होलिका दहन 13 मार्च 2025 गुरुवार

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फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी गुरुवार दिनांक 13 मार्च 2025 को प्रदोष काल व्यापिनी पूर्णिमा होने के कारण इसी दिन होलिका दहन किया जाएगा इस दिन सुबह 10:36 से रात्रि 11:31 तक भद्रा रहेगी भद्रा होने के कारण रात्रि 11:31 के पश्चात होलिका दहन किया जाएगा रात्रि 11:31 से 12:40 तक होलिका दहन होगा निर्णय सिंधु में इसको लेकर के एक श्लोक भी आता है
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्राम॔ दहति फाल्गुनी।
अर्थात् भद्रा में रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए। यहाँ श्रावणीपद से रक्षा बंधन और फाल्गुनी पद से होलिकादाह अभिप्रेत है तथा इस श्लोक का अर्थ है कि भद्रा में रक्षाबंधन और होलिका दाह नहीं करना चाहिए,
भद्रा में रक्षाबंधन करने पर राजा या जिसका रक्षाबंधन किया जाता है उसकी हानि होती है तथा होलिकादाह करने पर ग्राम दाह होता है। इस श्लोक का तात्पर्य भद्रा में रक्षाबंधन के निषेध में है।
देश कल का स्मरण करके होलिका दहन के लिए संकल्प करें
मैं मेरे परिवार सहित ढूंढा राक्षसी की प्रसन्नता के लिए तथा उसे जो पीड़ा होती है उसके नाश के लिए होलिका का पूजन करता हूं होलिका को अग्नि से प्रज्वलित करके प्रार्थना करें
राक्षसी के भाई से त्रसित हुए अज्ञानी पुरुषों ने तेरी रचना की थी अतः हे भूते में तेरी पूजा करता हूं तू हमको ऐश्वर्य प्रदान करो इस प्रकार से होलिका की पूजा करके और अपने परिवार की सुख समृद्धि खुशियली और रक्षा के लिए प्रार्थना करें
पूजा कैसे करे पूजा की कुल सामग्री यहां इकट्ठी करें और प्रहलाद की होली का और भगवान नरसिंह की पूजा करें और उसमें अग्नि प्रज्वलित करें नरसिंह भगवान से प्रार्थना करें और होलिका की आग में गेहूं चने की बालियां नारियल गोबर के उपले आदि डालें होली में गुलाल और जल चढ़ाएं और होलिका की परिक्रमा करे होलिका की आग शांत होने के बाद उसकी राख को घर ले जाएं इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है इसमें गूगल लोबान आदि डाल करके अपने घर में घुमाए अगर घर में वास्तु दोष हैं तो इसकी राख को अग्नि कोण में रखें होलिका दहन की ज्वाला देखने के बाद ही भोजन करें बच्चों को अलग-अलग प्रकार के पकवान बनाकर के खिलाएं उनको पूरी खीर मालपुआ हवा और कचोरी आदि खिलाएं इससे पूरे साल घर में सुख शांति समृद्धि बनी रहती है होलिका दहन के दिन हनुमान जी की पूजा करने का भी महत्व बताया गया है इससे साल भर में शुभ परिणाम मिलते हैं इसके अलावा आज पूरे परिवार के साथ में चंद्रमा के दर्शन करने चाहिए इससे अकाल मृत्यु का भयभीत समाप्त हो जाता है

होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद और उसके दुष्ट पिता राजा हिरण्यकशिपु से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था, जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था. हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन जब वह असफल रहा, तो उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती. उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई. इसी घटना की स्मृति में प्रतिवर्ष होलिका दहन का आयोजन किया जाता है.