जयपुर : राजस्थान में जयपुर के पास कालाडेरा के पास छोटे से गांव नृसिंहपुरा में 8 दिसंबर को हुई अनूठी शादी इन दिनों चर्चा में हैं। यहां की एक युवती पूजासिंह शेखावत ने ठाकुरजी से ब्याह रचाया है। लोग उन्हें आज की मीरा कहने लगे हैं। पालिटीकल साइंस से एमए 30 वर्षीय पूजासिंह सभी रस्में निभाते हुए गांव के मंदिर में विराजमान शालिगरामजी (ठाकुरजी) से ब्याह रचाकर अखंड सौभाग्यवती हो गई। आसपास के गांवों में चौपालों पर सुबह-शाम अलाव तापते, गर्म चाय की चुस्कियां लेते लोग अपने-अपने तरीके से इस विवाह पर अपना नजरिया रख रहे हैं। इस शादी के बारे में मीरा के एक पद को दोहराते हुए पूजासिंह कहती हैं.. ऐसाे वर क्या वरूं जो जन्म सों मर जाय, चूड़ो पहनूं श्याम को मेरो चूड़ो अमर हो जाय..!
*शादी की सारी रस्में निभाई, मां ने किया कन्यादान*
पूजा और ठाकुरजी का यह विवाह सभी रीति रिवाजों से हुआ। बाकायदा गणेश पूजन से लेकर चाकभात, मेहंदी, महिला संगीत और फेरों की रस्में हुई। ठाकुरजी को दूल्हा बनाकर गांव के मंदिर से पूजा सिंह के घर लाया गया। मंत्रोच्चार हुआ और मंगल गीत गाए गए। पिता नहीं आए तो मां ने फेरों में बैठकर कन्यादान किया। इसके बाद विदाई हुई। परिवार की ओर से कन्यादान और जुहारी के 11000 रुपए दिए गए। ठाकुर जी को एक सिंहासन और पोशाक दी गई।
*खुद ने भरी सिंदूर की जगह चंदन से मांग*
शादी में परंपरानुसार दुल्हा दूल्हन की मांग सिंदूर से भरता है, लेकिन इस शादी में यह परंपरा भी कुछ अलग तरीके से हुई। ठाकुरजी की ओर से खुद पूजासिंह ने अपनी मांग भरी। ठाकुरजी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी।
*अब जमीन पर सोती हैं, रोजाना बनाती हैं भोग*
पूजासिंह बताती हैं कि अब कोई मुझे यह ताना नहीं मार सकता कि इतनी बड़ी होकर भी कुंवारी बैठी है। मैंने भगवान को ही पति बना लिया है। शादी के बाद ठाकुरजी तो वापस मंदिर में विराजमान हो गए हैं जबकि पूजा अपने घर पर रहती है। अपने कमरे में पूजा ने एक छोटा सा मंदिर बनाया है, जिसमें ठाकुरजी हैं। वह उनके सामने अब जमीन पर ही सोती है। रोजाना सवेरे सात बजे मंदिर में विराजमान ठाकुरजी के लिए वह भोग बनाकर ले जाती हैं। जिसे मंदिर के पुजारी भगवान को अर्पित करते हैं। इसी तरह वह शाम को भी मंदिर जाती हैं।
शादी के बाद हुई भावुक
यह शादी केवल परंपराओं से नहीं जुड़ी थी बल्कि इसमें भावुकताएं भी थी। फेरों के बाद विदाई की रस्म भी हुई हालाकि पूजासिंह को अपने घर ही रहना था, लेकिन इस रस्म के दौरान पूजासिंह की आंखें भर आईं। शादी में मौजूद अन्य लोग भी भावुक हो गए। पूजा ने अपने घर की दहलीज पर धोक लगाई और विदा हुई। बाद में ठाकुरजी को वापस मंदिर में विराजमान कर दिया गया।
*धार्मिक रूप से यह विवाह मान्य*
आचार्य राकेश कुमार शास्त्री ने बताया कि भगवान विष्णु शालिग्राम जी से कन्या का विवाह शास्त्रोक्त है। जिस तरह से वृंदा तुलसी ने विष्णु भगवान का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए ठाकुरजी से विवाह किया है, यह ठीक वैसे ही है। पहले भी ऐसे विवाह होते आए हैं। कर्मठगुरु पुस्तक में विवरण पृष्ठ संख्या 75 पर दिया गया है। विष्णु भगवान से कन्या वरण कर सकती है। तुलसी विवाह भी इसी प्रकार का पर्याय है।
*बेटी के ऐसे विवाह से पिता कतई खुश नहीं थे।*
बकौल पूजा ऐसा फैसला लेना आसान नहीं था। पूजा के पिता प्रेमसिंह शेखावत इस विवाह में शामिल नहीं हुए। पर मां रतनकंवर ने बेटी का साथ दिया। मां ने ही कन्यादान से लेकर सारी रस्में निभाईं। पिता की जगह तलवार रखी। पूजा कहती हैं पापा नहीं आए मुझे बहुत दुख है, लेकिन इस शादी से मैं बेहद खुश हूं। एक दिन मैं पापा को भी मना लूंगी।
पूजा के फैसले से पिता खुश नहीं थे पर गांववालों ने साथ दिया। गांववाले ही बाराती बने। बारात पूजा के घर पर पहुंची। गांववालों ने कन्यादान लिखवाया। शादी में बान, मेहंदी, हल्दी, संगीत, वरमाला, फेरे और विदाई सहित सभी रस्में निभाई गई। शादी में पूजा की सहेलियां और रिश्तेदार भी शामिल हुए। सहेलियों ने पूजा को सजाया संवारा। उसने सहेलियों के साथ डांस भी किया। घर में रोजाना मंगलगीत गाए गए। करीब तीन सौ लोगों के लिए भोजन बनाया गया। इसमें करीब तीन लाख रुपए खर्च हुए।
*करवा चौथ, गणगौर सहित सुहागिनों के सारे तीज त्योहार मनाएगी*
पॉलिटिकल साइंस में एमए पूजा को संगीत का भी शौक है। अभी वो क्लासिकल संगीत सीख रही है। पूजा बताती है कि ठाकुरजी से ब्याह के बाद अब वो ताउम्र सुहागिन के रूप में अपने घर पर ही रहेंगी। सुहागिनों के सभी व्रत-त्योहार जैसे चौथ व्रत, तीज-गणगौर मनाएंगी।
ऐसा विवाह शास्त्र सम्मत
अनोखा विवाह करानेवाले पंडित राकेश शर्मा बताते हैं.. पूजा की कुंडली में ना कोई दोष है, ना ही उन्होंने ऐसी कोई मनौती मांगी थी। जन्म कुंडली में योग होने पर विष्णु प्रतिमा से विवाह किया जा सकता है। यह विवाह स्वयं को ईश्वर को समर्पित करना है। पूजा का ठाकुरजी से विवाह स्वयं को ईश्वर को समर्पित करने जैसा है। वैसे तो जन्म कुंडली में योग होने पर विष्णु प्रतिमा से विवाह किया जा सकता है कर्मठ गुरु पुस्तक में 75 नंबर के पेज पर इस संबंध में स्पष्ट उल्लेख है।
पढ़िए वह सब जो पूजा ने बताया ..
मेरी उम्र 30 साल हो चुकी है। अमूमन 20 से 25 साल की उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। मेरे घर में भी इसकी सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी। कॉलेज पूरी करने के बाद से ही रिश्ते आने लगे थे। लोग मेरे मम्मी-पापा को कहने लगे थे कि बेटी की अब तो शादी कर दो, लेकिन मेरा मन इसके लिए तैयार नहीं था। मैंने बचपन से ही देखा है कि बेहद मामूली बात पर पति-पत्नी के बीच झगड़े हो जाते थे, विवादों में उनकी जिदंगी खराब हो जाती थी और इनमें महिलाओं को बहुत ही बुरी स्थिति का सामना करना पड़ता था। बड़ी होते होते मैंने निर्णय कर लिया था कि मैं शादी नहीं करूंगी। कुछ लड़के वाले देखने भी आए, एक दो बार तो रिश्ता जैसे-तैसे टल गया,लेकिन जब बार-बार लड़के देखने आने लगे तो आखिर मैंने देखने आनेवालों को ही हाथ जोड़कर मना कर दिया और मेरी इच्छा बता दी। एक बार ननिहाल में तुलसी विवाह देखा तो सोचा कि जब ठाकुरजी तुलसाजी से विवाह कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ठाकुरजी से विवाह कर सकती। मैंने इसके बारे में पंडितजी से पूछा तो उन्होंने भी कहा कि ऐसा हो सकता है। 2 साल तक मन में यही उधेड़बुन चलती रही। इसके बाद मां से बात की, शुरू में तो वे बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन फिर मान गईं। जब हमने पापा को बताया तो वे नाराज हो गए और साफ मना कर दिया। नाराजगी के कारण पापा इस शादी में भी नहीं आए। अंतत: तय कर लिया कि शादी ठाकुरजी से ही करूंगी। 8 दिसंबर को ठाकुरजी के साथ 7 फेरे लेकर अमर सुहािगन बन गई।
*ठाकुर जी से फैसला खुद का…*
पिता बीएसएफ से रिटायर हैं और एमपी में सिक्योरिटी एजेंसी चलाते हैं। मां रतन कंवर गृहणी हैं। तीन छोटे भाई हैं अंशुमान सिंह, युवराज और शिवराज। तीनों कॉलेज और स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं। ठाकुरजी से विवाह का फैसला उनका खुद का था। शुरू में समाज, रिश्तेदार और परिवार के लोग इस पर सहमत नहीं हुए, लेकिन फिर मां ने बेटी की इच्छा का सम्मान कर सहमति दे दी थी।