ब्रह्माकुमारीज संस्थान, आबूरोड की मुख्य प्रशासक राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का सोमवार देर रात अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 101 वर्ष की थीं। संस्थान की ओर से जानकारी दी गई कि उनका निधन रात 1:20 बजे हुआ।
संस्थान की पीआरओ बीके कोमल के अनुसार, दादी का पार्थिव शरीर मंगलवार को अहमदाबाद से आबूरोड स्थित अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय लाया गया, जहां अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। अंतिम संस्कार की तिथि की घोषणा जल्द की जाएगी।
आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत 13 वर्ष की उम्र में
दादी रतनमोहिनी का जन्म 25 मार्च 1925 को हैदराबाद, सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनका बचपन का नाम लक्ष्मी था। मात्र 13 वर्ष की उम्र में वे ब्रह्माकुमारी संस्थान से जुड़ गई थीं और जीवन भर इसके विस्तार और मूल्यों के प्रचार-प्रसार में समर्पित रहीं।
जीवन भर रहीं सक्रिय, की 70,000 किमी से अधिक पदयात्रा
अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव तक दादी रतनमोहिनी पूरी तरह सक्रिय रहीं। वे हर दिन ब्रह्म मुहूर्त में 3:30 बजे उठती थीं और रात 10 बजे तक ईश्वरीय सेवाओं में लगी रहती थीं।
उन्होंने 1985 में 13 प्रमुख पदयात्राएं कीं और 2006 में 31,000 किमी यात्रा पूरी की। कुल मिलाकर, उन्होंने 70,000 किमी से अधिक की पदयात्रा कर भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रचार किया।
हजारों बहनों को दी दिशा, युवाओं में भरा आत्मबल
संस्थान में दादी रतनमोहिनी ने आने वाली बहनों के प्रशिक्षण और उनकी नियुक्ति का कार्यभार संभाला। उनके निर्देशन में देशभर के 4,600 सेवा केंद्रों की 46,000 से अधिक बहनों को प्रशिक्षित किया गया।
इसके अलावा वे युवा प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा भी रहीं और विशेष रूप से युवाओं में मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिकता के प्रचार में सक्रिय रहीं।
उनकी जीवन यात्रा समर्पण, सेवा और आध्यात्मिकता की मिसाल रही, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।