वाराणसी:-वाराणसी के ज्ञानवापी में वजूखाने को छोड़कर पूरे परिसर का सर्वे आज से शुरू हो गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI की 30 सदस्यीय टीम सर्वे कर रही है। सर्वे के लिए सभी अत्याधुनिक उपकरण के साथ-साथ फावड़ा, झाड़ू भी अपने साथ ले गई है। पत्थर के टुकड़े, दीवार, नींव और दीवारों की कलाकृतियां, मिट्टी और उसका रंग, अवशेष की प्राचीनता के तथ्यों को टीम जुटाएगी। हिंदू पक्ष ने जहां सर्वे में सहयोग की बात कही, वहीं मुस्लिम पक्ष ने सर्वे का बहिष्कार कर दिया है। सर्वे को देखते हुए जिले को हाईअलर्ट पर रखा गया है। मंदिर के आसपास कड़ी सुरक्षा और पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
मसाजिद कमेटी बोली- सर्वे में शामिल नहीं होंगे
ASI की 30 सदस्यीय टीम रविवार रात दिल्ली, पटना और आगरा से पहुंच गई। डीएम, कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर और काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक हुई, फिर सुबह सर्वे की सहमति बनी। ASI के अधिकारी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल करेंगे। पुलिस अधिकारियों ने दोनों पक्षों और वकीलों को बुलाया और बात की। हिंदू पक्ष ने जहां सर्वे में सहयोग की बात कही तो अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने जिला जज के आदेश के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का हवाला दिया। कहा कि सोमवार को सर्वे में शामिल नहीं होंगे और उसका बहिष्कार करेंगे। हालांकि आज मसाजिद कमेटी के सदस्य सर्वे में अंदर गए हैं।
स्वास्तिक, त्रिशूल, डमरू और कमल चिह्न मिले थे
वाराणसी कोर्ट में वकील विष्णुशंकर जैन ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि ज्ञानवापी की 14 से 16 मई के बीच हुए सर्वे में 2.5 फीट ऊंची गोलाकार शिवलिंग जैसी आकृति के ऊपर अलग से सफेद पत्थर लगा मिला। उस पर कटा हुआ निशान था। उसमें सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहराई पाई गई। पत्थर की गोलाकार आकृति के बेस का व्यास 4 फीट पाया गया। ज्ञानवापी में कथित फव्वारे में पाइप के लिए जगह ही नहीं थी, जबकि ज्ञानवापी में स्वास्तिक, त्रिशूल, डमरू और कमल जैसे चिह्न मिले। मुस्लिम पक्ष कुंड के बीच मिली जिस काले रंग की पत्थरनुमा आकृति को फव्वारा बता रहा था, उसमें कोई छेद नहीं मिला है। न ही उसमें कोई पाइप घुसाने की जगह है।
इन पद्धतियों से सर्वे करेगी ASI की टीम
ASI ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार यानी GPR या जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम या दोनों का प्रयोग कर सर्वेक्षण कर सकती है। पुरानी इमारतों और खंडहरों के सर्वे में GPR और मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है। ज्ञानवापी के सर्वे में भी इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने बताया है कि आज ज्ञानवापी का सर्वे GPR और मॉडर्न टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से किया जाएगा। इसके अलावा ASI की एक टीम अध्ययन क्षेत्र में आगे-पीछे सीधी रेखाओं में चलती है। जैसे-जैसे वे चलते हैं, वे अतीत की मानवीय गतिविधियों के साक्ष्य की तलाश करते हैं। जिसमें दीवारें या नींव, कलाकृतियां, मिट्टी में रंग परिवर्तन शामिल हैं जो सुविधाओं का संकेत दे सकते हैं। एक शोधकर्ता या टीम सतह पर कलाकृतियां या अन्य पुरातात्विक संकेतकों की तलाश में लक्ष्य क्षेत्र के माध्यम से धीरे-धीरे चलती है, टीम उस समय के पर्यावरण के पहलुओं को रिकॉर्ड करती है। आज ASI सर्वे की टीम उन सभी साक्ष्यों को सहेजेगी।
21 जुलाई को कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया, इन सवालों के मिलेंगे जवाब
हिंदू पक्ष की ओर से सर्वे की मांग की गई जिसको स्वीकार कर कोर्ट ने ASI को 21 जुलाई को आदेश दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि ASI के निदेशक मस्जिद के तीन गुंबदों के ठीक नीचे GPR तकनीक से सर्वेक्षण करें और यदि आवश्यक हो तो खोदाई करें। इमारत के पश्चिमी दीवार के नीचे सर्वे करें और खोदाई करें। सभी तहखानों की जमीन के नीचे सर्वे करें और यदि आवश्यक हो तो खोदाई करें। ज्ञानवापी के व्यासजी के तहखाने की भी जांच और सर्वे ASI करेगी। सर्वे की पूरे प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराई जाएगी।
पुरातात्विक सर्वे धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण की सच्चाई सामने लाएगा। दीवारों की कलाकृति सिद्ध करेगी कि वर्तमान ढांचा पुराने मंदिर पर तो नहीं बना। निर्माण के दौरान पुरावशेष में क्या बदलाव किया गया है? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस रूप में है? बता दें कि याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर यह पता लगाए जाए कि अंदर का भाग मंदिर का है या नहीं। अब काफी कुछ आज के ASI सर्वे पर निर्भर करता है।
GPR सर्वे से 15 मीटर तक प्रमाण
ASI के अधिकारियों की मानें तो GPR एक भू-भौतिकीय विधि है, जो उपसतह की छवि के लिए रडार का उपयोग करती है। यह कंक्रीट, तारकोल, धातु, पाइप, केबल या चिनाई जैसी भूमिगत उपयोगिताओं की जांच करने के लिए उपसतह का सर्वेक्षण करने का एक तरीका है। इतिहासकारों ने पहले ही प्रस्ताव दिया था कि ज्ञानवापी परिसर से 50 मीटर की दूरी में ट्रेंच लगाकर सर्वे किया जा सकता है। संभावना है कि यहां उससे भी प्राचीन तथ्य मिल सकते हैं।
GPR सर्वे की तकनीक से बिना खोदाई कराए जमीन से 15 मीटर नीचे तक की सभी जानकारियां आसानी से मिल जाती हैं। ऐतिहासिक धरोहरें खोदाई में नष्ट नहीं होने का खतरा अधिक रहता है। इससे किसी तरह का उस क्षेत्र को कोई भी नुकसान नहीं होता है। कलाकृतियों की उम्र और प्रकृति का पता लगाई जाएगी। इमारत की आयु, निर्माण की प्रकृति भी पता चल जाएगी।
सर्वे के दौरान इन लोगों की मौजूदगी
सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर में ASI की 30 सदस्यीय टीम के अलावा हिंदू पक्ष की चार वादिनी महिला, उनके चार अधिवक्ता मौजूद रहेंगे। मसाजिद कमेटी से भी चार लोगों और उनके चार अधिवक्ताओं को रहने के लिए कहा गया है। इसके अलावा जिला शासकीय अधिवक्ता, राज्य सरकार के अधिवक्ता, केंद्र सरकार के अधिवक्ता, एडीएम सिटी और एक अपर पुलिस आयुक्त मौजूद रहेंगे। फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर कौन रहेंगे, इस संबंध में एएसआई को निर्णय लेना है। हिंदू पक्ष की तरफ से वकील सुधीर त्रिपाठी, सुभाष नंदन चतुर्वेदी, अनुपम द्विवेदी आदि रहेंगे। पुलिस कमिश्नर मुथा अशोक जैन ने सभी को बुलाकर संवाद किया।
पुलिस प्रशासन और कड़ी सुरक्षा के इंतजाम
ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान सतर्कता और पुख्ता इंतजार रहेंगे। आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआरपीएफ के जवानों के पास ही रहेगी लेकिन अतिरिक्त पीएसी के जवान और पुलिसकर्मी भी तैनात किए जाएंगे। ज्ञानवापी परिसर के बाहर और आसपास के इलाके में दो आईपीएस, दो एडिशनल एसपी, चार डिप्टी एसपी, 15 थानेदार, एक कंपनी पीएसी और एक कंपनी सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स के जवान तैनात रहेंगे। इसके अलावा डीएम, एसीपी समेत अन्य कई अधिकारी भी मौजूद रहेंगे।
हिंदू पक्ष की ओर से कैविएट दाखिल
सर्वे से संबंधित जिला जज की अदालत के फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल किया है। चार महिला वादिनी सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास और लक्ष्मी देवी के अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी ने बताया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की जा चुकी है। मां श्रृंगार गौरी मुकदमे की एक अन्य वादिनी राखी सिंह की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में कैविएट दाखिल की गई है। उनके अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने बताया कि राखी सिंह एएसआई से सर्वे के समर्थन में हैं। कैविएट इसलिए दाखिल की गई है कि किसी भी आदेश से पहले उनके पक्ष को सुना जाए।
एएसआई से सर्वे के खिलाफ मसाजिद कमेटी पहुंची सुप्रीम कोर्ट
ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर पूरे परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से सर्वे संबंधी जिला जज की अदालत के आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की है। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन ने कहा कि एएसआई से सर्वे का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की गई है। जिला जज की अदालत का आदेश सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है।
कार्बन डेटिंग पर लगी है रोक
ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग के साइंटिफिक सर्वे और कॉर्बन डेटिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है। 12 मई 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में स्थित फव्वारे की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। SC ने कहा था कि ज्ञानवापी के इस मामले में संभलकर चलने की जरूरत है। ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति की तरफ से वकील हुजेफा अहमदी की याचिका पर सुनवाई जारी है।
सर्वे का मामला एक नजर में
अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज के सामने एक वाद दायर किया था। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी। महिलाओं की याचिका पर जज ने मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश पर पिछली साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था। दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है। हालांकि मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है। इस मामले की सुनवाई कोर्ट में पूरी हो गई थी। जिला जज ने ऑर्डर रिजर्व कर लिया था। 16 मई 2023 को चारों वादी महिलाओं की तरफ से हिंदू पक्ष ने एक प्रार्थनापत्र दिया था, जिसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर की एएसआई से जांच कराई जाए। 21 जुलाई को इसी याचिका पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए ASI सर्वे की इजाजत दे दी है।
इतिहास में काशी विश्वनाथ मंदिर ऐसा जिक्र…
औरंगजेब का शासन में मंदिर तोड़ने का दावा
मुगल शासक औरंगजेब के फरमान से वर्ष 1669 में आदिविश्वेश्वर का प्राचीन मंदिर ध्वस्त कर उसके ऊपर मस्जिद बनाने का दावा हिंदू पक्ष करता रहा है। इस आशय का तर्क जिला जज की अदालत में भी दिया गया। हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया कि वर्ष 1670 से ही लड़ाई लड़ी जा रही है, जिसे 353 वर्ष हो गए हैं। हालांकि काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद का मामला साल 1991 से कोर्ट में है।
देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से विश्वेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग काफी प्रसिद्ध है। काशी विश्वनाथ का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। मोहम्मद गोरी ने इस मंदिर का विध्वंस किया, जिसके बाद 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाहने तोड़ दिया। 1585 में अकबर के सेनापति राजा मान सिंह और वित्त मंत्री राजा टोडरमल ने मंदिर को बनवाया गया। दावा किया गया कि एक बार फिर औरंगजेब के शासन काल में इसे तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दिया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर का दोबारा निर्माण 1777 में रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया।
रानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था विश्वनाथ मंदिर का पुन: निर्माण
मुगल शासक औरंगजेब ने साल 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करा दिया। साल 1777 में इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्याबाई होल्कर विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण करवाने का प्रण लिया। तीन वर्षों में मंदिर का पुनर्निमाण करवाया। इंदौर के होल्कर राजघराने के मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर की पत्नी अहिल्याबाई थीं। 1754 कुम्भेर के युद्ध में खांडेराव की मृत्यु हो गई। 12 साल बाद उनके ससुर मल्हारराव का भी मृत्यु हो जाती है। मल्हारराव ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निमाण की कोशिश की थी। साल 1777-80 के बीच रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर निर्माण का प्रयास दोबारा शुरू किया और सफल भी हुईं। अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह को फिर से बनवाया और पूरे विधि विधान से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी कराई।