जयपुर:-राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी के कद्दावर नेता रहे गुलाबचंद कटारिया असम के राज्यपाल बन गए हैं। बुधवार को असम के मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता ने गुवाहाटी में कटारिया को राज्यपाल पद की शपथ दिलवाई। इस दौरान असम के CM हिमंत बिस्वा, राजस्थान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ समेत बड़ी संख्या में बीजेपी नेता मौजूद रहे।
इससे पहले कटारिया मंगलवार को उदयपुर से असम के लिए परिवार के साथ चार्टर प्लेन से असम के लिए रवाना हुए थे। इस दौरान गुवाहाटी एयरपोर्ट पहुंचने पर गुलाब चंद कटारिया को रेड कार्पेट वेलकम दिया गया। असम के प्रमुख राजनेता, नौकरशाह, सेना और पुलिस के आला अधिकारी कटारिया के प्रोटोकॉल में मौजूद रहे।
बता दें कि 12 फरवरी को असम राज्यपाल के पद के लिए गुलाबचंद कटारिया के नाम का ऐलान हुआ था। जिसे 10 दिन हो चुके हैं। बीजेपी अभी तक अपना नेता प्रतिपक्ष नहीं तय कर पाई है। वहीं, असम के नवनियुक्त राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया को भाजपा ने सभी पदों से मुक्त कर दिया है। पार्टी ने उनकी विधायकी एवं नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा मंगलवार को स्वीकार कर लिया। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने यह जानकारी दी। हालांकि, सदन में पार्टी का नेता कौन होगा, यह अभी तय नहीं किया जा सका है।
79 साल के कटारिया 30 साल से लगातार विधायक
गुलाबचंद कटारिया का जन्म 13 अक्टूबर 1944 को राजसमंद के देलवाड़ा में हुआ था। कटारिया ने एमए, बीएड और एलएलबी तक पढ़ाई की है। उनकी पांच बेटियां हैं। हायर एजुकेशन के बाद वे उदयपुर में प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे थे। कॉलेज के समय में आरएसएस से जुड़ गए। कटारिया जनसंघ के दिग्गज नेता सुंदरसिंह भंडारी और भानुकुमार शास्त्री के साथ काम करने लगे थे।
कटारिया 1993 से लगातार विधायक हैं। उदयपुर विधानसभा सीट से 2003 से 2018 तक लगातार चार बार चुनाव जीते। 1993 में भी उदयपुर शहर से विधानसभा चुनाव जीते थे। 1998 में भी कटारिया ने विधानसभा चुनाव जीता था, मगर तब वे बड़ी सादड़ी सीट से चुनाव लड़े थे।
पैसों की जरूरत पड़ी तो नौकरी करने लगे थे कटारिया
गुलाबचंद कटारिया की छवि एक बेबाक और ईमानदार नेता की है। कटारिया के बारे में एक किस्सा है। विधायक बनने के बाद भी कटारिया को जब पैसे की जरूरत पड़ी तो वे उदयपुर में नौकरी करने लग गए थे। जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उनके नौकरी करने के बारे में पता लगा तो उन्हें समझाया कि पार्टी के लिए यह ठीक नहीं रहेगा कि आप जैसा नेता नौकरी करे। काफी समझाने के बााद वे नौकरी छोड़ने को तैयार हुए।
मोटरसाइकिल पर मेवाड़ का करते थे दौरा
गुलाबचंद कटारिया ने जिस दौर में राजनीति शुरू की, वह जनसंघ के लिए मुश्किल दौर था। राजनीति में उस वक्त आज के दौर की तरह पैसा नहीं था। कटारिया प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हुए ही चुनाव लड़े थे। कटारिया के पास वाहन के नाम पर एक मोटरसाइकिल हुआ करती थी, उसी से उदयपुर संभाग के आदिवासी इलाकों में पार्टी का काम करते थे।
बाद में वही मोटरसाइकिल उन्होंने उदयपुर के मावली से विधायक धर्मनरायण जोशी को दी। बीजेपी नेता सुनील भार्गव कटारिया ने उनके साथ काम करने के अनुभव को याद करते हुए कहा- गुलाबचंद कटारिया ने राजनीति से कभी पैसा नहीं कमाया।
हम जैसे कार्यकर्ताओं ने एबीवीपी के समय से ही उन्हें देखा है, किस तरह पार्टी के लिए वे दिन रात मेहनत करते थे। आदिवासी इलाकों में चुनाव लड़वाने के लिए कटारिया पाई-पाई इकट्ठा करते थे। उस वक्त आदिवासी इलाकों के उम्मीदवारों के पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं होते थे, उनके लिए फंड जुटाने में बहुत मेहनत करते थे।