जयपुर:-आखिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रोफेसर देव स्वरूप को विवादित होने के बावजूद भी बार-बार विभिन्न विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्ति क्यों दिलाते हैं ! इसके पीछे कौन लोग हैं किसकी सिफारिश आती है कि मुख्यमंत्री जी ऐसे विवादित व्यक्ति को कुलपति बनाने की सिफारिश कर देते हैं।
शनिवार को राज्यपाल कलराज मिश्र ने सीएम गहलोत से मुलाकात के बाद प्रोफेसर देव स्वरूप को बाबा आमटे दिव्यांग विश्वविद्यालय का पहला कुलपति नियुक्त कर दिया है। इससे पहले प्रोफेसर देव स्वरूप राजस्थान विश्वविद्यालय और अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हो चुके हैं और विभिन्न विवादों के चलते उन्हें बीच में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान विश्वविद्यालय में वर्ष 2013 में उन पर भर्ती में व्यापक गड़बड़ी करने का आरोप लगा था। वर्ष 14 में विवादित होने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद उन्हें अंबेडकर विधी विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया गया था। उनकी लॉ की डिग्री को लेकर विवाद हुआ और उन्हें कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति बनने के दौरान देव स्वरूप ने लॉ (एलएबी) की डिग्री प्रस्तुत की थी। बाद में जब वे डॉ. भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के कुलपति के लिए आवेदन किया तो एलएलबी की डिग्री नहीं लगाई। एलएलबी की डिग्री छुपाने पर राजभवन की ओर से जांच कमेटी का गठन किया गया। जयपुर से भाजपा सांसद रामचरण बोहरा और भाजपा विधायक नरपत सिंह राजवी की शिकायत के बाद वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. कैलाश सोढानी की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनी। कमेटी ने देव स्वरूप से कई बार जानकारियां मांगी लेकिन देव स्वरूप ने सहयोग नहीं किया और अपने दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए।
असम के राज्यपाल और पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने इस मामले को कई बार सदन में उठाया। उन्होंने कहा कि निर्धारित योग्यता नहीं रखने के बावजूद कांग्रेस सरकार ने अपने चहेते देव स्वरूप के नाम का प्रस्ताव कुलपति के लिए भेज दिया। मापदंड तय किए बिना ही चहेतों तो उपक्रत किया जा रहा है। राजस्थान विधानसभा में मामला गूंजने के बावजूद सरकार ने देव स्वरूप के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। बाद में यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट तक पहुंच गया। हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था।
जांच कमेटी ने 2 महीने का समय देने से इनकार करते हुए दो दिसंबर को पत्र लिखकर 10 दिसंबर तक डिग्रियों के बारे में जानकारी देने की बात कही। 9 दिसंबर को देव स्वरूप ने फिर कहा कि उन्हें 2 महीने का वक्त दिया जाए। जांच कमेटी ने वक्त नहीं दिया तो देव स्वरूप ने इस्तीफा दे दिया। वैसे फरवरी 2023 में देव स्वरूप का कार्यकाल खत्म होने वाला था।