जयपुर : राजस्थान के जयपुर की महारानी गायत्री देवी की वसीयत को लेकर चल रहे मामले में गायत्री देवी के पोते देवराज और लालित्या को राहत मिली है। कोर्ट ने अस्थाई निषेधाज्ञा के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया।
जयपुर के अतिरिक्त जिला न्यायालय क्रम- दो महानगर प्रथम ने पूर्व राजमाता गायत्री देवी की वसीयत के मामले में उनके पोते देवराज और लालित्या को राहत दी है। अदालत ने इस संबंध में विजित सिंह, उर्वशी देवी और पृथ्वीराज की ओर से दायर अस्थाई निषेधाज्ञा के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है।
कोई भी निर्णय लेने से रोकने की गुहार लगाई थी
इस प्रार्थना पत्र में गुहार की गई थी कि वसीयत के मामले में फैसला आने तक इसमें बताई संपत्ति के बारे में देवराज और लालित्या को कोई भी निर्णय लेने से रोका जाए। गौरतलब है कि पूर्व राजपरिवार के सदस्य पृथ्वीराज, विजित सिंह और उर्वशी देवी ने गायत्री देवी की वसीयत को अवैध घोषित कराने के लिए करीब 11 वर्ष पूर्व दावा पेश किया था। उल्लेखनीय है कि गायत्री देवी ने वर्ष 2009 में वसीयत के माध्यम से अपनी तमाम संपत्ति और अधिकार जगत सिंह के पुत्र देवराज और लालित्या को सौंप दिए थे। दावाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि जगत सिंह गायत्री देवी का बेटा नहीं था। उन्हें बहादुर सिंह को गोद दे दिया गया था। एक बार दत्तक जाने के बाद वह हमेशा दत्तक ही रहता है। वापस उस परिवार में नहीं आता है।
क्या है पूरा मामला
जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी की हजारों करोड़ की संपत्ति को लेकर चल रहा ये मामला हमेशा से चर्चा का विषय रहा है. इससे पहले कोर्ट में दायत हुई एक याचिका में कहा गया था कि जगत सिंह का विवाह थाईलैंड की मॉम प्रियनंदना रंगासीत से हुआ था. जगत सिंह की मौत से पहले जो वसीयत बनाई उसमें गायत्री देवी के सारी संपत्ति का अधिकार जगत सिंह के पास बताया गया. 29 जुलाई 2009 को गायत्री देवी का निधन हो गया था. याचिका में दावा किया गया था कि उन्होंने एक वसीयत छोड़ी थी इसमें कहा गया है क्योंकि पोते-पोती ही सारी संपत्ति के मालिक होंगे, लेकिन दूसरी तरफ सवाई मानसिंह के दूसरी पत्नी के दो बेटे पृथ्वीराज सिंह और जयसिंह ने एक नया वसीयतनामा पेश किया जिसमें कहा गया कि गायत्री देवी ने अपनी मौत से पहले अपनी संपत्ति का मालिक उन्हें बनाया है.