Jodhpur :
हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि सार्वजनिक भर्ती में सामाजिक प्रथा के आधार पर तलाक का दावा मान्य नहीं है। सरकारी नौकरी में तलाकशुदा महिला के लिएआरक्षित कोटे से लाभ लेने के लिए महिला के लिए तलाक की डिग्री अनिवार्य है। इस फैसले के साथ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को अपास्त कर दिया।
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस कुलदीप माथुर की खंडपीठ के समक्ष राजस्थान लोक सेवा आयोग की तरफ से हाईकोर्ट की एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। एकल पीठ के समक्ष अनुसूचित जनजाति औरआदिवासी उपयोजना क्षेत्र के कुछ अपीलार्थियों ने याचिका दायर की थी। इसमें यह तय करना था कि क्या एक आवेदक जिसने समाज में प्रचलित प्रथागत तलाक लिया है, क्या वह कोर्ट की डिग्री के बगैर सरकारी नौकरी में तलाकशुदा महिला के आरक्षित कोटे के तहत आवेदन कर सकता है। इन लोगों ने तलाकशुदा के रूप में आवेदन किया था, लेकिन दस्तावेज सत्यापन के दौरान उनके आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिए गए कि उनके पास आवेदन करने की अंतिम तिथि तक किसी कोर्ट से तलाक की डिग्री नहीं थी। अयोग्य करार दिए जाने को लेकर कुछ लोगों ने हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष अपील की। एकल पीठ ने उन्हें यह कहते हुए अनुमति प्रदान कर दी कि ये लोग अनुसूचित जनजाति से है. ऐसे में न पर हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2(2) के प्रावधान लागू नहीं होते। ऐसे में तलाक की डिग्री की अनिवार्यता इन पर लागू नहीं होती।