जयपुर:-सचिन पायलट के बंगले के बाहर धरने पर बैठी वीरांगनाओं की दो बड़ी मांगों को अनुचित ठहराते हुए सीएम अशोक गहलोत ने इसे मानने से साफ इनकार कर दिया है।
गहलोत ने देर रात ट्वीट कर वीरांगना के देवर को सरकारी नौकरी देने और शहीद हेमराज की तीसरी मूर्ति लगाने की मांग को अनुचित बताया है। गहलोत ने बीजेपी नेताओं पर शहीद वीरांगनाओं का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।
मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया- शहीदों के बच्चों का हक मारकर किसी अन्य रिश्तेदार को नौकरी देना कैसे उचित ठहराया जा सकता है? जब शहीद के बच्चे बालिग होंगे तो उन बच्चों का क्या होगा?
उनका हक मारना उचित है क्या? भाजपा के कुछ नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए शहीदों की वीरांगनाओं का इस्तेमाल कर उनका अनादर कर रहे हैं। यह कभी भी राजस्थान की परंपरा नहीं रही है। मैं इसकी निंदा करता हूं।
BJP के नेता इस्तेमाल कर रहे
गहलोत ने कहा- हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम शहीदों और उनके परिवारों का उच्चतम सम्मान करें। राजस्थान का हर नागरिक शहीदों के सम्मान का अपना कर्तव्य निभाता है, लेकिन बीजेपी के कुछ नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए वीरांगनाओं का इस्तेमाल कर उनका अनादर कर रहे हैं। यह कभी भी राजस्थान की परंपरा नहीं रही है। मैं इसकी निंदा करता हूं।
शहीद हेमराज मीणा की दो मूर्ति लग चुकी, तीसरी की मांग
गहलोत ने कहा- शहीद हेमराज मीणा की पत्नी उनकी तीसरी मूर्ति एक चौराहे पर स्थापित करवाना चाहती हैं।
जबकि पहले शहीद की दो मूर्तियां राजकीय महाविद्यालय, सांगोद के ग्राउंड और उनके पैतृक गांव विनोद कलां स्थित पार्क में लगाई जा चुकी है। ऐसी मांग अन्य शहीद परिवारों को देखते हुए उचित नहीं है।
बच्चों का क्या होगा?
शहीद रोहिताश लाम्बा की पत्नी अपने देवर के लिए अनुकम्पा नियुक्ति मांग रही हैं। अगर आज शहीद लाम्बा के भाई को नौकरी दे दी जाती है तो आगे सभी वीरांगनाओं के परिजन और रिश्तेदार उनके अथवा उनके बच्चे के हक की नौकरी दूसरे परिजन को देने का अनुचित सामाजिक- पारिवारिक दबाव डालने लग सकते हैं।
क्या हमें वीरांगनाओं के सामने एक ऐसी मुश्किल परिस्थिति खड़ी करनी चाहिए। क्योंकि वर्तमान में बनाए गए नियम पहले के अनुभवों के आधार पर ही बनाए गए हैं।
शहीदों के बच्चों का हक मारकर किसी अन्य रिश्तेदार को नौकरी देना कैसे उचित ठहराया जा सकता है? जब शहीद के बच्चे बालिग होंगे तो उन बच्चों का क्या होगा? उनका हक मारना उचित है क्या?
ऐसा पैकेज किसी राज्य में नहीं होने का दावा
उन्होंने कहा- साल 1999 में मुख्यमंत्री के रूप में मेरे पहले कार्यकाल के दौरान शहीदों के आश्रितों के लिए राज्य सरकार ने कारगिल पैकेज जारी किया। समय-समय पर इसमें बढ़ोत्तरी कर इसे और प्रभावशाली बनाया गया है।
कारगिल पैकेज में शहीदों की पत्नी को पच्चीस लाख रुपए और 25 बीघा जमीन या हाउसिंग बोर्ड का मकान (जमीन या मकान नहीं लेने पर 25 लाख रुपए अतिरिक्त), मासिक आय योजना में शहीद के माता-पिता को 5 लाख रुपए एफडी, एक सार्वजनिक स्थान का नामकरण शहीद के नाम पर और शहीद की पत्नी या उसके पुत्र-पुत्री को नौकरी दी जाती है।
राजस्थान सरकार ने प्रावधान किया है कि यदि शहादत के वक्त वीरांगना गर्भवती है। वो नौकरी नहीं करना चाहे तो गर्भस्थ शिशु के लिए नौकरी सुरक्षित रखी जाएगी।
इससे उसका भविष्य सुरक्षित हो सके। इस पैकेज के नियमानुसार पुलवामा शहीदों के आश्रितों को मदद दी जा चुकी है। शहीद परिवारों के लिए ऐसा पैकेज किसी दूसरे राज्य में नहीं है।
रक्षा मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के सामने भी मैंने यही बात रखी है
गहलोत ने कहा- राजस्थान वीरों की भूमि है, जहां के हजारों सैनिकों ने मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया है। यहां की जनता और सरकार शहीदों का सबसे अधिक सम्मान करती है।
कारगिल युद्ध के दौरान मैं खुद राजस्थान के 56 शहीदों के घर जाकर उनके परिवार के दुख में शामिल हुआ। ये मेरे भाव जो मैं आपके सामने रख रहा हूं, वही मैंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने रखे हैं।
ये हैं वीरांगनाओं की मांगें
पुलवामा शहीदों की वीरांगना मंजू जाट और सुंदरी देवी देवर के लिए सरकारी नौकरी मांग रही हैं। सरकार का तर्क है कि देवर को सरकारी नौकरी देने का नियमों में प्रावधान नहीं है।
शहीद हेमराज मीना की पत्नी की मांग है कि सांगोद चौराहे पर भी उनकी मूर्ति लगाई जाए। एक स्कूल का नामकरण शहीदों के नाम पर करें।
वीरांगना मंजू जाट का कहना है कि अब सरकार नियमों में नहीं होने का तर्क दे रही है। जबकि मंत्रियों ने पहले घोषणा की थी। सरकार ने तर्क दिया है कि पुलवामा शहीदों को करगिल शहीदों से ज्यादा पैकेज दिया है। वीरांगनाओं ने अब बदसलूकी करने वाले पुलिसवालों पर कार्रवाई करने की मांग भी जोड़ ली है।