जयपुर:-पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के खिलाफ सत्ता के समर्थित विधायकों और नेताओं ने आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला तेज कर दिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सीधे तौर पर जवाब देने के बजाय अपने समर्थक विधायकों नेताओं से जिस तरह के आरोप पायलट पर लगा रहे हैं उससे निश्चित तौर पर यह लगने लगा है कि उनके खेमे में कुछ बेचैनी बढ़ रही है।
कांग्रेस से बगावत कर जीतने वाले मुख्यमंत्री के सलाहकार और शिवगंज से निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने जो आरोप 2 दिन पहले लगाए उसे ऐसा प्रतीत होता है कि वे भूल गए कि सीएम गहलोत ने कई ऐसे विधायकों को बंगले दे रखे हैं जो कि नए नियमों के हिसाब से सही है। उसमें सचिन पायलट का बंगला भी आता है तो संयम लोढ़ा यह कैसे कह रहे हैं कि अवैधानिक तौर पर सचिन पायलट अपने बंगले में रह रहे हैं।
राजस्थान पर्यटक विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर भी बेतुका का आरोप लगा रहे हैं। वे स्वयं 25 सितंबर की बगावत के मुख्य किरदार में से एक हैं। इसके बावजूद वे कैसे अनुशासन की बात कर रहे हैं। उनका राजनीति में किस प्रकार का योगदान है सबको पता है। पार्टी से बगावत कर मुंडावर से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले धर्मेंद्र राठौर किस हैसियत से कह रहे हैं कि वे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता है। यह बात सही है कि उनका नाम मुख्यमंत्री के प्रति समर्पित कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। उनकी क्या सेवाएं हैं यह सबको पता है।
राजस्थान स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष रामेश्वर डूडी बनने के बाद से वे सीएम गहलोत के करीबी बने हुए हैं। वे किसान सम्मेलन आयोजित कर बड़े नेता के रूप में प्रचारित किए जा रहे हैं। लेकिन वे भूल गए कि उन्हें वर्ष 2018 के विधानसभा के चुनाव में किन कारणों के चलते हारना पड़ा था। सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के खिलाफ आरसी का चुनाव लड़ने वाले रामेश्वर डूडी ने क्या कुछ कहा था यह सबको पता है अब उनमें बदलाव क्यों हुआ वे खुद ही बता सकते हैं।
विधायक चेतन डूडी भी आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं तो वे भी जानते हैं कि दिल्ली से से लौटकर आकर उन्होंने मुख्यमंत्री का दामन पकड़ा था। उन्हें मुख्यमंत्री के मुखबिर कहा जा रहा है और सरकार बचाने में अहम भूमिका का किरदार भी कहा जाता है।
प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में सचिव राम सिंह ने सचिन पायलट के खिलाफ जो कुछ आरोप लगाए उससे यह पता चलता है कि वह किसके कहने से यह सब कुछ कर रहे हैं। लेकिन उनकी हैसियत क्या है यह सबको पता है उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर क्या कुछ किया यह सबको पता है और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कुछ फैसला दिया यह सब के सामने है। उनका क्या काम धंधा है यह किसी को पता नहीं है। लेकिन आज कांग्रेस कार्यालय की हर गतिविधियों को वह करीब से देख रहे हैं और किसके पास उसकी सूचना दे रहे हैं वे ही बता सकते हैं। चर्चा चाहे कुछ भी हो लेकिन जिस प्रकार का माहौल मौजूदा राजनीति में हो रहा है उसे निश्चित तौर पर पार्टी पर विपरीत प्रभाव पढ़ रहा है।
नेताओं की आपसी लड़ाई तो आज है कल रहेगी नहीं लेकिन पार्टी में जिस तरह का माहौल पैदा होगा वह निश्चित तौर पर भविष्य की राजनीति को प्रभावित करेगा। कहने को तो हाईकमान ने पार्टी की देखने के लिए प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा को बना दिया है इसके अलावा तीन सह प्रभारी वीरेंद्र सिंह, काजी निजामुद्दीन और अमृता धवन भी प्रदेश के दौरे पर हैं। मौजूदा स्थिति में उनके दौरे के दौरान जो कुछ घटित हो रहा है उसे ऐसा लग रहा है कि पार्टी में दो नेताओं के शक्ति प्रदर्शन को प्रदूषित करने के लिए कार्यकर्ता जो कुछ कर रहे हैं उसे पार्टी की बदनामी हो रही है । कार्यकर्ता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर धमाचौकड़ी कर रहे है उससे क्या कुछ होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
कांग्रेस हाईकमान के पास राजस्थान के लिए अभी समय नहीं है ऐसे में पार्टी का क्या होगा वही बता सकते हैं। संघर्ष की राजनीति चल रही है यह किसके लिए लाभकारी होगी यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा। लेकिन पार्टी का संगठन जिस प्रकार से प्रभावी काम करना चाहिए वह नहीं कर पा रहा सत्ता के लोग ज्यादा प्रभावी हैं। ऐसे में संगठन के लोग अपने आप को कमजोर महसूस कर रहे हैं ।
प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की स्थिति भी अजीब है उनका निर्णय नहीं होने से उनके वर्चस्व में कमी आई है। कार्यकारिणी भी 29 लोग है पूरे प्रदेश में उनके पदाधिकारी सक्रिय नहीं है उन्हें मजबूरन निगम बोर्ड के अध्यक्षों का सहारा लेना पड़ता है। अब चाहे कुछ भी कहो लेकिन कांग्रेस को सुधारने के लिए निश्चित तौर पर केंद्रीय नेतृत्व को विशेष ध्यान राजस्थान के संगठन और सत्ता की ओर देना ही पड़ेगा नहीं तो वर्ष 2023 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति क्या होगी यह तो कुछ नहीं कहा सकता।
आरोप-प्रत्यारोप लगाने वाले नेताओं पर अंकुश कैसे लगे इस पर भी प्रभावी कार्रवाई करने की जरूरत है। संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल के जारी परिपत्र का असर अब देखने को नहीं मिल रहा है। हालात बिगाड़ने के लिए कौन जिम्मेदार है इस पर भी पार्टी नेतृत्व को सोचने की जरूरत है । अभी वक्त है जब पार्टी के संगठन और सत्ता को व्यापक फेरबदल कर सुधार किया जा सकता है। संदेश चाहे कुछ भी हो लेकिन सरकार की गतिविधियों से सत्ता आती नहीं संगठन उस में सक्रिय भूमिका निभाएगा तो ही कुछ होगा। कहने करने को कुछ नहीं है लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के प्रभावी निर्णय से राजस्थान की कांग्रेस की राजनीति और सत्ता में बदलाव आ सकता है लेकिन कठोर निर्णय से ही कुछ संभव हो पाएगा।