशन के रूप में इन आरोपियों को आर्थिक लाभ मिलता था। जब विशेष जांच टीम (एसआईटी) इन विश्वविद्यालयों में जांच के लिए पहुंची, तो टीम को परिसर में प्रवेश से रोक दिया गया। इसके बाद सर्च वारंट जारी कर टीम ने जांच को आगे बढ़ाया।
अब तक की जांच में एसआईटी को 700 से अधिक फर्जी डिग्री मामले मिले हैं। जांच में पता चला कि लगभग 700 युवा बिना किसी कॉलेज में गए, डिग्री धारक बन गए। एसआईटी अब इन डिग्रियों में दर्ज एनरोलमेंट नंबर का मिलान कर रही है ताकि इनकी प्रमाणिकता की पुष्टि हो सके।
पुलिस को छापेमारी में जिन 16 विश्वविद्यालयों के दस्तावेज मिले, वे राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, और तेलंगाना के निजी विश्वविद्यालय हैं। 3,000 से अधिक दस्तावेजों में से 700 से अधिक डिग्रियां फर्जी पाई गई हैं। इन दस्तावेजों का संबंधित विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड से मिलान किया जा रहा है।
दो साल में 10 करोड़ रुपए की फर्जी डिग्रियों का धंधा
जांच में पाया गया कि इस रैकेट ने दो साल के भीतर 10 करोड़ से अधिक की फर्जी डिग्रियां बेची हैं। एक डिग्री की कीमत 50 हजार से लेकर 2.50 लाख रुपए तक होती थी। पुलिस ने 29 फर्जी किराएनामे, 12 चेक बुक, 97 शपथ पत्र, 14 बैंकों की पासबुक, 13 डेबिट कार्ड, 7 मोबाइल, एक पेटीएम मशीन और 2 डीवीआर भी जब्त किए हैं, जिनसे इस रैकेट के विश्वविद्यालयों के साथ आर्थिक लेनदेन का पता चला है।
पेन ड्राइव ने खोले कई राज
पुलिस ने छापेमारी में गिरफ्तार आरोपियों विकास मिश्रा, सत्यनारायण शर्मा, और विकास अग्रवाल से 17 अक्टूबर को पूछताछ शुरू की थी। इन आरोपियों से बरामद सीपीयू, मॉनिटर, प्रिंटर, दो लैपटॉप, और दो पेन ड्राइव की जांच जारी है। पेन ड्राइव में उन व्यक्तियों के नाम मिले हैं जिन्होंने फर्जी डिग्रियां हासिल की हैं।
विशेष प्रकार के आपत्तिजनक मामलों के लिए सर्च वारंट
राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक पाराशर के अनुसार, सर्च वारंट विशेष प्रकार के आपत्तिजनक मामलों में जांच के लिए कोर्ट से प्राप्त किए जाते हैं। इनका उद्देश्य अपराध के सबूत खोजना और उसे संरक्षित करना है, जो नए कानून की धारा-97 के तहत ही जारी किए जाते हैं।