जयपुर:-मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद को सुलझाने के लिए अब केंद्रीय नेतृत्व सक्रिय हो गया है। ऐसा माना जा रहा है कि 25 मई को दिल्ली में मलिकार्जुन खरगे द्वारा राजस्थान,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर बैठक होनी है। इस बैठकको लेकर दिल्ली में हलचल तेज हो गई है। इस बैठक में राहुल गांधी के भाग लेने की संभावना है।
सीएम गहलोत और सचिन पायलट समर्थित नेताओं द्वारा बढ़ती बयान बाजी से पार्टी में हो रहे बिखराव को तत्काल रोकने को रोकने की जरूरत है। इसको लेकर केंद्रीय नेतृत्व चिंतित और गंभीर है कर्नाटक चुनाव के फार्मूले को राजस्थान में भी लागू करने की प्रबल संभावना है। अब केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान के मसले को पेंडिंग रखने के मूड में नहीं है। यही कारण है कि अब दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में गतिविधियां तेज हो गई है। सचिन पायलट भी दिल्ली लौट गए हैं।
प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा के जरिए सीएम गहलोत अपनी शर्तें केंद्रीय नेतृत्व पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि अब दोनों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए किस नेता को आगे किया जाए। भंवर जितेंद्र सिंह और संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल को इस कार्य के लिए आगे किया है। इससे पहले कमलनाथ भी कोशिश कर चुके हैं। सचिन पायलट की ओर से यही कहा जा रहा है कि 3 साल पहले सोनिया गांधी ने जो कमेटी बनाई थी उसकी सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिए। लेकिन सीएम गहलोत और उसके समर्थित लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
केंद्रीय नेतृत्व के सामने 25 सितंबर की बगावत और अनुशासन समिति द्वारा संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री डॉ. महेश जोशी और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर को दिए नोटिस पर फैसला होना है। इसके अलावा सचिन पायलट द्वारा भ्रष्टाचार और पेपर लीक के खिलाफ अनशन,जन संघर्ष पदयात्रा और 30 मई तक कार्रवाई नहीं तो आंदोलन की चेतावनी का विषय भी सामने है। केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव और 3 साल से संगठन नहीं बन पाने की स्थिति को लेकर भी चिंतित और गंभीर है। अभी तक प्रदेश में 19 जिलाध्यक्ष और 26 जिला अध्यक्षों का फैसला होना बाकी है। प्रदेश कार्यकारिणी के साथ प्रदेश अध्यक्ष का निर्णय नहीं होने से पार्टी की सरकार बनना मुश्किल और चुनौती भरा लग रहा है। अब चाहे दावे कुछ भी किए जाएं लेकिन धरातल पर जो निर्णय होने हैं उसमें और अधिक समय लगा तो फिर जीतना चुनौतीपूर्ण होगा।
कहने और सुनने में तो अच्छा लगता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार की योजनाएं और महंगाई राहत शिविर में 5 करोड से अधिक पंजीयन होने से सरकार रिपीट होने का दावा करते है। लेकिन यह यह तभी संभव है जब दोनों नेताओं के बीच जो खाई पैदा हो गई है उसे पाटा जाए। सबसे बड़ी लड़ाई तो विधानसभा चुनाव में टिकट के बंटवारे को लेकर है कि उसका अधिकार किसको दिया जाए इसका निर्णय समझदारी से किया जाए तो पार्टी हित में होगा। सीएम गहलोत दावा कर रहे हैं कि मैं अपने स्तर पर ही सभी काम कर लूंगा लेकिन केंद्रीय नेतृत्व इस बात को मानने को तैयार नहीं है। उन्हें पता है कि कर्नाटक जैसी एकता नहीं रही तो चुनाव जीतना मुश्किल होगा।
केंद्रीय नेतृत्व अब सचिन पायलट की भूमिका को लेकर गंभीरता से विचार कर रहा है। सीएम गहलोत की कोशिश है कि वे किसी तरह से प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा के माध्यम से सचिन पायलट को कमजोर करें और उन्हें केंद्रीय संगठन में राष्ट्रीय महामंत्री का पद देकर राज्य से बाहर करा दे। लेकिन सचिन पायलट इस बात के लिए राजी नहीं है उनका स्पष्ट कहना है कि मैंने संगठन और सत्ता को लाने के लिए 5 साल तक संघर्ष किया है अब मैं अपने साथियों को धोखा नहीं दे सकता हूं और मैं अपनी कर्म भूमि राजस्थान में ही रहूंगा । यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी वापस दे दी जाए। इसके अलावा समर्थकों को संगठन और सत्ता में भागीदारी दी जाए। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को कैबिनेट मंत्री बना दिया जाए या फिर चुनाव प्रचार कमेटी की जिम्मेदारी सचिन पायलट को दी जाए ।
पायलट गुट का सुझाव है कि नेतृत्व परिवर्तन किया जाए जिसमें मुख्यमंत्री पायलट और गहलोत बनाने की जगह किसी और को जिम्मेदारी दी जाए। लेकिन इसके लिए सीएम गहलोत तैयार नहीं है। यही कारण है कि प्रदेश में अब चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की दावेदारी गहलोत समर्थकों द्वारा की जा रही है। यह प्रचारित किया जा रहा है कि चौथी बार भी कांग्रेस की सरकार बने और सीएम गहलोत को ही बनाया जाए। ऐसे में अब विभिन्न वर्ग, कर्मचारियों और समुदाय के लोगों को मुख्यमंत्री निवास को बुलाकर इस प्रकार के नारे लगवाए जा रहे हैं । यही नहीं आई लव यू आई लव यू किनारों का प्रदर्शन हो रहा है। यही नहीं महंगाई राहत शिविर मैं भी इसी प्रकार के नारे सीएम गहलोत समर्थित लोगों द्वारा लगाए जा रहे हैं। इस तरह के माहौल से पार्टी में कार्यकर्ता और नेता एक होने की जगह बटते नजर आ रहे हैं। इस तरह की बढ़ती गलत गतिविधियों को रोकने की जरूरत है। नहीं तो आने वाला समय और मुश्किल वाला हो जाएगा। चाहे कुछ भी कहो लेकिन आप सभी को कुछ समय का इंतजार तो करना ही पड़ेगा कि केंद्रीय नेतृत्व क्या कुछ निर्णय करता है !