New Delhi :
राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए जारी चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अब 6 दिसंबर को सुनवाई करेगी। उस दिन कोर्ट यह परीक्षण करेगी कि क्या मामले को बड़ी पीठ को सौंपा जाना चाहिए? उधर, केंद्र सरकार ने आज योजना का बचाव करते हुए इसे पूरी तरह पारदर्शी बताया।
एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और अन्य याचिकाकर्ताओं ने चुनावीबॉन्ड योजना को जनहित याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाओं में योजना को कालेधन को बढ़ावा देने वाली बताया है। इस योजना को केंद्र सरकार ने वित्त अधिनियम 2017 के जरिए लागू किया है। इसमें गुमनाम चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा देने का प्रावधान है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को चंदा देने की इस योजना के तहत कालाधन या बेहिसाबी राशि देने का कोई व्यवस्था नहीं है
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यह अहम मामला है। उन्होंने एटॉर्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल से सुनवाई में मदद मांगी। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा प्राप्त करने का तरीका पूरी तरह पारदर्शी है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था राजनीतिक दलों को नकद चंदा देने के विकल्प के तौर पर लाई गई है। इसका मकसद राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है।
प्रशांत भूषण ने 5 अप्रैल को रखा था एडीआर का पक्ष
एडीआर की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पांच अप्रैल को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण के समक्ष मामले का उल्लेख किया था और कहा था कि यह मामला बहुत ही गंभीर है और इस पर त्वरित सुनवाई की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने उस समय एनजीओ की याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी, लेकिन इसे अब तक सूचीबद्ध नहीं किया जा सका था।