कलबुर्गी/दिल्ली:-अयोध्या में श्री रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा से दो दिन पहले हैदराबाद के सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का एक बयान सामने आया है। ओवैसी ने कर्नाटक के कलबुर्गी में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा- विवादित जगह पर रात के अंधेरे में मूर्तियां रखी गईं। वहां मस्जिद थी, है और आगे भी रहेगी।
जब कांग्रेस के गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उस जगह पर 500 साल से मुसलमान नमाज पढ़ा करते थे। जब कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे, तब रात के अंधेरे में मूर्तियां रख दी गईं। वहां मस्जिद थी, है और रहेगी। उन लोगों ने मूर्तियां नहीं निकाली।
वहां के तत्कालीन कलेक्टर केके नायर ने मस्जिद बंद कराकर पूजा शुरू कर दी। नायर साहब 1950 के दशक में जनसंघ के पहले सांसद बने। 1986 में मुसलमानों को बताए बगैर ताले खोले गए। बूटा सिंह ने शिलान्यास कर दिया। 6 दिसंबर 1992 को बीजेपी और संघ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट को वादा करने के बावजूद बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया।
बीजेपी के पास ये मुद्दा कब आया? आपको पता है? 1989 में बीजेपी ने पालमपुर में रेजोल्यूशन पास किया। एक सिस्टमैटिक तरीके से भारतीय मुसलमानों से बाबरी मस्जिद छीन ली गई। बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट का यकीनन फैसला है।
सुप्रीम कोर्ट हमारे देश की सर्वोच्च अदालत है। रिलीजियस फेथ (धार्मिक विश्वास) के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया कि ये जगह हम मुसलमानों को नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि वहां मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद मैंने मीडिया को बयान दिया था कि चीफ जस्टिस जेएस वर्मा ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है, ये इनसॉइलेबल (अमिट) है। मैंने ये भी कहा था कि अब कई मुद्दे खुल जाएंगे। इसको अंग्रेजी में कहते हैं- पेंडोरा बॉक्स विल बी ओपन्ड।
संघ परिवार अब हर जगह जाकर ये बोल रहा है कि वहां मस्जिद नहीं थी। मैं कहता हूं कि अगर गोविंद बल्लभ पंत ये मूर्तियां हटा देते तो क्या हमें ये दिन देखना पड़ता? अगर 1986 में ताले नहीं खोले जाते तो क्या ये दिन आता? 6 दिसंबर को बाबरी डिमॉलिशन नहीं होता तो क्या ये देखना पड़ता? ये हमारे सवाल हैं, जिनका जवाब कोई नहीं दे रहा।
ओवैसी ने केजरीवाल पर भी हमला बोला
अपने आप को सेक्युलर बोलने दिल्ली के मुख्यमंत्री और I.N.D.I.A में शामिल अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि हर मंगलवार को सरकारी स्कूलों में सुंदरकांड का पाठ होगा। क्या स्कूल का कोई धर्म होता है? अभी तो सबका झगड़ा चल रहा है। झगड़ा ये है कि मोदी नहीं रहते तो हम भी चले जाते।
मैं तो सबसे यही पूछ रहा हूं कि गोविंद बल्लभ पंत, 1986 और 1992 पर आप क्या बोलते हैं? कोई कुछ नहीं बोलता। सबको बहुसंख्यकों का वोट लेना है। नरेंद्र मोदी भी ये करके बहुसंख्यकों को अपने पक्ष में कर रहे हैं। साथ ही ये बताया जा रहा है कि मुसलमानों का भारत की पॉलिटिक्स में क्या मुकाम है।