सीएम गहलोत और पायलट का विवाद, 29 मई को दिल्ली में बैठक,सचिन को नई जिम्मेदारी देने सहित कई निर्णय संभव !

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कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद को खत्म कराने के पक्ष में है।  इसी को लेकर 29 मई को दिल्ली में बैठक आयोजित की है। इस बैठक में दोनों के बीच सुलह का रास्ता खोजा जाएगा। बैठक में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल के साथ ही प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा, तीनों सह प्रभारी अमृता धवन, वीरेंद्र सिंह और काजी निजामुद्दीन उपस्थित रहेंगे। इसके अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी, गुजरात के प्रभारी डॉ. रघु शर्मा सहित कुछ और नेताओं को बुलाए जाने की चर्चा है। 

सीएम गहलोत और पायलट की आपसी मनमुटाव को दूर करने के लिए मलिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी दोनों से अलग-अलग बातचीत भी कर सकते हैं। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अब प्रतिपक्ष को यह अवसर नहीं दिया जाएगा कि दोनों के बीच समन्वय नहीं है। 

कर्नाटक चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय नेतृत्व इस बात के लिए आमादा है कि विवाद खत्म होना चाहिए। अब तक सीएम गहलोत ने सभी निर्णय एकतरफा किए हैं इससे पार्टी में कार्यकर्ता और नेता बट रहे हैं। यह स्थिति पार्टी के लिए हितकारी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई को अजमेर आ रहे हैं, ऐसे में विवाद बना रहा तो प्रतिपक्ष और पीएम मोदी  छींटाकशी कर आम लोगों के बीच कांग्रेस की छवि को खराब करेंगे। 

विधानसभा चुनाव में एकता नहीं रहने से कॉन्ग्रेस को बड़ा नुकसान होने की संभावना को देखते हुए अब केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि किसी तरह दोनों के बीच आपसी मतभेद समाप्त किए जाए। इसके लिए सीएम गहलोत को यह स्पष्ट तौर पर कहा जाएगा कि वे कुछ त्याग की भावना रखें। विधानसभा के चुनाव में टिकट बांटने के अधिकार को लेकर भी कोई नीति तय की जाएगी। फिलहाल सचिन पायलट को नई जिम्मेदारी देने का तो निर्णय कर लिया गया है और जून माह के प्रथम सप्ताह में मंत्रिमंडल का विस्तार किए जाने की चर्चा बहुत तेजी से हो रही है। 

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष खंडगे द्वारा बुलाई गई बैठक में इस पर भी निर्णय किए जाने की संभावना है। मंत्री किस गुट के कितने होंगे इसका निर्णय आपसी समन्वय से केंद्रीय नेतृत्व की अध्यक्षता में तय किया जाएगा। मंत्रिमंडल के फेरबदल को लेकर यह तय किया जा रहा है कि दो या तीन उपमुख्यमंत्री बनाए जाए। अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहता है तो राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी, चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा या अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष खिलाड़ी लाल बैरवा को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा है। विधानसभा अध्यक्ष  डॉ. सीपी जोशी को उप मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो उस स्थिति में राम नारायण मीणा को विधानसभा का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा हो रही है। 

25 सितंबर की बगावत के दौरान 3 को नोटिस के मामले में भी कोई निर्णय संभव है। ऐसे में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल और जलदाय मंत्री डॉ महेश जोशी और राजस्थान पर्यटक विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर के भाग्य का फैसला भी होना है। सीएम गहलोत इस निर्णय के पक्षधर नहीं है। लेकिन अनुशासन समिति ने अगर यह सिफारिश कर रखी है कि बगावत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी तो फिर पार्टी में अनुशासन कैसे आएगा इसको देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व उनके बारे में निर्णय कर सकता है ? 

प्रभारी रंधावा को भी यह स्पष्ट  निर्देश दिए जाएंगे कि वे सत्ता और संगठन दोनों की जिम्मेदारी लेकर चलें और कोई विवाद हो तो वह ऐसे बयान नहीं दें कि संगठन को कोई नोटिस नहीं मिला है ऐसे में सचिन पायलट का जवाब तो  सीएम गहलोत ही देंगे। इस बयान के बाद निश्चित तौर पर यह कहा जा रहा है कि रंधावा सत्ता और संगठन में  समन्वय कराने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।

सचिन पायलट ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है। उनके गुट की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। सीएम गहलोत इशारों इशारों में कुछ बातें जरूर कह रहे हैं। लेकिन उनके मंत्रिमंडल के सदस्य राजस्व मंत्री रामलाल जाट, जलदाय मंत्री डॉ. महेश जोशी और संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के बयानों ने स्थिति को खराब किया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी संगठन की दृष्टि से कमजोर नजर आ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा की अनुमति से प्रदेश कांग्रेस के 85 सचिव बनाए हैं। लेकिन उनकी नई नियुक्तियों में कई आरोप भी लगने लगे हैं कि कई ऐसे निष्क्रिय और विवादित लोगों को प्रदेश सचिव बना दिया है। 

प्रदेश सचिवों की नियुक्ति को लेकर यह भी दावा किया जा रहा है कि सीएम गहलोत और डोटासरा के समर्थित लोग ज्यादा प्रदेश सचिव बने हैं। बाकी के पदाधिकारी और जिला अध्यक्ष क्यों नहीं बनाए गए इस पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं ! 

सीएम गहलोत और सचिन पायलट का मामला पेचीदा और चुनौतीपूर्ण है। केंद्रीय नेतृत्व के संभलकर कठोर निर्णय लेने पर ही मामला सुलझ सकता है। ऐसे में दोनों की शर्तों को नहीं माना जाए बल्कि पार्टी हित में फैसला कर कर्नाटक की तर्ज पर राजस्थान को भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतने के लिए तैयार करना पड़ेगा। अब निर्णय का इंतजार सभी को है कि केंद्रीय नेतृत्व का फैसला किसके पक्ष में जाएगा !