हरियाणा में लोकसभा चुनाव के बीच 3 निर्दलीय विधायकों ने CM नायब सैनी की अगुआई वाली BJP सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इनमें पुंडरी से विधायक रणधीर गोलन, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और चरखी दादरी से विधायक सोमवीर सांगवान शामिल हैं।
मार्च में भाजपा-जजपा गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने इन निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। इन्होंने पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की मौजूदगी में कांग्रेस का समर्थन कर दिया।
इसके बाद हरियाणा में सियासी घमासान मच गया है। विपक्षी दलों ने CM नायब सैनी को इस्तीफा देने को कहा है। वहीं सीएम सैनी और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि सरकार को कोई खतरा नहीं है। पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने यहां तक कहा कि कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए।
हरियाणा सरकार को लेकर किसने क्या कहा..
CM सैनी बोले- सरकार अल्पमत में नहीं, कांग्रेस की इच्छा पूरी नहीं होगी
सीएम नायब सिंह सैनी का कहना है कि कांग्रेस की इच्छा सरकार बनाने की रहती है। हरियाणा में सरकार को कोई खतरा नहीं है। सरकार अल्पमत में नहीं है। पूरे देश ने कांग्रेस का इतिहास देखा है। लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के नेता अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए कोशिश करती है। सरकार बड़ी मजबूती से काम कर रही है। सरकार को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है। कांग्रेस की इच्छा को प्रदेश के लोग पूरी करने वाले नहीं है।
खट्टर बोले- कौन किधर आता-जाता है, फर्क नहीं पड़ता
हरियाणा में सरकार से तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी पर पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि ये चुनावी माहौल है, कौन किधर जाता है, किधर से आता है, इसका कोई खास अंतर पड़ने वाला नहीं है। बहुत से विधायक हमारे भी संपर्क में हैं, इसलिए किसी को भी ये चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। पूर्व सीएम ने कहा कि कब कौन क्या करेगा, चुनाव अभी लंबा चलेगा।
दुष्यंत चौटाला ने कहा- अविश्वास प्रस्ताव के लिए 6 महीने के गैप की जरूरत नहीं
पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हम जब तक सरकार के साथ थे, तब तक ऐसे हालात नहीं थे। पहले लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पिछली खट्टर सरकार के खिलाफ था। अब राज्य में नई सरकार बनी है तो इनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के लिए 6 महीने के गैप की जरूरत नहीं है। कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाए, हम उनका साथ देंगे।
जजपा नेता ने कहा- हुड्डा सरकार गिराएं, हमारा समर्थन
जजपा के महासचिव दिग्विजय चौटाला ने कहा कि भूपेंद्र हुड्डा अगर भाजपा के हाथों में नहीं खेल रहे तो हरियाणा सरकार को गिरा दें। यह सरकार अल्पमत में है। अगर कांग्रेस या हुड्डा को जरूरत पड़ती है तो जजपा के विधायक सरकार गिराने में मदद के लिए तैयार हैं।
अनिल विज ने कहा- हुड्डा की ख्वाहिश पूरी नहीं होगी
विज ने कहा कि मुझे दुख हैं कि आजाद विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया,लेकिन पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। हुड्डा साहब की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकती। अभी हमारे तरकश में कई तीर हैं और हमारी सरकार ट्रिपल इंजन की सरकार है।
स्पीकर बोले- अल्पमत का कोई आंकड़ा मेरे पास नहीं
हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने पूर्व डिप्टी CM दुष्यंत चौटाला के बयान पर कहा है कि सरकार अल्पमत है, यह आंकड़े उनके पास होंगे। विधानसभा में अभी भी वही दलीय स्थिति है, जो एक महीने पहले थी। उन्होंने कहा कि अभी मेरे पास ऐसी कोई भी जानकारी न तो लिखित रूप में आई है, और न ही मौखिक रूप में कि सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है।
एक्सपर्ट बोले- सब राज्यपाल पर निर्भर
हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव राम नारायण यादव ने प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम पर कहा कि “स्थिति असाधारण है, लेकिन इससे सरकार के लिए खतरा नहीं हो सकता। पहले भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनका मामला सदन के बाहर सुलझाया गया था। विपक्ष ने यदि सीएम नायब सिंह सैनी से विश्वास प्रस्ताव मांगा है तो, यह सरकार, विपक्ष और राज्यपाल के बीच की स्थिति बनती है।”
अभी सदन में 88 विधायक बचे हैं, जिस भी राजनीतिक दल के पास विधायकों की संख्या 45 होगी, उसको ही बहुमत में माना जाएगा। हां अगर, विपक्ष राज्यपाल के सामने बहुमत का दावा करता है, तो राज्यपाल सरकार से विश्वास मत हासिल करने के लिए कह सकते हैं। इस पूरे मामले में राज्यपाल ही अपने विवेक से फैसला ले सकते हैं।
विधायकों के समर्थन वापसी की 4 बड़ी वजहें…
1. मंत्री नहीं बनाया गया
हरियाणा में भाजपा ने जजपा से गठबंधन तोड़कर नई सरकार बनाई। भाजपा के पास उस वक्त 41 विधायकों का समर्थन था। सरकार बनाने के लिए 46 विधायकों की जरूरत थी। इस वजह से 6 निर्दलियों और एक हलोपा विधायक ने साथ दिया। उस वक्त चर्चा थी कि सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों में से मंत्री बनाए जा सकते हैं। इनमें सबसे आगे सोमवीर सांगवान और नयनपाल रावत थे। हालांकि भाजपा ने सिर्फ निर्दलीय रणजीत चौटाला को शामिल कर बाकी सारे मंत्री अपनी ही पार्टी से बना दिए।
2. भाजपा उम्मीदवारों का विरोध
लोकसभा चुनाव को लेकर राज्य में भाजपा उम्मीदवारों का विरोध हो रहा है। हिसार से रणजीत चौटाला, सिरसा से अशोक तंवर, रोहतक से अरविंद शर्मा, अंबाला से बंतो कटारिया, सोनीपत से मोहन लाल बड़ौली, करनाल से मनोहर लाल खट्टर समेत कई उम्मीदवारों का विरोध हो चुका है। ऐसे में निर्दलीय विधायकों को डर सताने लगा कि अगर भाजपा के साथ रहे तो 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव में जीतना मुश्किल हो जाएगा।
3. भाजपा ने पार्टी स्तर पर तरजीह नहीं दी
लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने राज्य सरकार बनाने में मदद करने वाले निर्दलीय विधायकों को तरजीह नहीं दी। खट्टर और सीएम सैनी ने चंडीगढ़ सीएम निवास पर विधायकों की मीटिंग बुलाई लेकिन सरकार का समर्थन करने वाले इन निर्दलियों को नहीं बुलाया गया। हलोपा विधायक गोपाल कांडा से मिलने खट्टर खुद गए लेकिन बाकी निर्दलियों को किसी ने नहीं पूछा। इसी वजह से इन विधायकों ने माना कि भाजपा सिर्फ उनका समर्थन के लिए इस्तेमाल कर रही है, अगले विस चुनाव में भी उनका कोई रास्ता मिलने की उम्मीद नहीं है।
4. BJP से विधानसभा टिकट मुश्किल
इन तीनों विधायकों को अब भाजपा से टिकट मिलना मुश्किल हो गया था। चरखी दादरी में जजपा छोड़कर सतपाल सांगवान भाजपा में आ गए। इससे सोमवीर सांगवान की राह मुश्किल हो गई। नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर के सामने पूर्व विधायक भगवानदास कबीरपंथी का दावा मजबूत था। वह खट्टर के भी करीबी हैं। पूंडरी से निर्दलीय गोलन के सामने भाजपा से 2 दावेदारों की चुनौती आ गई। इनमें भाजपा के महामंत्री रहे एडवोकेट वेदपाल और पूर्व विधायक दिनेश कौशिक शामिल हैं।
कांग्रेस को समर्थन की पूरी प्लानिंग हुड्डा के घर बनी
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस को समर्थन की पूरी प्लानिंग पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के दिल्ली स्थित निवास पर बनी। रणधीर गोलन, धर्मवीर गोंदर और सोमवीर सांगवान एक हफ्ते से हुड्डा के टच में थे।
30 अप्रैल तो तीनों विधायकों से गुरुग्राम में संपर्क किया गया। इसके बाद इनकी हुड्डा, प्रदेश अध्यक्ष उदयभान और हरियाणा प्रभारी दीपक बाबरिया से इनकी मुलाकात हुई। जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया। चर्चा है कि विधायकों को लगता है कि आगे कांग्रेस की सरकार आ सकती है, ऐसे में कांग्रेस से टिकट मिलने पर वह जीत सकते हैं।
निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी के बाद की स्थिति …
सरकार अल्पमत में, लेकिन संकट नहीं
अगर अभी की स्थिति में देखा जाए तो सरकार अल्पमत में आ गई है, क्योंकि 88 में से भाजपा के पास 43 विधायकों का समर्थन बचा है। बहुमत के लिए 45 विधायक चाहिए। वहीं अब विपक्ष में 45 विधायक हो गए हैं।
इसके बावजूद सैनी सरकार को खतरा नहीं है। नायब सैनी ने इसी साल 12 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके अगले दिन 13 मार्च को फ्लोर टेस्ट पास किया था। दो फ्लोर टेस्ट के बीच 6 महीने का गैप होना जरूरी है। ऐसे में विपक्ष 13 सितंबर 2024 तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकता है। इसी साल अक्टूबर-नवंबर में हरियाणा में चुनाव होने हैं।
3 निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस को समर्थन से उठे सवाल और उनके जवाब…
1. क्या CM नायब सैनी की भाजपा सरकार अल्पमत में?
हां, हरियाणा में कुल 90 विधायक हैं। बहुमत का आंकड़ा 46 का है। अभी करनाल और सिरसा की रानियां सीट खाली है। इसके बाद विधानसभा में 88 विधायक बचे हैं। भाजपा के अपने 40 विधायक हैं। अभी तक उन्हें 6 निर्दलीय और एक हलोपा विधायक का समर्थन था। जिनमें से रणजीत चौटाला इस्तीफा दे चुके हैं। वहीं अब 3 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद भाजपा के पास 2 निर्दलीय व हलोपा विधायक गोपाल कांडा के साथ से 43 विधायकों का समर्थन है।
वहीं विपक्ष की बात करें तो कांग्रेस के 30, जजपा के 10, इनेलो का एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू हैं। इनमें अब 3 और निर्दलीय विधायक भी आ गए हैं तो विपक्ष में कुल 45 विधायक हो गए हैं।
2. क्या अभी अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है?
नहीं, हरियाणा में कांग्रेस 2019 के बाद भाजपा सरकार के खिलाफ अब तक 2 अविश्वास प्रस्ताव ला चुकी है। हालांकि दोनों बार कांग्रेस यह प्रस्ताव विधानसभा में पास नहीं हो पाया। पहली बार कांग्रेस सदन में 2021 में किसान आंदोलन को लेकर अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी।
इसी साल मार्च 2024 में बजट सत्र के दौरान कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी। अब दोबारा अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 6 महीने का गैप जरूरी है। ऐसे में सितंबर तक कांग्रेस मौजूदा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती। हरियाणा में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
3. अविश्वास प्रस्ताव कैसे लाया जाता है?
सबसे पहले विपक्षी दल या विपक्षी गठबंधन को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी विधायक से इसे पेश करने के लिए कहते हैं। जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है। तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है।
स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा जरूरी है। इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है।
12 मार्च को नायब सैनी ने ली थी शपथ
हरियाणा में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 40 सीट जीती थी। सरकार बनाने के लिए 46 सीट होना जरूरी है। ऐसे में भाजपा ने जजपा के 10 विधायकों के साथ प्रदेश में सरकार बना ली। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को बनाया गया।
करीब साढ़े 4 साल बाद 12 मार्च 2024 को भाजपा और जजपा का हरियाणा में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर हुए विवाद के कारण गठबंधन टूट गया। इसके बाद कुरूक्षेत्र से सांसद नायब सैनी को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। इसी दिन उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।