जयपुर:-शहरी निकायों के पार्षदों और निकाय प्रमुखों को अयोग्य होने पर अब सरकार जांच के बाद कभी भी हटा सकेगी। राजस्थान नगरपालिका संशोधन बिल 2023 में पार्षदों और निकाय प्रमुखों को अयोग्य होने पर जांच के बाद कभी भी हटाने का प्रावधान जोड़ा गया है। विधानसभा में सोमवार को बहस के बाद नगरापालिका संशोधन बिल पारित हो गया है। अब तक पार्षद, निकाय प्रमुखों को अयोग्य होने पर चुनाव याचिका दायर करके ही हटाने का प्रावधान था, चुनाव याचिका भी पार्षद के चुनाव के एक महीने के भीतर दायर करनी होती थी।
नगपालिका एक्ट की धारा 31 में पार्षद,निकाय प्रमुखों के हटाने के प्रावधान दिए हैं। उन प्रावधानों में अब एक और नया प्रावधान जोड़ा गया है। नए प्रावधान के अनुसार अगर कोई पार्षद या निकाय प्रमुख दो से ज्यादा संतान, अपने खिलाफ कोई मुकदमे सहित चुनाव लड़ने के अयोग्य होते हुए भी जीत जाता है तो जांच के बाद उसे हटाया जा सकेगा। नए प्रावधान के अनुसार अगर पार्षद के जीतने के बाद भी सरकार के यह ध्यान में आता है कि वह अयोग्यहै और जानकारी छिपाकर चुनाव लड़ा है तो उसे जांच के बाद कभी भी हआया जा सकेगा।
विधानसभा में विपक्ष ने उठाए बिल पर सवाल
शहरी निकायों के पार्षद और अध्यक्षों को हटाने के नए प्रावधान पर विपक्षी विधायकों ने बिल पर बहस के दौरान गंभीर सवाल उठाए। उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सहित कई विधायकों ने कहा कि सरकार शहरी निकायों पर अपनी मनमानी चलाना चाहती है, इसीलिए वह सदस्यों को हटाने के नए प्रावधान लाने जा रही है। यह पार्षदों को डराकर रखने का माध्यम बनेगा।
धारीवाल बोले- अयोग्य मेंबर पद पर क्यों रहे? अब जांच के बाद सरकार हआ सकेगी
यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने कहा- नगरपालिका अधिनियम की धारा 31 के तहत निर्वाचित सदस्य को हटाने का प्रावधान किया हुआ है। अभी केवल चुनाव याचिका के जरिए ही उसे हटाने का प्रावधान है इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। चुनाव याचिका भी उसके चुनाव जीतने के केवल एक महीने के भीतर भीतर पेश करनी होती है। चुनाव के एक महीने तक तो किसी को पता ही नहीं लगता कि सदस्य अयोग्य है या कोई जानकारी छिपाई है। एक महीने के बाद पता लगता है कि पार्षद अयोग्य है लेकिन पुराने प्रावधान से वह चुनाव याचिका दायर नहीं कर सकता। अब उसे हटाने का कोई उपाय नहीं होता था।
अयोग्य मेंबर को अब सरकार हटाएगी
अब तक ऐसे अयोग्य मेंबर को हटाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था। अब इन्हें हटाने की पावर सरकार इसलिए लेना चाहती है कि कोई अयोग्य मेंबर गलत जानकारी देकर जीत गया तो उसे कभी भी हटा सकें। कोई अयोग्य मेंबर पद पर क्यों रहना चाहिए? अगर अयोग्य मेंबर चुनाव जीत गया चुनाव जीत गया, जीतने के बाद एक महीने के अंदर याचिका दायर नहीं हुई तो वह 5 साल बना रहता था, क्या उसका बना रहना गलत नहीं है। सरकार यह हटाने की शक्ति इसीलिए ले रही है कि या तो 1 महीने के भीतर चुनाव याचिका दायर हो जाए। कई मामलों में अगर सरकार को एक महीने बाद पता लगेगा कि कोई व्यक्ति डिसक्वालिफाइड है और चुनाव लड़ने के काबिल नहीं था तो उसे जांच के बा हटा देंगे।