कोटा:-सरकारी स्कूलों में छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थी अब हाड़ौती सहित कई अन्य स्थानीय भाषाओं के शब्दों से भी रू-ब-रू होंगे. प्रदेश का शिक्षा विभाग स्थानीय भाषा के शब्दों को किताबों में जोड़ने का प्रयास कर रहा है. इसके लिए जल्द ही बच्चे ऊंट को ऊंटड़ों, मटकी को मटको, बंदर को बांदरो, प्याज को कांदा, कौआ को कागलो, बिल्ली को बल्ली और बकरी को छाड्ठ्ठी पढ़ेंगे.
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के अनुसार कोटा संभाग में बोले जाने वाली भाषा हाड़ौती के अलावा शेखावाटी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, गवारिया, मारवाड़ी, खैराड़ी, वांगड़ी, सांसी, बंजारा, मोटवाड़ी, देवड़ावाटी व थली के शब्दों को भी पाठ्यक्रम में जोड़ने का प्रयास चल रहा है. उनका कहना है कि करीब दो दर्जन से ज्यादा भाषाओं के शब्दों को लिया जा रहा है.
रविवार को पढ़ेंगे दीतवार
तैयार हो रहे शब्दकोश में कौन को कुण, क्या को कांई, कद को कदै, सप्ताह के नाम में रविवार को दीतवार और शुक्रवार को सकरवार पढ़ाया जाएगा. इसके लिए सर्वे भी करवाया का रहा है, जिसमें पशु-पक्षियों, प्रश्नवाचक शब्दावली, सप्ताह के नाम सहित कई शब्दों के स्थानीय भाषा में बोलचाल वाले शब्दों के चार्ट बनाए जा रहे है. शिक्षकों से भाषा की जानकारी ली जा रही है.
तर्क- स्थानीय भाषा में जल्द सीखेगा बच्चा
दिलावर का कहना है कि नई शिक्षा नीति में साफ है कि प्रारंभिक शिक्षा लोकल भाषा में पढ़ाए जाए. ऐसे में स्थानीय भाषाओं का शब्दकोश बनाया जा रहा है. इस शब्दकोश का प्रयोग किताबें लिखने में किया जाएगा, जिसे बच्चें पढ़ेंगे. हमारी कोशिश है कि इसे जल्दी से लागू करें. उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते हुए यह भी कहा कि भारत सरकार नई शिक्षा नीति 2020 लेकर आई थी, इसके बावजूद स्थानीय भाषा लागू नहीं हो पाई थी, हमारी सरकार आने के बाद काम शुरू कर दिया गया है. पहले शब्दकोश बनेगा फिर ये किताबें लिखने का काम शुरू हो जाएगा. दिलावर ने तर्क दिया है कि मातृभाषा में अगर बच्चे को पढ़ाया जाए तो बच्चा जल्दी-जल्दी सीखेगा.