बीकानेर:-सालों से बंद कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बड़ा बयान दिया है. बीकानेर के दौरे पर आए विदेश मंत्री ने पत्रकारों से बातचीत में ईटीवी भारत संवाददाता के कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होने के सवाल पर कहा कि पिछले महीने में हमारी इस मामले को लेकर बात हुई है और मैं भी मानता हूं कि यह भारत के लोगों की आस्था का केंद्र है. लोग चाहते हैं कि हमें कैलाश मानसरोवर के दर्शन का अवसर मिले.
विदेश मंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी के समय यह रास्ता बंद हो गया था. उन्होंने कहा कि कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत से तीन रास्ते हैं, जिनमें दो नेपाल से और एक सिक्किम होते हुए चीन बॉर्डर से हैं. हालांकि, यात्रा कब शुरू होगी, इसको लेकर समय सीमा के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह कहना मुश्किल है, क्योंकि यह क्षेत्र चीन के अधीन है.
बढ़ा है भारत का वैभव : पिछले 10 सालों में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही देश के लोगों के जीवन स्तर में हुए बदलाव का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि निश्चित रूप से बहुत से काम इन 10 सालों में हुए हैं और अब अगले 25 सालों का विजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देख रहे हैं. उम्मीद है कि देश की जनता अगले 5 साल के लिए एक बार फिर मोदी सरकार पर भरोसा करेगी.
बीकानेर का किया जिक्र : बीकानेर के भुजिया-रसगुल्ला के साथ ही यहां के कारपेट और वूलन इंडस्ट्री का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि निश्चित रूप से बीकानेर में काफी विस्तार की संभावना है. यहां पर्यटन के क्षेत्र में काफी कुछ काम हो सकता है और उसको लेकर आने वाले समय में काम होगा. साथ ही यहां जैतून की फैक्ट्री से निकलने वाले तेल को लेकर इजरायल के साथ भविष्य में काम होने की बात भी उन्होंने कही.
अब वह भारत नहीं : विदेश मंत्री ने कहा कि विदेश सचिव और विदेश सेवा में रहते हुए उन्होंने काफी समय बिताया है. अपने अनुभव के आधार पर भी यह कह सकते हैं कि अब वह भारत नहीं है, जो पहले दुनिया ने देखी थी और इसका सीधा उदाहरण मुंबई हमले का जवाब क्या था और उरी की सर्जिकल स्ट्राइक किसका जवाब था. यह सबको पता है.
प्रबुद्धजन सम्मलेन में की शिरकत : पत्रकारों से बातचीत के बाद विदेश मंत्री ने प्रबुद्धजन सम्मेलन में शिरकत की. इस दौरान भारत के राजनीतिक संस्कृति और विदेशी कूटनीति के मुद्दों पर अपनी बात रखते हुए जयशंकर ने कहा कि निश्चित रूप से देश की नीतियों में बदलाव हुआ है. अब सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता को लेकर भी भारत को मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है.