मंत्री, सांसद और विधायकों की परेशानी सुनेंगे IAS:तीन दिन के लिए जिलों में जाने के आदेश दिए, गहलोत को रिपोर्ट देंगे

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जयपुर :

राजस्थान में डेढ़ महीने से जारी राजनीतिक अस्थिरता के माहौल, ब्यूरोक्रेट्स पर राजनेताओं के जुबानी हमलों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर ब्यूरोक्रेसी को कसना शुरू कर दिया है। गहलोत ने हिमाचल प्रदेश के चुनावी दौरे पर जाने से पहले प्रदेश के सभी जिलों के प्रभारी सचिवों (आईएएस अफसर) को तीन दिन के लिए जिलों में रवाना होने के आदेश दिए थे। अब सभी प्रभारी सचिव बुधवार शाम को जिलों के लिए रवाना होंगे। 10, 11 व 12 नवंबर तक जिलों में रहकर प्रशासनिक मशीनरी को दुरुस्त करेंगे। वे जिले के सांसदों, मंत्रियों, विधायकों से भी मिलेंगे। उनकी समस्याओं-शिकायतों की रिपोर्ट भी मुख्यमंत्री को पेश करेंगे।

मुख्यमंत्री 13 व 14 नवंबर को सचिवालय में उनसे व्यक्तिगत (एक-एक सचिव से अलग-अलग) मुलाकात करेंगे। प्रभारी सचिवों का यह विशेष दौरा करीब 5 महीने बाद हो रहा है। यूं उन्हें महीने में एक बार जाना होता है, लेकिन राजस्थान में लगातार चल रहे राजनीतिक उठा-पटक के माहौल का असर सूबे की नौकरशाही पर भी पड़ा है।

गहलोत अब चुनावी साल की तैयारी में जुटे हैं, ऐसे में वे जिलों का सटीक फीडबैक चाहते हैं। यह फीडबैक जब राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलता है, तो वो एक बायस्ड एप्रोच होती है। ऐसे में गहलोत ने जिलों के राजनीतिक-प्रशासनिक तापमान को मापने के लिए ब्यूरोक्रेसी के थर्मामीटर का उपयोग करना बेहतर समझा है।

गहलोत व मुख्य सचिव ऊषा शर्मा ने सभी प्रभारी सचिवों को केवल ऑफिस में मीटिंग लेकर दौरों को करने की रस्म अदायगी से बचने की सलाह भी दी है। सचिवों को कहा गया है कि वे मीटिंग तो करें, लेकिन साथ ही जिलों में फील्ड में जाकर भी विभिन्न फ्लैगशिप योजनाओं को देखें और स्थानीय लोगों से सरकार व प्रशासन का फीडबैक भी लें। केवल कलेक्टरों द्वारा दिखाए जाने वाले पावर पॉइंट प्रजेन्टेशन, रिपोर्ट, वीडियो, फोटो आदि पर ही निर्भर ना रहें। गहलोत प्रभारी सचिवों से चाहते हैं कि वे असली और जमीनी हकीकत सामने लाएं।

जानिए… किस जिले को कौन IAS प्रभारी सचिव

जयपुर में सुधांश पंत, अजमेर में अपर्णा अरोड़ा, अलवर में शिखर अग्रवाल, बांसवाड़ा में राजेन्द्र भट्‌ट, सवाई माधोपुर में समित शर्मा, जैसलमेर में के. के. पाठक, बूंदी में मुग्धा सिन्हा, भीलवाड़ा में नवीन महाजन, बारां में आरुषि मलिक, चित्तौड़गढ़ में जोगाराम, डूंगरपुर में दिनेश कुमार यादव, धौलपुर में कैलाश चंद मीणा, कोटा में कुंजीलाल मीणा, करौली में सांवरमल वर्मा, नागौर में वीणा प्रधान, पाली में श्रेया गुहा, जोधपुर में जितेन्द्र उपाध्याय, प्रतापगढ़ में नवीन जैन, राजसमंद में भास्कर सावंत, दौसा में गायत्री राठौड़, सिरोही में पी. सी. किशन, टोंक में संदीप वर्मा, उदयपुर में आनंद कुमार, झुन्झुनूं में भानू प्रकाश एटरू, भरतपुर में टी. रविकांत, चुरू में नीरज पवन, झालावाड़ में दीपक नंदी, सीकर में दिनेश कुमार, बीकानेर में आलोक गुप्ता, बाड़मेर में राजेश शर्मा, जालोर में आशुतोष पेडनेकर, श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ में अरुणा राजौरिया को प्रभारी सचिव लगाया गया है।

प्रभारी सचिव का मतलब क्या? क्या काम होता है जिम्मे?

राज्य के प्रशासनिक तंत्र और नौकरशाही में जिलों के प्रभारी सचिव बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। वे जिलों में सरकारी योजनाओं और स्थानीय प्रशासन के विषय में सरकार और राजनीतिक नेतृत्व (मुख्यमंत्री) के लिए आंख-कान होते हैं। वे जिले के ग्रामीण क्षेत्र से लेकर जिला मुख्यालय तक के प्रशासनिक ढांचे के बारे में राजधानी में स्थित सचिवालय तक को अपडेट करने का काम करते हैं।

इस वक्त फीडबैक जरूरी

राजस्थान में एक उप चुनाव महीने भर में होना है। कांग्रेस पार्टी की सरकार है। ऐसे में पार्टी व सरकार इन दिनों राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तैयारियां कर रही है। पार्टी के 92 विधायकों के इस्तीफे भी विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष विचाराधीन हैं। अगले एक वर्ष में चुनाव होने हैं। ऐसे में जिलों में चल रही फ्लैगशिप योजनाओं का फीडबैक इस समय लेना बहुत जरूरी है।

प्रभारी सचिवों की रहेगी इन फ्लैगशिप योजनाओं पर खास नजर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को हर हाल में रीपीट करना चाहते हैं। इसके लिए वे कई बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार की मुख्य ताकत उनकी फ्लैगशिप योजनाएं हैं। राजस्थान में 100 से अधिक फ्लैगशिप योजनाएं संचालित हैं, लेकिन 5 ऐसी योजनाएं हैं, जो गहलोत सरकार की सबसे मजबूत आधार हैं और देश भर में लोकप्रिय भी हैं। हाल ही इंदिरा रसोई योजना के संचालन, चिरंजीवी योजना और उड़ान योजना में बहुत सी शिकायतें मिली थीं। ऐसे में मुख्यमंत्री ने यह निर्णय किया है और प्रभारी सचिवों को दौरे पर भेजा जा रहा है, ताकि प्रशासनिक मशीनरी को समय रहते कस लिया जाए।

हाल ही गहलोत ने निजी अस्पतालों द्वारा गरीबों का इलाज ना करने के बारे में तीखी टिप्पणियां की थीं। उन्होंने प्रदेश के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल में स्वयं के भर्ती रहने के दौरान गंदगी और अव्यवस्थाओं के चलते शर्म से सर झुक जाने जैसी बातें भी कही थी। गहलोत आम जन के मुफ्त इलाज के लिए मुफ्त दवा और चिरंजीवी योजनाएं चला रहे हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पूरे देश में चिरंजीवी योजना को लागू करने का आग्रह भी कर चुके हैं। ऐसे में प्रभारी सचिवों को चिरंजीवी योजना की विशेष मॉनिटरिंग और समीक्षा करने के निर्देश दिए गए हैं। देश के किसी भी राज्य में 10 लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त उपलब्ध करवाने वाली कोई और योजना नहीं है। इस योजना में शामिल लोगों को 10 लाख रुपए तक का इलाज पूर्णत: मुफ्त मिलता है। इसमें विधायक दिव्या मदेरणा ने गत दिनों मरीजों को सही इलाज नहीं मिलने की शिकायत की थी।

इस योजना के तहत प्रदेश भर लाखों लोगों को रोजाना मात्र 8 रुपए प्रति प्लेट की दर से भोजन मिलता है, जिसमें दाल, रोटी, चावल और सब्जी शामिल है। इसकी जांच स्वयं मुख्यमंत्री गहलोत ने अपनी पत्नी सुनीता गहलोत, जलदाय मंत्री महेश जोशी के साथ जयपुर में भोजन करके की थी, लेकिन हाल ही भरतपुर में आवारा सुअरों द्वारा इंदिरा रसोई को दूषित करने की शिकायत सामने आई थी। इसके बाद गहलोत ने उच्च स्तर तक अफसरों को निर्देश दिए हैं कि गरीबों के भोजन की व्यवस्था करना बहुत पुण्य काम है, इसमें किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने अफसरों के साथ मंत्रियों, विधायकों को भी अपने-अपने क्षेत्रों में संचालित इंदिरा रसोई को संभालने की बात कही है। हाल ही उदयपुर में स्वायत्त शासन सचिव जोगाराम ने इंदिरा गांधी रसोई में स्वयं जाकर टिकट कटाकर भोजन किया है। अब प्रभारी सचिव भी अपने-अपने प्रभार वाले जिलों में यही करेंगे।

इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित नरेगा की तर्ज अब शहरी क्षेत्रों में भी बेरोजगार मजदूरों को न्यूनतम 100 दिनों के लिए गांरटीड रोजगार मिलेगा। इस योजना का उद्घाटन हाल ही स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया था। यह योजना बिल्कुल नई है, लेकिन राहुल गांधी को यह इतनी पसंद आई है, कि उन्होंने गुजरात चुनावों के बीच वादा किया है कि अगर वहां कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो वे इसे वहां भी लागू करवाएंगे। प्रभारी सचिवों को इस योजना के तहत कलेक्टरों से एडवांस रिपोर्ट मांगनी है। इस योजना से आम गरीब व मजदूर वर्ग लाभांवित होता है। यह एक बड़ा वोट बैंक है, जिसका फीडबैक सरकार के लिए बहुत जरूरी है।

मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल (2008-2013) में इसे लागू किया था। इसके तहत 58 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुष और 55 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं पात्र हैं। उनकी पेंशन 750 से रुपए प्रतिमाह शुरू होती हैं। 65 वर्ष की उम्र पर यह 1000 रुपए प्रतिमाह मिलती है। इसमें अनियमितताओं की शिकायतें लगातार सरकार को हर जिले से मिल रही है। गहलोत ने गत दिनों सचिवालय में एक मीटिंग में इस योजना पर विशेष अब जल्द ही गहलोत इस योजना के तहत पेंशन राशि की वृद्धि करने वाले हैं। राशि बढ़ाकर कितनी की जाए और कैसे राज्य के प्रत्येक जरूरतमंद बुजुर्ग को इसमें कवर किया जाए, इसका फीडबैक प्रभारी सचिवों से लिया जाएगा।

इस योजना के तहत किशोरियों-युवतियों को स्कूल-कॉलेजों में मुफ्त सेनेटरी पैड दिए जाते हैं। इस योजना के तहत हाल ही सरकार को सेनेटरी पैड की खराब गुणवत्ता की शिकायत मिली थी। अलवर जिले में इसकी शिकायत सामने आई थी। गहलोत ने इस योजना को फरवरी-2022 में लागू किया था। इस योजना के तहत लगातार सेनेटरी पैट की गुणवत्ता खराब होने की शिकायतें आ रही हैं। गहलोत अपनी कैबिनेट की महिला सदस्यों और महिला विधायकों को भी इस योजना का प्रचार-प्रसार करने के लिए कह चुके हैं। वे उनसे जल्द ही एक मीटिंग कर अलग से फीडबैक लेंगे। फिलहाल प्रभारी सचिव इसके लिए जिलों में स्कूल-कॉलेजों का दौरा कर युवा छात्राओं से भी जानकारी लेंगे।

आईएएस अफसरों की शिकायतों के बीच मंत्रियों-विधायकों से भी चर्चा करेंगे प्रभारी सचिव

प्रदेश की राजनीति में अचानक आईएएस अफसरों के रवैये, व्यवहार, सोच की शिकायतें लगातार मंत्री व विधायकों के स्तर पर हो रही हैं। जिलों में स्थानीय मंत्री, प्रभारी मंत्री, स्थानीय सांसद-विधायक और कांग्रेस के पदाधिकारियों के बीच खट-पट की बातें लगातार सामने आ रही हैं। हाल ही खाद्य व रसद मंत्री प्रताप सिहं खाचरियावास ने पहले जयपुर के पूर्व जिला कलेक्टर अंतर सिंह नेहरा की शिकायत की थी और अब वे आईएएस अफसरों की एसीआर भरने का मुद्दा उठा रहे हैं। अजमेर जिले में कलेक्टर अर्शदीप द्वारा जन प्रतिनिधियों को सम्मान नहीं देने का मामला भी सामने आ चुका है।

चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा का अपने ही गृह जिले में आरएएस अफसर से विवाद सुर्खियों में है। इससे पहले सैनिक कल्याण मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा, विधायक संयम लोढ़ा, विधायक दिव्या मदेरणा भी अफसरों पर लगाम कसने की पैरवी कर चुके। इनके अलावा भी पिछले दिनों भीलवाड़ा, उदयपुर, बांसवाड़ा, जोधपुर, बीकानेर, सीकर, भरतपुर, जयपुर आदि कई जिलों में राजनेताओं और आईएएस-आरएएस अफसरों के बीच विवाद सामने आते रहे हैं।

गहलोत चाहते हैं कि चुनावी वर्ष में राजनीतिक नेतृत्व और ब्यूरोक्रेसी के बीच संबंध बेहतर रहने बहुत जरूरी है, अन्यथा सरकार की योजनाओं की सही से लागू करना संभव नहीं हो पाता है। प्रभारी सचिव जिलों में स्थानीय मंत्रियों, सांसदों, विधायकों से भी बात करेंगे और उनका फीडबैक मुख्यमंत्री गहलोत को देंगे।

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