जयपुर:-मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद समाप्त होने की संभावना बन रही है। राहुल गांधी का 19 जून को जन्मदिन है और पूरा परिवार लंदन में रहकर जन्मदिन सेलिब्रेट करेगा। ऐसे में सोनिया गांधी और प्रियंका भी 20 जून तक लंदन में रहने की बात सामने आ रही है। इसके बाद ही सीएम गहलोत और पायलट के बीच हुए समझौता फार्मूला धरातल पर आ सकेगा !
अब नई परिस्थितियों के चलते 11 जून को सचिन पायलट अपने पिता स्वर्गीय राजेश पायलट की पुण्यतिथि के दिन कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जिससे कि उनका राजनीतिक भविष्य अंधकार में पड़ जाए। चर्चाएं और अफवाह जरूर है, लेकिन उस पर अब विराम लगना शुरू हो गया है। सीएम गहलोत और प्रभारी रंधावा ने भी यह कहना शुरू कर दिया है कि विवाद नहीं है अब नए सिरे से पार्टी को वर्ष 2023 के विधानसभा के चुनाव में रिपीट कराने की रणनीति पर काम करना पड़ेगा। दोनों नेताओं के बीच गिले-शिकवे थे वे पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के समक्ष रखे जा चुके हैं। निर्णय भी उसी स्तर पर होना है। ऐसे में निर्णय को दोनों ही नेताओं को मानना मजबूरी होगा।
सचिन पायलट और संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर लंबी चर्चाएं चल रही है। इसकी आहट के बाद सीएम गहलोत ने अपने रुख में परिवर्तित कर दिया है। सीएम गहलोत और प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने भी अपना रुख परिवर्तित कर दिया है। सीएम गहलोत ने तो अपने कड़े तेवर में नरमी लाने का संदेश दे दिया है। उन्होंने एक टीवी के साक्षात्कार में कहा कि जब राहुल गांधी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के समक्ष दोनों के बीच खुलकर बातचीत हो गई है तो ऐसे में अब यह कहना कि विवाद बना रहेगा गलत है। उन्होंने कहा कि विवाद व्यक्तिगत नहीं रहता देश और कांग्रेस पार्टी के लिए हमें मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ना होगा। यह बात भी साफ हो गई है कि सचिन पायलट को नई जिम्मेदारी मिलेगी। जिस तरह के हालात बनाए जा रहे थे कि सचिन पायलट नई पार्टी बनाने जा रहा है वह पूर्णता सही नहीं है।
अब सीएम गहलोत इस तरह का माहौल बनाने में लग गए हैं कि वे सचिन पायलट के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं। वास्तविकता चाहे कुछ और हो लेकिन दिखावे के लिए यह सब कुछ हो रहा है। टिकट बंटवारे की जिम्मेदारी किसको मिले इस पर निर्णय करना महत्वपूर्ण है। विधानसभा के चुनाव नवंबर में होना संभावित है। ऐसे में चुनाव से पहले जिला अध्यक्षों की घोषणा और कार्यकारिणी बनाना अत्यधिक आवश्यक है। सीएम गहलोत ने राजीव गांधी मित्र बना रखे उस से चुनाव लड़ना आसान नहीं है। फिलहाल उन्हें सरकार की ओर से योजनाओं के प्रचार-प्रसार के नाम पर पैसे का भुगतान हो रहा है। लेकिन आचार संहिता लगने के साथ ही उस पर रोक लग सकती है ऐसे में पार्टी के लिए सक्रिय कार्यकर्ता नहीं मिल पाएंगे। यही कारण है कि पार्टी संगठन को शीघ्र बनाया जाए।
कांग्रेस प्रभारी रंधावा जयपुर में विधायकों से रायशुमारी कर रहे हैं। आखिर यह सब क्यों हो रहा है यह किसी के समझ में नहीं आ रहा। इससे पहले भी वे विधायकों के साथ रायशुमारी कर चुके हैं उसका क्या रिजल्ट आया किसी को पता नहीं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भरत सिंह ने प्रभारी रंधावा को जो सुझाव दिया उससे राजनीतिक हलकों में हड़कंप है। उन्होंने तो स्पष्ट कह दिया कि बुजुर्गों को चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करनी चाहिए और युवाओं को आगे आने देने का मौका देना चाहिए। भरत सिंह ने तो खुले में कहा कि सीएम गहलोत को अब यह घोषणा करनी चाहिए कि आगामी चुनाव के बाद पार्टी जब सत्ता में आएगी तो मैं मुख्यमंत्री का पद नहीं लूंगा और युवाओं को आगे आने दूंगा। उनका कहना था कि इस घोषणा से पार्टी की फिजा में परिवर्तन आएगा और माहौल भी कांग्रेस के पक्ष वाला बनेगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री सत्ता का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं यही कारण है कि पार्टी में विवाद का विषय बना रहेगा। उनके समर्थक जिस प्रकार का माहौल बनाते हैं उसे पार्टी में एकता माहौल बना पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
कांग्रेस प्रभारी रंधावा ने भी यह कहकर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में नई चर्चा शुरू करा दी है कि बुजुर्गों को अब त्याग की भावना लानी चाहिए और युवाओं को मौका भी देना चाहिए। आखिर प्रभारी रंधावा ने यह सब कुछ क्यों कहा इसके पीछे क्या मकसद है। यह तो पता है कि सीएम गहलोत और पायलट के बीच जो समझौता हुआ है उसमें युवाओं को अधिक टिकट और पार्टी संगठन में अधिक तर्जी देने की बात आ रही है। इसी के चलते वह नया माहौल बनाने के लिए यह सब कुछ मीडिया के माध्यम से संदेश देने का काम कर रहे हैं। जिससे कि लगे की पार्टी में परिवर्तन का दौर आने वाला है और उसे सभी को स्वीकार करना ही पड़ेगा।यह भी बात सामने आ रही है कि सचिन पायलट की मांगों पर भी संगठन स्तर पर जो भी निर्णय होगा उसे सीएम गहलोत को मानना ही पड़ेगा। इसके लिए विधानसभा में नया विधेयक लाकर व्यवस्थाएं परिवर्तित की जा सकती है इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की अधिक जरूरत है !