जयपुर:-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आसींद दौरे के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान भाजपा की आगामी दिशा तय करने के लिए पेंडिंग मामलों पर काम शुरू करेगा। चुनावी साल में वसुंधरा राजे की भूमिका तय करने, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल के एक्सटेंशन और संगठन में कुछ बड़े पदों पर बदलाव जैसे फैसले होने हैं
असल में आसींद की सभा को मोदी की ओर से राजस्थान में चुनाव अभियान की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। इसी साल दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी अब अग्रेसिव मोड में आएगी। फरवरी में कुछ ऐसे फैसले होने हैं जो पार्टी को चुनावी मोड में लाने से पहले जरूरी हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव में स्थितियां खुद के पक्ष में करने के लिए पार्टी को कई फैसले करने हैं। इनमें से कुछ चीजें तय हो गई हैं जिनकी सिर्फ घोषणा बाकी है।
सबसे बड़ा फैसला वसुंधरा राजे को लेकर
सबसे बड़ा फैसला यह होना है कि चुनाव में वसुंधरा राजे की भूमिका क्या रहने वाली है? 2018 के चुनाव में सत्ता से बाहर होने के बाद पिछले चार साल में वसुंधरा राजे पार्टी कार्यक्रमों में अक्सर तब ही दिखी हैं जब पीएम मोदी या केंद्र का कोई बड़ा नेता शामिल हुआ हो। लंबे समय से पार्टी में खेमेबाजी और खींचतान साफ दिखाई दे रही है।
पिछले समय में पार्टी की ओर से चलाए गए अभियानों या कार्यक्रमों में अक्सर वसुंधरा राजे सक्रियता से दिखाई नहीं दी। हालांकि वे अपने हिसाब से व्यक्तिगत दौरे, धार्मिक यात्राओं के नाम पर सभाएं करती रही हैं। ऐसे में यह साफ है कि प्रदेश नेतृत्व और वसुंधरा के बीच दूरियां लगातार बनी हुई हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आसींद दौरे के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान भाजपा की आगामी दिशा तय करने के लिए पेंडिंग मामलों पर काम शुरू करेगा। चुनावी साल में वसुंधरा राजे की भूमिका तय करने, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल के एक्सटेंशन और संगठन में कुछ बड़े पदों पर बदलाव जैसे फैसले होने हैं।
चुनाव में स्थितियां खुद के पक्ष में करने के लिए पार्टी को कई फैसले करने हैं। इनमें से कुछ चीजें तय हो गई हैं जिनकी सिर्फ घोषणा बाकी है।
असल में आसींद की सभा को मोदी की ओर से राजस्थान में चुनाव अभियान की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। इसी साल दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी अब अग्रेसिव मोड में आएगी। फरवरी में कुछ ऐसे फैसले होने हैं जो पार्टी को चुनावी मोड में लाने से पहले जरूरी हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव में स्थितियां खुद के पक्ष में करने के लिए पार्टी को कई फैसले करने हैं। इनमें से कुछ चीजें तय हो गई हैं जिनकी सिर्फ घोषणा बाकी है।
सबसे बड़ा फैसला वसुंधरा राजे को लेकर
सबसे बड़ा फैसला यह होना है कि चुनाव में वसुंधरा राजे की भूमिका क्या रहने वाली है? 2018 के चुनाव में सत्ता से बाहर होने के बाद पिछले चार साल में वसुंधरा राजे पार्टी कार्यक्रमों में अक्सर तब ही दिखी हैं जब पीएम मोदी या केंद्र का कोई बड़ा नेता शामिल हुआ हो। लंबे समय से पार्टी में खेमेबाजी और खींचतान साफ दिखाई दे रही है।
पिछले समय में पार्टी की ओर से चलाए गए अभियानों या कार्यक्रमों में अक्सर वसुंधरा राजे सक्रियता से दिखाई नहीं दी। हालांकि वे अपने हिसाब से व्यक्तिगत दौरे, धार्मिक यात्राओं के नाम पर सभाएं करती रही हैं। ऐसे में यह साफ है कि प्रदेश नेतृत्व और वसुंधरा के बीच दूरियां लगातार बनी हुई हैं।
पिछले समय में पार्टी की ओर से चलाए गए अभियानों या कार्यक्रमों में अक्सर वसुंधरा राजे सक्रियता से दिखाई नहीं दीं।
अब इन दूरियों के नुकसान का अंदाजा पहले ही लगाकर ऐसे रास्ते तलाशने की ओर पार्टी बढ़ना चाहती है, ताकि आने वाले चुनाव में वसुंधरा राजे का पार्टी को लाभ मिल सके। पार्टी के जानकार सूत्र बताते हैं कि यह फैसला लिया जा सकता है कि उनकी चुनाव से पहले टिकटों में भूमिका तय कर दी जाए। इस बात को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि वसुंधरा के अलावा राजस्थान भाजपा में अभी तक कोई दूसरा प्रभावी चेहरा नहीं है, जिसकी पूरे प्रदेश की राजनीति में दखल हो।
बदलाव के संकेत मिलने शुरू
16-17 जनवरी को दिल्ली में हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में पीएम मोदी ने पार्टी नेताओं को ओवर कांफिंडेंस और गुटबाजी से बाहर निकलने की नसीहत दी थी। इसके बाद राजस्थान भाजपा में माहौल थोड़ा बदला हुआ सा नजर आ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आसींद दौरे के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान भाजपा की आगामी दिशा तय करने के लिए पेंडिंग मामलों पर काम शुरू करेगा। चुनावी साल में वसुंधरा राजे की भूमिका तय करने, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल के एक्सटेंशन और संगठन में कुछ बड़े पदों पर बदलाव जैसे फैसले होने हैं।
चुनाव में स्थितियां खुद के पक्ष में करने के लिए पार्टी को कई फैसले करने हैं। इनमें से कुछ चीजें तय हो गई हैं जिनकी सिर्फ घोषणा बाकी है।
असल में आसींद की सभा को मोदी की ओर से राजस्थान में चुनाव अभियान की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। इसी साल दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी अब अग्रेसिव मोड में आएगी। फरवरी में कुछ ऐसे फैसले होने हैं जो पार्टी को चुनावी मोड में लाने से पहले जरूरी हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव में स्थितियां खुद के पक्ष में करने के लिए पार्टी को कई फैसले करने हैं। इनमें से कुछ चीजें तय हो गई हैं जिनकी सिर्फ घोषणा बाकी है।
सबसे बड़ा फैसला वसुंधरा राजे को लेकर
सबसे बड़ा फैसला यह होना है कि चुनाव में वसुंधरा राजे की भूमिका क्या रहने वाली है? 2018 के चुनाव में सत्ता से बाहर होने के बाद पिछले चार साल में वसुंधरा राजे पार्टी कार्यक्रमों में अक्सर तब ही दिखी हैं जब पीएम मोदी या केंद्र का कोई बड़ा नेता शामिल हुआ हो। लंबे समय से पार्टी में खेमेबाजी और खींचतान साफ दिखाई दे रही है।
पिछले समय में पार्टी की ओर से चलाए गए अभियानों या कार्यक्रमों में अक्सर वसुंधरा राजे सक्रियता से दिखाई नहीं दी। हालांकि वे अपने हिसाब से व्यक्तिगत दौरे, धार्मिक यात्राओं के नाम पर सभाएं करती रही हैं। ऐसे में यह साफ है कि प्रदेश नेतृत्व और वसुंधरा के बीच दूरियां लगातार बनी हुई हैं।
पिछले समय में पार्टी की ओर से चलाए गए अभियानों या कार्यक्रमों में अक्सर वसुंधरा राजे सक्रियता से दिखाई नहीं दीं।
अब इन दूरियों के नुकसान का अंदाजा पहले ही लगाकर ऐसे रास्ते तलाशने की ओर पार्टी बढ़ना चाहती है, ताकि आने वाले चुनाव में वसुंधरा राजे का पार्टी को लाभ मिल सके। पार्टी के जानकार सूत्र बताते हैं कि यह फैसला लिया जा सकता है कि उनकी चुनाव से पहले टिकटों में भूमिका तय कर दी जाए। इस बात को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि वसुंधरा के अलावा राजस्थान भाजपा में अभी तक कोई दूसरा प्रभावी चेहरा नहीं है, जिसकी पूरे प्रदेश की राजनीति में दखल हो।
बदलाव के संकेत मिलने शुरू
16-17 जनवरी को दिल्ली में हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में पीएम मोदी ने पार्टी नेताओं को ओवर कांफिंडेंस और गुटबाजी से बाहर निकलने की नसीहत दी थी। इसके बाद राजस्थान भाजपा में माहौल थोड़ा बदला हुआ सा नजर आ रहा है।
पोस्टर पॉलिटिक्स के जरिए वसुंधरा समर्थकों में यह बात पहुंचाने की कोशिश की गई है कि पूरी पार्टी एक साथ है।
पार्टी मुख्यालय पर होर्डिंग्स बदलकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का चेहरा शामिल करने की कवायद को भी मोदी की नसीहत का ही असर माना जा रहा है। इससे मैसेज यह गया है कि वसुंधरा राजे को पार्टी किसी भी स्थिति में इग्नोर नहीं कर सकती। पोस्टर पॉलिटिक्स के जरिए वसुंधरा समर्थकों में यह बात पहुंचाने की कोशिश की गई है कि पूरी पार्टी एक साथ है।
संगठन महामंत्री पद पर बदलाव संभव
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री में से एक पद पर बदलाव हो सकता है। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का कार्यकाल पूरा हो चुका है लेकिन जातिगत आधार को देखते हुए चुनाव तक उनको एक्सटेंशन मिलने की संभावना है। वहीं पार्टी सूत्रों के अनुसार संगठन महामंत्री पद पर कोई नया चेहरा आ सकता है। 2018 के विधानसभा चुनाव से एक साल पहले अगस्त 2017 में भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री पद पर चंद्रशेखर को तैनात किया गया था। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि चुनावी साल में संगठन महामंत्री पद पर पार्टी बदलाव नहीं करती है लेकिन चंद्रशेखर के मामले में संभव है कि उनको किसी दूसरे प्रदेश की जिम्मेदारी देकर यहां नया चेहरा लाया जाए। इसके पीछे उनके खिलाफ राष्ट्रीय नेतृत्व तक पहुंची कुछ शिकायतों को आधार बताया जा रहा है।
कौन होगा चुनाव प्रभारी?
राजस्थान में पार्टी की चुनावी रणनीति और सत्ता में वापसी के लिए केंद्रीय नेतृत्व की ओर से जल्द ही चुनाव प्रभारी लगाया जाना है। इस बात की चर्चा जोरों पर हैं कि राजस्थान भाजपा में चुनाव प्रभारी कौन होगा? सबसे ज्यादा जिन दो नामों की चर्चा है, उनमें धर्मेंद्र प्रधान और विनोद तावड़े का नाम शामिल है।
धर्मेंद्र प्रधान अभी केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं और विनोद तावड़े राष्ट्रीय महामंत्री के पद पर हैं। हालांकि अभी यह तय होना बाकी है कि इनमें से ही कोई एक चुनाव प्रभारी होगा या कोई तीसरा नाम सामने आएगा।
जिलाध्यक्षों की घोषणा जल्द
चुनाव से पहले जिलों की फील्डिंग मजबूत करने की कवायद में पार्टी की ओर से फरवरी में कुछ जिलों में नए जिलाध्यक्ष घोषित किए जा सकते हैं। लंबे समय तक सर्वे और ग्राउंड वर्क करने के बाद भाजपा ने आठ जिलों में नए जिलाध्यक्ष हाल ही घोषित किए हैं। तभी से इस बात की चर्चा है कि 5-6 जिलों में भी मौजूदा जिलाध्यक्षों को बदलकर नए जिलाध्यक्ष और बनाए जा सकते हैं।
लोकसभा चुनाव को फोकस में रखकर होंगे फैसले
भाजपा के जानकार सूत्र बताते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव को लेकर तो फैसला करेगा ही, साथ ही इन फैसलों का असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर कितना होगा, इस बात को भी फोकस किया जा रहा है। लगातार दो लोकसभा चुनाव से भाजपा ने सभी 25 सीटें अपने कब्जे में की है। इस बार भी इस जीत को पार्टी दोहराना चाहती है।
ऐसे में लक्ष्य के बीच में आने वाली तमाम बाधाओं मसलन- गुटबाजी, खींचतान और नेताओं की निष्क्रियता जैसी तमाम अड़चनों को पार्टी दूर करने में जुटी हुई है। यही कारण है कि पार्टी ने लोकसभा की कमजोर सीटों का अभी से आकलन कर उन पर ग्राउंड वर्क करना शुरू कर दिया है। राजस्थान में नागौर और दौसा सीट को इसी श्रेणी में रखा गया