सत्ता विरोधी लहर थामने में क़ामयाब रहे सीएम गहलोत

Jaipur Rajasthan

जयपुर:-चुनाव आते ही सरकारों के कामकाज को लेकर आए दिन धरना प्रदर्शन से सचेत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान में सरकार विरोधी लहर थामने में क़ामयाब रहे हैं । सीएम गहलोत ने आम जन को राहत का पिटारा खोल कर न केवल अपनी सरकार की कमियों पर निशाना बनाने वालों से बचा लिया बल्कि अपने विरोधी सचिन पायलट के प्रहारों को भी शांत कर दिया।

पार्टी के भीतर  के  असंतोष को पूरी तरह से ख़त्म तो नहीं कर पाए लेकिन असंतुष्टों का नेतृत्व करने वालों की बोलती बंद कर दी इससे प्रमुख विपक्षी दल भाजपा में जगी कांग्रेस की फूट का फ़ायदा उठाने की आस पर पानी फिर गया ।

मुख्यमंत्री के चेहरे को सामने नहीं लाने के आलाकमान के निर्णय से कुछ नेताओं में भविष्य की आस बन सकती हैं लेकिन वे यह समझ नहीं पा रहे कि चुनाव और चुनाव के बाद की रणनीति अलग होती हैं लिहाज़ा 

आलाकमान का यह निर्णय भी गहलोत के हक़ में ही लग रहा है ।चुनाव में हमेशा गहलोत स्टार प्रचारक के रूप में रहे लेकिन अपने को मुख्यमंत्री के रूप में कभी भी पेश नहीं किया। लेकिन जब पद लेने की बारी आयी तो उसमें वह ही हीरो रहे । चुनाव में पार्टी को भी जातिगत समीकरण साधने में मुश्किल नहीं होती ।

सरकार  के पाँच वर्ष पूरे होने के बाद चुनाव में उतरते समय यह प्रश्न ज़रूर उठता रहा है कि अगली बार कौन लेकिन सीएम गहलोत कभी भी इसकी चिंता नहीं करते हैं और जो लोग चिंता करते हैं उन्हें कभी भी कुछ हासिल नहीं होता ।इस बार सचिन पायलट ने जो चुनौती पेश की थी उसको सुलझाकर गहलोत ने फिर यह साबित कर दिया कि वह अब आला कमान के दबाव में भी नहीं रहने वाले हालाँकि आला कमान से अच्छे रिश्ते बनाने में भी उनका राजनीतिक कौशल दिखाईं दिया ।

नेतृत्व को चुनौती विहीन करने से असंतुष्ट भी सकते में आ गए और अब उनके सामने  सीएम गहलोत के शरण में आने के अलावा कुछ नहीं बचा ।बहुत कुछ जाले साफ़ करने के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ आसान हो गया ।चुनाव में कई चुनौतियों से पार पाना मुश्किल होगा ।भाजपा विरोधी सरकारों को गिराने के अभियान के दौरान भी गहलोत ने नेतृत्व क्षमता दिखाई तथा प्रदेश भाजपा में ही अपने शुभचिंतक ढूंढ लिये ।लोक सभा चुनाव में बेटे की हार के बाद राजनीतिक चुनौती बनते जा रहे केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह पर किए गए ।

प्रहार से उनकी राज्य की राजनीति में आने के मंसूबों पर ही पानी फिर गया ।पूरे पाँच वर्ष वह भाजपा में अपने हितैषी तलाशने के साथ उनका उपयोग करते रहे जिससे कई नेताओं की निष्ठा पर ही सवाल उठ खड़े हुए । गहलोत के इस कौशल से तिलमिलाए सचिन पायलट ने गठबंधन को भ्रष्टाचार से जोड़कर मुद्दा बनाने में कामयाब रहे।

सीएम गहलोत ने जिस तरह राजेश पायलट और बलराम जाखड सरीखे  बड़े नेताओं को प्रदेश की राजनीति में नहीं जमने  नहीं दिया और बाहरी नेताओं की धमक बर्दाश्त नहीं की।  वैसे ही राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन पर क़ब्ज़ा ज़माने वाले ललित मोदी को खदेड़ कर ही दम लिया । बाद की क्रिकेट राजनीति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो सवाल खड़े किए। लेकिन प्रदेश के भाजपा नेताओं को यह अवसर नहीं मिला। 

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राज़े भी ललित मोदी और क्रिकेट को लेकर सीएम गहलोत के निशाने पर रही लेकिन उनको भी इसमेंकोई राजनीतिक मुद्दा नहीं दिखा। भाजपा हिंदूवादी छवि भी प्रदेश में दिखा नहीं पाई और जयपुर बम ब्लास्ट के दोषियों को छोड़ने और उदयपुर में कन्हैया लाल के हत्यारों को सजा नहीं मिलने के आरोपों को भी सीएम गहलोत ने प्रतिपक्ष पर ही मढ़ दिया ।

पेपर लीक प्रकरण और एक कांग्रेस नेता के नौकरी देने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में पकड़े जाने के बावजूद भी भाजपा सरकार पर बेरोज़गारों के साथ खिलवाड़ का माहौल नहीं बना पायी

कांग्रेस के एक मंत्री के सरकारी आवास को छोड़कर निजी आवास में आने की ख़बर को भी  प्रदेश भाजपा  नेता भुना नहीं पाए लेकिन पीएम मोदी ने ज़रूर मुद्दा बनाते हुए यह इशारा कर दिया कि मंत्री लोग हार के डर से अभी से सरकारी बंगला ख़ाली करने लगे हैं जो भगदड़ की शुरुआत हैं ।

सीएम गहलोत ने ज़रूर अपनी पार्टी में नेतृत्व के मुद्दे को शांत कर दिया लेकिन भाजपा उसकी सीख ही नहीं ले पाई तथा भी वसुंधरा या ग़ैर वसुंधरा का मुद्दा अब भी पार्टी में चल रहा है जिससे नेताओं में खेमे बंदी बनी हुई है। दमदार चेहरा होने के बावजूद भाजपा इस बार वसुंधरा पर दाँव लगाने से कतरा रही है लेकिन उनकी उपयोगिता के कारण स्पष्ट निर्णय भी नहीं कर पा  रही है ।

हालाँकि सत्ता विरोधी माहौल नहीं होने के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आएगी ।अभी कई समीकरण बनेंगे बिगड़ेंगे जिससे ही यह तय होगा कि किस दल को सत्ता मिल सकेगी।