इंफाल:-विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के सांसदों की एक टीम 29-30 जुलाई को मणिपुर का दौरा करेगी। इस दौरान वे हिंसा पीड़ितों से मुलाकात करेंगे। इससे पहले राहुल गांधी भी मणिपुर जा चुके हैं।
उधर, मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने का वीडियो वायरल होने के बाद हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं। थोरबंग और कांगवे में गुरुवार सुबह से फायरिंग हो रही है। दोनों जगहों पर मैतेई और कुकी आमने-सामने हैं।
मणिपुर के CM मिजोरम में कुकी समर्थक रैली से नाराज
हिंसा के बीच मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने मिजोरम में कुकी समुदाय के समर्थन में निकाली गई रैली पर नाराजगी जाहिर की है। इस रैली में मिजोरम के CM जोरमथांगा ने भी हिस्सा लिया था। बीरेन सिंह ने कहा कि जोरमथांगा को दूसरे राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
CM सिंह ने कहा, ‘यह राज्य सरकार की ड्रग कार्टेल के खिलाफ लड़ाई है। मणिपुर सरकार राज्य में रहने वाले कुकी समुदाय के खिलाफ नहीं है। राज्य सरकार मणिपुर में होने वाली सभी घटनाओं पर नजर रख रही है। उन लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन ले रही है, जो मणिपुर की अखंडता को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।’
हिंसा के बाद से 13 हजार कुकी मिजोरम पहुंचे
हिंसा की वजह से मणिपुर से कुकी-जोमी समुदाय के करीब 13 हजार लोगों ने पलायन कर पड़ोसी राज्य मणिपुर में शरण ली है। दरअसल, मिजोरम के मिजो जनजाति का म्यांमार के कुकी-जो जनजाति और चिन समुदाय के साथ मजबूत संबंध है। यही वजह है कि यहां कुकी समुदाय के समर्थन में रैली निकाली गई।
मणिपुर में पिछले 2 दिनों में हिंसा की 2 घटनाएं…
26 जुलाई: गांव में आगजनी, फायरिंग
26 जुलाई को म्यामांर बॉर्डर के करीब मोरे गांव के घरों में आगजनी और फायरिंग हुई। मोरे गांव म्यांमार बॉर्डर से लगा हुआ है। इसमें गांव में कुकी और मैतेई दोनों समुदायों के लोग रहते हैं। हालांकि, कुकी लोगों की संख्या ज्यादा है।
25 जुलाई: सुरक्षाबलों की बस में आग लगाई
कांगपोकपी जिले में भीड़ ने 25 जुलाई को सुरक्षाबलों की दो बसें जला दीं। अधिकारियों ने बताया कि शाम को दो बसें दीमापुर से आ रही थीं। भीड़ ने उन्हें रोका और चेक किया कि उनमें विरोधी समुदाय के लोग तो नहीं हैं। इस बीच बसों में आग लगा दी गई। घटना में किसी के हताहत होने की जानकारी नहीं है।
मणिपुर पुलिस ने कहा- सेना की बसें जलाने के आरोप में एक नाबालिग समेत 9 लोगों को अरेस्ट किया गया है। उधर महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के वायरल वीडियो वाले मामले में अब तक 7 आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं।
हिंसा के बीच सुरक्षा बलों के लिए परेशानी बनी मीरा पाइबी की महिलाएं
1. जवानों को आगे नहीं बढ़ने देतीं
मणिपुर में मीरा पाइबी (महिला मशाल वाहकों का समूह) सैन्य बलों को कार्रवाई से रोक रहा है। जब भी जवान उपद्रवियों पर कार्रवाई के लिए आगे बढ़ते हैं तो महिलाएं दीवार बनकर खड़ी हो जाती हैं। इनकी संख्या दो से तीन हजार तक होती है। इसलिए जवान भी बल प्रयोग नहीं करते।
असम रायफल्स से जुड़े एक अधिकारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि इस समूह में कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं जो नग्न प्रदर्शन करने की धमकी देने लगती हैं। जब सेना का काफिला पहाड़ियों में आगे बढ़ता है तो ये लाठी लेकर आती हैं। सैन्य अधिकारियों से उनके पहचान पत्र मांगती हैं।
2. इनसे निपटने के लिए महिला जवानों की जरूरत
इंफाल के कई चौराहों पर मीरा पाइबी महिलाओं को गुटों में देखा जा सकता है। ये गंभीर अपराधों को अंजाम देने में मदद भी कर रही हैं। इनसे निपटने के लिए यहां बड़ी संख्या में महिला जवानों की जरूरत है। अभी राज्य में CRPF की तीन, RAF की 10 कंपनियां और 375 प्लाटून हैं।
CRPF की एक कंपनी में 75 और RAF महिला प्लाटून में 15 जवान होती हैं, जो सड़कों पर गश्त कर रहीं सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं का मुकाबला करने के लिए नाकाफी हैं। हाल में इंफाल के बाहरी इलाके में एक नगा मारिंग महिला की हत्या में 5 मीरा पाइबी महिलाओं को गिरफ्तार किया है।
3. अन्याय के खिलाफ बना था मीरा पाइबी समूह
पारंपरिक तौर पर मीरा पाइबी मणिपुर में किसी भी सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई में पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाने वाली महिलाओं का समूह है। जब कोई विपरीत सामाजिक परिस्थिति बनती है तो मणिपुर में हर महिला मीरा पाइबी बन जाती है, जो समुदायों को प्रभावित करती है।
4. सेना की जिम्मेदारी… यहां सिर्फ शांति स्थापित करना
मणिपुर में 3 मई के बाद से असम रायफल्स और सेना की 170 टुकड़ियां तैनात हैं। अमूमन एक टुकड़ी में 40 से 50 जवान होते हैं। BSF, मणिपुर पुलिस कमांडो, पुलिस के हजारों जवान मोर्चे पर हैं। असम रायफल्स का काम शांति स्थापित करना है।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नगा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।