नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद शपथ ली। इसके साथ ही वे इस केंद्र शासित राज्य के पहले सीएम बन गए। कार्यक्रम श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सेंटर (SKICC) में हो रहा है।
राज्यपाल मनोज सिन्हा ने डिप्टी सीएम सुरेंदर चौधरी, मंत्री सकीना इट्टू, जावेद राणा, जावेद डार, सतीश शर्मा को भी शपथ दिलाई। शपथ लेने के बाद उमर अब्दुल्ला दोपहर 3:00 बजे एडमिनिस्ट्रेटिव सेक्रेटरी के साथ मीटिंग करेंगे।
कांग्रेस ने सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। उनका कोई विधायक मंत्री नहीं बनेगा। हालांकि, उमर सरकार को कांग्रेस समर्थन करती रहेगी। कांग्रेस ने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा मिलने तक लड़ते रहेंगे।
समारोह में 50 से ज्यादा VIP, केजरी-ममता नहीं आए शपथ ग्रहण समारोह में I.N.D.I.A. ब्लॉक के कई बड़े नेता पहुंचे हैं। संसद विपक्ष के नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी, तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव और अरविंद केजरीवाल सहित करीब 50 VIPs को न्योता भेजा था। हालांकि केजरीवाल और ममता बनर्जी समारोह में नहीं पहुंचे।
बडगाम सीट छोड़ सकते हैं उमर, दो सीटों से लड़ा था चुनाव उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल और बडगाम दो सीटों से चुनाव लड़ा था। वे दोनों पर जीते हैं। माना जा रहा है कि वे गांदरबल सीट बरकरार रख सकते हैं। उमर 2009 में जब पहली बार सीएम बने थे, तब भी वे इसी सीट से चुनाव जीते थे। उनके दादा शेख अब्दुल्ला 1977 में और पिता फारूक अब्दुल्ला 1983, 1987 और 1996 में यहां से जीत चुके हैं।
दरअसल, उमर बारामूला लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे। निर्दलीय कैंडिडेट और उस समय तिहाड़ जेल में बंद इंजीनियर राशिद ने करीब 2 लाख वोट से चुनाव हराया था। इसी वजह से उमर ने दो सीटों से विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा। दोनों ही सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ रही हैं।
7 साल बाद 13 अक्टूबर को हटा राष्ट्रपति शासन नई सरकार के गठन से पहले 13 अक्टूबर की देर रात प्रदेश से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश जारी किया गया। गृह मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने नए मुख्यमंत्री की शपथ के पहले राष्ट्रपति शासन खत्म करने का आदेश जारी किया था।
जम्मू-कश्मीर में पिछले विधानसभा चुनाव 10 साल पहले 2014 में हुए थे। चुनाव के बाद भाजपा-PDP ने गठबंधन सरकार बनाई थी। 2018 में भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार गिर गई थी और महबूबा मुफ्ती ने CM पद से इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद राज्य में 6 महीने तक राज्यपाल शासन रहा, फिर राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इसी बीच 2019 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें BJP भारी बहुमत के साथ केंद्र में लौटी। इसके बाद 5 अगस्त, 2019 को BJP सरकार ने राज्य को विशेष दर्जा देने वाला आर्टिकल-370 खत्म कर दिया।
साथ ही राज्य को को दो केंद्र-शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया। इसके बाद करीब 6 साल तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा और अब जाकर विधानसभा चुनाव हुए हैं। 2024 विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने 42, उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने 6 और CPI(M) ने एक सीट जीती थी।
सरकार गठन के बाद होने हैं राज्यसभा चुनाव राष्ट्रपति शासन हटने और सरकार गठन के बाद प्रदेश की चार राज्यसभा सीटों पर भी चुनाव होने हैं। इसके लिए चर्चाएं अभी से तेज हो गई हैं। चुनाव में जीती सीटों के हिसाब से दो राज्यसभा सीटें NC-कांग्रेस गठबंधन और एक बीजेपी के खाते में जा सकती है। NC अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को राज्यसभा भेजा जा सकता है। खराब सेहत के चलते उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया था।
बची हुई एक सीट पर चुनाव हो सकते हैं। चुनाव में यह सीट किसके हिस्से जाएगी, ये उस समय के राजनीतिक समीकरण ही तय करेंगे। ठीक यही स्थिति 2015 में भी बनी थी। तब सत्तारूढ़ PDP-भाजपा को एक-एक सीट मिली थी। NC ने तब कांग्रेस प्रत्याशी (अब डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के नेता) गुलाम नबी आजाद को समर्थन दिया था। चौथी सीट चुनाव के बाद PDP-भाजपा गठबंधन के खाते में आई थी।