जयपुर:-जयपुर में 13 मई 2008 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में बुधवार को हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की खंडपीठ ने 4 दोषियों को आज बरी कर दिया। हाईकोर्ट में चारों आरोपियों ने 28 अपील पेश की थी। इन अपीलों में फांसी की सजा को खत्म करने की अपील भी थी। 48 दिनों से इस पूरे केस पर सुनवाई चल रही थी।
खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जांच अधिकारी को लीगल जानकारी नहीं है। इसलिए जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के लिए डीजीपी को निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने मुख्य सचिव को भी जांच करने वाले अफसरों की जांच कराने को कहा है।
आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बताया कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है, इसी कारण आरोपियों को बरी किया है।
पहले जानिए क्या थी एटीएस की थ्योरी?
एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।
कोर्ट ने कहा कि साइकिल खरीदने की जो बिल बुक पेश की गई है, उन पर जो साइकिल नंबर हैं, वे सीज की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं करते हैं। यह थ्योरी भी गलत मानी गई है।
कोर्ट ने एटीएस की उस थ्योरी को भी गलत माना कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से बस से हिंदू नाम से आए हैं, क्योंकि उसका कोई टिकट पेश नहीं किया गया। साइकिल खरीदने वालों के नाम अलग हैं, टिकट लेने वालों के नाम अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साइकिल के बिलों पर एटीएस अफसरों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।
एटीएस ने बताया है कि 13 मई को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर एक होटल में खाना गया और किशनपाेल बाजार से साइकिलें खरीदीं, बम इंप्लॉन्ट किए और साढ़े चार-पांच बजे शताब्दी एक्सप्रेस से वापस चले गए, यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है?
एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे एफएसएल की रिपोर्ट में मैच नहीं किए। (बरी किए गए आरोपियों के सैयद सदद अली के मुताबिक)
आरोपियों के वकील ने बताया- सेशन कोर्ट ने चार आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। उस फैसले के खिलाफ हम हाईकोर्ट आए थे। एक आरोपी नाबालिग है। कोर्ट ने माना है कि वो घटना के वक्त 16 साल का था। इनके अलावा मामले में कोई आरोपी नहीं है। कोर्ट ने आरोपियों को ये कहकर बरी किया है कि ये कहीं से आरोपी प्रूफ नहीं होते हैं। एटीएस और प्रोसिक्यूशन एक भी बात साबित नहीं कर पाई है। वो कुछ भी साबित नहीं कर सकते हैं। न बम प्लांट करना साबित हुआ है। न ये बात साबित हुई की आरोपियों ने साइकिल खरीदी।
एडवोकेट ने बताया- कोर्ट ने फैसला देने के दौरान इन्वेस्टिगेशन अधिकारी को लेकर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने डीजीपी राजस्थान को इस पूरे केस के जांच अधिकारी रहे राजेंद्र सिंह नयन, जय सिंह और रिटायर आईपीएस अधिकारी महेंद्र चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। 10 पेज के फैसले में कोर्ट ने बताया कि पुलिस की थ्योरी पूरे केस से मैच नहीं करती है।
ब्लास्ट में 71 लोगों की हुई थी मौत
दरअसल, 13 मई 2008 को परकोटे में 8 जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। इनमें 71 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 185 घायल हुए थे। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।
पुलिस ने 13 लोगों को बनाया था आरोपी
इस मामले में कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। 3 आरोपी अब तक फरार है, जबकि 3 हैदराबाद और दिल्ली की जेल में बंद है। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। चार आरोपी जयपुर जेल में बंद थे। जिन्हे निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।
20 दिसंबर 2019 में हुई थी फांसी की सजा
आरोपी शाहबाज हुसैन निवासी मौलवीगंज यूपी को 8 सितंबर 2008, मोहम्मद सैफ निवासी सरायमीर आजमगढ़ यूपी को 23 दिसंबर 2008, मोहम्मद सरवर आजमी निवासी चांदपट्टी, आजमगढ़ यूपी को 29 जनवरी 2009, सैफ उर्फ सैफुर्रहमान निवासी आजमगढ़ यूपी को 23 अप्रैल 2009 और मोहम्मद सलमान निवासी निजामाबाद यूपी को 3 दिसंबर 2010 को गिरफ्तार किया था।
कोर्ट ने बम धमाकों के दोषियों को 20 दिसंबर 2019 को फांसी की सजा सुनाई थी। इस मामले में 24 गवाह बचाव पक्ष ने पेश किए थे, जबकि सरकार की ओर से 1270 गवाह पेश हुए थे। सरकार की ओर से वकीलों ने 800 पेज की बहस की थी। कोर्ट ने 2500 पेज का फैसला सुनाया था। तभी से चारों आरोपी जेल में बंद हैं।
किसको कहां का माना था दोषी
सरवर आजमी- चांदपोल हनुमान मंदिर के पास बम रखने में दोषी माना था।
सलमान- सांगानेरी गेट पर हनुमान मंदिर के पास बम रखने में दोषी माना था।
मोहम्मद सैफ- माणकचौक के पास बम रखने में दोषी माना था।
सैफुर्रहमान- छोटी चौपड़ के पास बम रखने में दोषी माना था।
सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता
सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। यह मानसिकता यहीं नहीं थमी। इसके बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी विस्फोट किए गए। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।
1293 गवाहों के बयान हुए थे दर्ज
केस में पुलिस ने 8 मुकदमे दर्ज किए थे। 4 कोतवाली और 4 माणक चौक थाने में। लंबी कानूनी प्रक्रिया में अभियोजन की ओर से 1293 गवाहों के बयान दर्ज कराए गए थे। आरोपियों की ओर से जयपुर के वकीलों ने पैरवी से इनकार कर दिया था। इसके बाद लीगल एड ने अधिवक्ता पेकर फारूख को आरोपियों की ओर पैरवी के लिए नियुक्त किया था।
नौवां बम डिफ्यूज किया था, जो सबसे खतरनाक था
रात 8.10 बजे चांदपोल बाजार में हनुमान जी मंदिर के पास बीडीएस(बम डिस्पोजल स्कवॉड) को साइकिल पर स्कूल बैग में 8 किलो वजनी बम मिला था। बीडीएस के पास बम डिफ्यूज करने के लिए केवल पचास मिनट का समय था। टीम ने 8 बजकर 40 मिनट पर बम डिफ्यूज कर दिया था। बम में टाइमर और डेटोनेटर लगा हुआ मिला था। हैंडमेड बम में साइकिल के छर्रें, लोहे की छोटी प्लेटें, बारूद और अन्य विस्फोटक चीजें मिली थी। बीडीएस ने सबसे ज्यादा शक्तिशाली बम इसी को माना था। अगर यह फट जाता तो जयपुर का मंजर और भी भयानक हो सकता था।