जयपुर:-अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने अब राजस्थान के मसले पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले सप्ताह में राजस्थान की संगठन में व्यापक बदलाव होना संभव है। शुरुआती दौर में प्रदेश कांग्रेस के 85 सचिवों की जारी सूची पर रोक लगा दी है। इस कार्रवाई से निश्चित तौर पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह और प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा को झटका लगा है। इसके अलावा प्रदेश के नेताओं में इस आदेश से बड़ा हड़कंप मचा हुआ है। अब यह माना जा रहा है कि जिस प्रकार की शिकायतें विधायकों और नेताओं ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तक पहुंचाई है उससे लगने लगा है कि राजस्थान में कुछ निर्णय एकतरफा हो रहे है जो कि आने वाले दिनों में संगठन के हित में नहीं है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच समन्वय के प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी ओर ऐसी गतिविधियों से पार्टी में विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो रही है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अब केंद्रीय नेतृत्व निश्चित तौर पर कुछ बदलाव करने के लिए सक्रिय हो गया है। अब यह भी माना जा रहा है कि अब विवेकाधिकार से बनाए गए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्यों की नियुक्ति पर भी रोक लगाई जा सकती है। कांग्रेस के जिला अध्यक्ष की नियुक्ति का मसला भी फिलहाल सहमति से ही तय होगा। अभी तक इस सूची को अंतिम रूप नहीं दिया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अब संगठन में भी दखलअंदाजी शुरू करने का काम कर दिया है। उन्होंने युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उनकी भूमिका की अहमियत देने की बात करना शुरू कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि चुनावी टिकट वितरण के समय युवा कांग्रेस अपनी सूची देती है उसको अधिक अहमियत नहीं मिल पाती है। ऐसे में अब उन्हें पहले ही अपने संभावित उम्मीदवारों की सूची को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उदयपुर चिंतन शिविर में जो मसौदे तय किए गए थे उसे लागू करने से पार्टी में युवाओं की भूमिका अहम हो जाएगी। यही कारण है कि अब युवाओं को अपने पक्ष में लेने की कवायद शुरू की हुई है। फिलहाल यह माना जाता है कि युवाओं की राजनीति पर सचिन पायलट का अधिक प्रभाव है इसको कम करने के लिए ही सीएम गहलोत कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का भी सहारा ले रहे हैं । लेकिन इसमें कामयाबी मिलेगी या नहीं अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। सीएम गहलोत में अब तक कई जातियों को खुश करने के लिए आधा दर्जन नए बोर्ड बनाने की घोषणा के साथ-साथ मंजूरी के प्रस्ताव भी जारी कर दिए है। लेकिन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की घोषणा नहीं हो पा रही है। इसका मूल कारण यह है कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से इसकी स्वीकृति लेनी पड़ेगी जो मिल नहीं पा रही है। इससे साफ संकेत है कि केंद्रीय नेतृत्व अब सीएम गहलोत को एक तरफा निर्णय लेने की छूट प्रदान नहीं कर रहा है। यही कारण है कि सीएम गहलोत इन दिनों कुछ परेशान जरूर नजर आ रहे हैं। यह बात सही है कि महंगाई राहत शिविर के माध्यम से वे अब तक 28 जिलों के दौरे करके यह जता चुके हैं कि उन्होंने व्यापक पैमाने पर अपनी सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया है। लेकिन संगठन की दृष्टि से इसे सही नहीं माना जा रहा है। राजीव गांधी मित्र और सरकारी प्रशासनिक अमले से भीड़ तो आर ही है लेकिन यह भीड़ वोट देगी या नहीं इसका अभी आकलन करना संभव नहीं लगता।
प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा के साथ ही सह प्रभारी अमृता धवन, वीरेंद्र सिंह और काजी निजामुद्दीन को भी सीएम गहलोत अपने सरकारी दौरे में साथ ले जाने से पीछे नहीं रहते हे। स्थानीय विधायक और संभावित चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की भीड़ भी मंच पर देखी जा सकती है। लेकिन प्रदेश स्तर पर समन्वय का अभाव स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है। इसको पाटने के लिए प्रभारी रंधावा की ओर से कोई खास प्रयास नहीं हो रहे हैं। इसको लेकर भी केंद्रीय नेतृत्व चिंतित है। उनकी कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गए है। उनकी बदलती बयानबाजी से भी वे विवादित होते जा रहे हैं।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के माध्यम से कुछ चौकाने वाले निर्णय भी सामने आ सकते हैं। इसका सभी को इंतजार है कि विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए क्या कुछ बदलाव करने हैं इसके ऊपर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह भी चर्चा है कि आने वाले समय में प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश कार्यकारिणीऔर 28 नए जिलाध्यक्ष में बदलाव किए जाने की बात सामने आ रही है। यह भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के आने से पहले यह बदलाव किया जाना संभव है ।
दिल्ली में सचिन पायलट की संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल से हुई मुलाकात के बाद यह बदलावआने की संभावना बन रही है। सचिन पायलट ने भी अब धीरे-धीरे फील्ड में जाने की गतिविधि बढ़ा दी है। फिलहालआगामी 1 सप्ताह में जो फैसले होंगे उसका सभी को इंतजार है। इसको लेकर जयपुर से दिल्ली तक नेता और कार्यकर्ताओं में सक्रियता बढ़ने की संभावना अधिक हो गई है।