हर राजस्थानी पर एक लाख रुपए का कर्जा:फ्री के राहत पैकेज और उधार के पैसे से बढ़ेगा कर्ज भार

Jaipur Rajasthan

जयपुर:-राजस्थान के हर नागरिक पर करीब एक लाख रुपए का कर्ज भार हो गया है। राज्य की जनता पर इस बार के बजट के साथ करीब 5 लाख 79 करोड़ 781 रुपए का कर्जा हो चुका है, जिसे ब्याज सहित देखा जाए तो इस वर्ष के अंत तक यह करीब 7 लाख करोड़ रुपए होगा। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी-कुल कमाई) का यह लगभग 36.56 प्रतिशत है।

इस वर्ष के बजट में भी नया कर्ज भार जीएसडीपी का लगभग 3.98 प्रतिशत है और पिछले बजट (2022-23) में यह 4.02 प्रतिशत था। केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए बने एफआरबीएम (फाइनेंशियल रेस्पॉन्सिबिलिटी फॉर बजट मैनेजमेंट) एक्ट के तहत जीएसडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक राजस्व घाटा बजट में नहीं होना चाहिए। फिलहाल राजस्थान सरकार ने कोरोना महामारी से कमजोर हुई अर्थव्यवस्था का हवाला देकर एक प्रतिशत की की छूट ली हुई है। सरकार ने छूट का पूरा उपयोग कर लिया है।

अर्थ-वित्त के विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों का कर्जा लेना तब तक बुरा नहीं है, जब तक वो कर्जा सड़क बनाने, बांध बनाने, स्कूल-कॉलेज बनाने के लिए लिया जा रहा हो, लेकिन यही कर्जा लोगों को मुफ्त की चीजें बांटने के लिए लिया गया हो तो यह सही नहीं है।

अर्थशास्त्री प्रो. वीवी सिंह ने भास्कर को बताया कि अगर आपकी आय 100 रुपए मासिक है, तो आप दो-चार रुपए का उधार ले सकते हो, लेकिन उसके लिए उतनी ही राशि की कटौती कहीं ओर से करनी होगी। अगर आय बढ़ाने के लिए किसी उत्पादक काम के लिए सरकार उधार ले तो कोई बुराई नहीं, लेकिन फ्री चीजें बांट कर राजनीतिक फायदा लेने के लिए उधार लिया जाता है, और उसके चुकाने के कोई आसार या उपाय नहीं हो तो प्रदेश या देश पर आर्थिक संकट आना तय होता है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका इसका उदाहरण हैं। देश के भीतर ही कुछ राज्यों के पास अपने सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं है। फ्री की चीज और उधार का पैसे की नीति को अपनाने पर यही हाल होता है।

राजस्थान विश्वविद्यालय की प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) अल्पना कटेजा का कहना है कि तय इनकम से ज्यादा का खर्चा और वो भी उधार लेकर पूरा करना तो एक बीमारी है। यह प्रदेश के लिए घातक साबित होगा।

गैर सरकारी संगठन बजट अध्ययन केन्द्र (बार्क-जयपुर) के अर्थ-वित्त विशेषज्ञ नासेर अहमद ने भास्कर को बताया कि हर सरकार कर्ज लेती है, यह बात बिल्कुल सही है। लेकिन कर्ज लेना किन चीजों के लिए चाहिए। अगर कोई सरकार सड़क बनाने, कॉलेज बनाने या बिजली घर बनाने के लिए कर्ज लेती है, तो ऐसा कर्ज आसानी से भविष्य में चुकाया जा सकता है। इसके विपरीत अगर सरकार कर्ज पिछले उधार चुकाने या फ्री की चीजें बांटने में लगाती है, तो यह सही नहीं है। जीएसडीपी में कोरोना के चलते 3 प्रतिशत के बजाय 4 प्रतिशत तक की छूट तो मिली हुई है, लेकिन इसका पूरा उपयोग कर लेना अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं है।

ज्यादा कर्ज भार के क्या हो सकते हैं दुष्परिणाम

किसी भी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था पर जरूरत से ज्यादा कर्ज भार के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं। क्या कारण है कि गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, केरल, उत्तर प्रदेश देश के विकसित और खुशहाल राज्यों में शामिल हैं। वहीं पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश पिछड़े राज्यों में शामिल हैं। जरूरत से ज्यादा कर्ज भार कभी भी किसी राज्य को आर्थिक रूप से विकसित नहीं बल्कि दिवालिया बनाता है।

  • प्रदेश की आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है।
  • सरकार को अपने मेंटिनेंस, वेतन, पेंशन, ब्याज आदि के भुगतान के लिए संकट खड़ा हो सकता है।
  • स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, सड़क, पानी, बिजली की व्यवस्थाएं ठप हो सकती हैं।
  • हाल ही केन्द्र सरकार ने जिस तरह से एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम-2004) का पैसा ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम-2022) के तहत (करीब 40,000 करोड़ रुपए) देने से मना किया है, आगे भी बहुत सी मदों में पैसा रोका जा सकता है
  • उधार लेकर उसे फिर से फ्री की चीजों में बांटा जाएगा तो उस पैसे की वापसी (सरकार को आय-राजस्व) तो कभी होगी ही नहीं। अगले वर्ष फिर सरकार को उधार लेकर छूट-राहत का इंतजाम करना पड़ेगा। यह चक्र निरंतर आगे से आगे चलता ही रहता है। यही दिवालिया होने की तरफ जाने वाला रास्ता होता है।
  • कर्ज और आय में इतना संतुलन जरूर होना चाहिए कि प्रदेश भविष्य में आर्थिक दुष्चक्र में नहीं फंसे।

19 हजार करोड़ रुपए की संभावित आय को राहत देने के नाम पर खत्म किया

राज्य सरकार ने बजट में राहत देने के नाम पर 19 हजार करोड़ रुपए का पैकेज घोषित किया है। यह एक ऐसा पैकेज है, जो अब तक आय के रूप में सरकार को प्राप्त होता था, लेकिन अब नहीं होगा। बतौर आय यह एक बहुत बड़ी राशि है, जिसकी भरपाई कहां से होगी, इसके बारे में बजट में कहीं भी नहीं बताया गया है।

  • एक करोड़ परिवारों को नि:शुल्क अन्नपूर्णा रसोई राशन किट मिलेगा। इसके तहत 3000 करोड़ रुपए का खर्च होगा।
  • करीब 76 लाख परिवारों को 500 रुपए में गैस सिलेंडर दिए जाएंगे। इससे 1 हजार 500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
  • मुख्यमंत्री नि:शुल्क बिजली योजना में 100 यूनिट बिजली तक कोई बिल नहीं लिया जाएगा। इसमें करीब 7 हजार करोड़ 50 लाख रुपए का भार आएगा।
  • 7 हजार करोड़ रुपए की छूट पेट्रोल-डीजल के वेट में पिछले वर्ष की तरह जारी रहेगी।

आउट कम बजट नहीं बनाया जाता, यह पता नहीं चलता कि पिछले बजट में जितने पैसे का प्रावधान किया गया उसमें कितना खर्च हुआ?

राजस्थान में आम तौर पर कोई भी सरकार हो वो बजट के साथ आउट कम बजट डॉक्युमेंट नहीं बनाती। आउटकम बजट के तहत यह बताया जाता है कि पिछले वर्ष पेश किए गए बजट में किस योजना में कितना रुपया आवंटित किए जाने का प्रावधान था और कितने रुपए वास्तविक रूप से खर्च किए गए। यह बनाने से अर्थव्यवस्था में उन फ्री की योजनाओं की सच्चाई सामने आती है, जिन पर पैसा खर्च करने की घोषणाएं तो की जाती हैं, लेकिन वास्तविक रूप से उन पर उतना पैसा खर्च होता ही नहीं है। उदाहरण के रूप में पिछले बजट में करीब 1000 करोड़ रुपए की लागत से महिलाओं को स्मार्ट फोन बांटे जाने थे, लेकिन बांटे ही नहीं गए तो इन प्रस्तावित 1000 करोड़ रुपए का क्या हुआ यह सरकार को आउटकम बजट में बताना चाहिए।

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