बेंगलुरु:-भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने आज नेविगेशन सैटेलाइट NVS-01 लॉन्च किया। इसे जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी GSLV-F12 से अंतरिक्ष में भेजा गया। ये सैटेलाइट उन 5 सेकेंड जनरेशन सैटेलाइट्स का हिस्सा है जिसे आने वाले दिनों में लॉन्च किया जाएगा।
इसरो ने 7 सैटेलाइट का रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम बनाया है जिसका नाम NavIC है। इसे अब और ज्यादा सैटेलाइट जोड़कर बढ़ाया जा रहा है। NavIC को 2006 में अप्रूव किया गया था। इसके 2011 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन ये 2018 में ऑपरेशनल हो पाया।
अमेरिका ने मदद करने से इनकार कर दिया था
1999 में कारगिल वॉर के दौरान भारत सरकार ने घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की पोजीशन जानने के लिए अमेरिका से मदद मांगी थी। तब अमेरिका ने GPS सपोर्ट देने से मना कर दिया था। इसके बाद से ही भारत अपना नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम बनाने में जुट गया था।
तीन फायदे जो नाविक से भारत को मिलेंगे
- जोमैटो और स्विगी जैसे फूड डिलीवरी और ओला-उबर जैसी सर्विसेज नेविगेशन के लिए GPS का इस्तेमाल करती हैं। NavIC इन कंपनियों के लिए नेविगेशन सब्सक्रिप्शन कॉस्ट को कम कर सकता है और एक्यूरेसी बढ़ा सकता है।
- NavIC से अमेरिका के जीपीएस पर निर्भरता कम होगी और इंटरनेशनल बॉर्डर सिक्योरिटी ज्यादा बेहतर होगी। खास तौर पर चक्रवातों के दौरान मछुआरों, पुलिस, सेना और हवाई/जल परिवहन को बेहतर नेविगेशन सिक्योरिटी मिलेगी।
- NavIC टेक्नोलॉजी ट्रैवल और टूरिज्म इंडस्ट्री को मदद कर सकती है। इसके जरिेए टूर को ज्यादा इनफॉर्मेटिव और इंटरैक्टिव बनाकर गेस्ट का एक्सपीरियंस और ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है। आम लोग लोकेशन के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
रॉकेट ने सुबह 10:42 बजे उड़ान भरी
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से सुबह 10:42 बजे GSLV ने उड़ान भरी। लॉन्च के करीब 18 मिनट बाद रॉकेट से पेलोड अलग हो जाएगा। इसने एनवीएस-1 सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में डिप्लॉय किया गया। इसके बाद इंजीनियरों ने सैटेलाइट को सही ऑर्बिट में प्लेस करने के लिए ऑर्बिट-रेजिंग मैनुवर परफॉर्म किए गए।
7 सैटेलाइट का कॉन्सटेलेशन है नाविक
इसरो ने नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NavIC) नाम के एक रिजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम को डेवलप किया है। 7 सैटेलाइट का कॉन्सटेलेशन 24×7 ऑपरेट होने वाले ग्राउंड स्टेशनों के साथ मिलकर काम करता है। NavIC को पहले इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) के रूप में जाना जाता था।
NavIC का अभी का वर्जन L5 और S बैंड के साथ कॉम्पेटिबल है। यह इंटरनेशनल फ्रीक्वेंसी कोऑर्डिनेशन और कॉम्पेबिलिटी के अनुसार है। L1 बैंड सिविलियन सेक्टर में तेजी से पैठ बनाने में मदद करेगा। NVS-01 और आगे के सभी सैटेलाइट में L1 बैंड होगा।
NavIC दो सर्विसेज प्रोवाइड करता है:
1. सिविलियन के लिए स्टैंडर्स पोजीशन सर्विस यानी SPS
2. स्ट्रैटजिक यूजर्स के लिए रेस्ट्रिक्टेड सर्विस यानी RS
NavIC को क्यों डेवलप किया गया?
देश में सिविल एविएशन सेक्टर की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए ये सिस्टम डेवलप किया गया है। ये नेटवर्क भारत और उसकी सीमा से 1500 किमी तक के क्षेत्र को कवर करता है। इसका इस्तेमाल टेरेस्टियल, एरियल और मरीन ट्रांसपोर्टेशन, लोकेशन बेस्ड सर्विसेज, पर्सनल मोबिलिटी, रिसोर्स मॉनिटरिंग और साइंटिफिक रिसर्च के लिए किया जाता है।
नाविक की पोजीशन एक्यूरेसी सामान्य यूजर्स के लिए 5-20 मीटर और सैन्य उपयोग के लिए 0.5 मीटर है। इसकी मदद से एनिमी टारगेट पर ज्यादा एक्यूरेसी से अटैक किया जा सकता है। वहीं ये एयरक्राफ्ट और शिप के साथ रोड पर चलने वाले यात्रियों की मदद करता है। गूगल की तरह विजुअल और वॉइस नेविगेशन फीचर भी इसमें मिलते हैं।
नेविगेशन के लिए किस देश के पास कौन सी टेक्नोलॉजी?
- इंडिया: नाविक
- अमेरिका: GPS
- यूरोप: गैलिलियो
- रूस: GLONASS
- चीन: BeiDou
- जापान: QZSS
जीपीएस का काम
मोबाइल में जीपीएस रिसीवर होता है। जब हम लोकेशन ऑन करते हैं तो यह अमेरिका के 31 सैटेलाइट से सीधे तौर पर कनेक्ट हो जाता हैं। सैटेलाइट को आपकी पोजीशन मिलती है और आपको सैटेलाइट से मैप। अब यह काम हमारा नाविक भी कर सकता है।
गूगल मैप है तो नाविक की किया जरूरत?
नाविक की पोजीशन एक्यूरेसी सामान्य यूजर्स के लिए 5-20 मीटर है। यानी अगर आप किसी लोकेशन को सर्च करते हैं तो उस लोकेशन की एक्यूरेसी 5 मीटर से 20 मीटर के आस-पास होगी। वहीं गूगल मैप्स लोकेशन सर्च के लिए जीपीएस का इस्तेमाल करता है।
इसकी पोजीशन एक्यूरेसी 20 मीटर है। यानी अगर आप किसी लोकेशन को सर्च करते हैं तो उस लोकेशन की एक्यूरेसी 20 मीटर के आस-पास होगी। इस हिसाब से देखे तो नाविक की पोजीशन एक्यूरेसी ज्यादा बेहतर है। नाविक अभी रीजनल है इसे ग्लोबल ले जाने का प्लान है।