सरकार के सामने फिर एक दुविधा:पायलट और बेनीवाल कर रहे तेजाजी के नाम पर बोर्ड बनाने की मांग, गहलोत ने हाल ही बनाए थे 3 बोर्ड

Jaipur Politics Rajasthan

जयपुर : राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक बार फिर उनके राजनीतिक विरोधियों ने घेरने की तैयारी कर ली है। विरोधी सभी अलग-अलग हैं, लेकिन उनका लक्ष्य एक ही है। हाल ही मुख्यमंत्री ने समाज सुधारक ज्योतिबा फुले महाराज के नाम पर एक बोर्ड गठित करने की घोषणा की है, जिसके तुरंत बाद उनके धुर विरोधी और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, सांसद हनुमान बेनीवाल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर लाल डूडी, पायलट गुट के विधायक मुकेश भाकर और रामनिवास गवाड़िया ने गहलोत से मांग की है कि राजस्थान में प्रसिद्ध लोक देवता और गायों के रक्षक वीर तेजाजी महाराज के नाम पर भी एक बोर्ड गठित किया जाए। तेजाजी के मंदिर राजस्थान के लगभग हर गांव, कस्बे, शहरों में मौजूद है और करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र हैं।

राजनीतिक अर्थ से देखा जाए तो यह घटनाक्रम सामान्य नहीं है। ज्योतिबा फुले माली-सैनी समाज से थे और मुख्यमंत्री गहलोत चूंकि माली समाज से हैं, ऐसे में उनके राजनीतिक विरोधी यह उजागर कर रहे हैं कि उन्होंने खुद के समाज के नेता का बोर्ड तो बना दिया, लेकिन राजस्थान में सबसे ज्यादा संख्या में निवास करने वाले जाट समुदाय के आराध्य देव तेजाजी महाराज का बोर्ड नहीं बनाया। जाट समुदाय राजस्थान के सभी समुदायों में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला समाज है, जिसका प्रभाव पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और दिल्ली की राजनीति में जबरदस्त है। हालांकि वीर तेजाजी महाराज के नाम पर बोर्ड बनाने की मांग सबसे पहले कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ही की थी, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री गहलोत का समर्थक राजनेता माना जाता है। इसलिए इसमें कोई राजनीतिक अर्थ नहीं देखे जा रहे थे, लेकिन अब पायलट, डूडी, बेनीवाल, भाकर आदि के आगे आने से इसे गहलोत के लिए राजनीतिक चुनौती का सबब माना जा रहा है।

राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) सुप्रीमो और नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल अक्सर अपने बयानों में मुख्यमंत्री गहलोत पर हमले करते रहे हैं। वे उन्हें राजस्थान में मिर्धा, मदेरणा, ओला परिवारों की राजनीति को खत्म करने वाला और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ मिलीभगत कर सरकार चलाने वाला नेता बताते रहे हैं। हाल ही उन्होंने उनके बेटे राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) के चैयरमेन वैभव गहलोत पर भी राजनीतिक हमला किया था।

गहलोत विरोधियों की इस मुहीम में जल्द ही परिवहन मंत्री बृजेन्द्र ओला, खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, वन मंत्री हेमाराम चौधरी, पंयायत राज मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा, विधायक दिव्या मदेरणा सहित 20-22 मंत्री, सांसद और विधायक भी जुड़ सकते हैं।

चुनावी वर्ष में विभिन्न समाजों से जुड़े सामाजिक संगठन इस तरह की मांग करते हैं। ऐसे में जनसंख्या के हिसाह से ताकतवर जाट समुदाय के राजनेताओं की तरफ से आने वाली इस मांग को सचिन पायलट ने भी समर्थन दिया है। मुख्यमंत्री गहलोत इस मांग को ज्यादा दिन टाल नहीं पाएंगे क्योंकि विधायक दिव्या मदेरणा ने उन पर आलाकमान के आदेशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया था और अपने दादा परसराम मदेरणा द्वारा 1998 में पार्टी के आलाकमान व अनुशासन का पालन करने का उदाहरण दिया था, जब आलाकमान के कहने पर विधायकों का बहुमत मदेरणा के साथ होने के बावजूद गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। अगर गहलोत इस मांग को टालेंगे तो उनके खिलाफ एक नया राजनीतिक बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।

कौन थे वीर तेजाजी महाराज

तेजाजी महाराज का जन्म 29 जनवरी 1074 को खरनाल (नागौर) गांव में हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों, पशुपालकों और गायोंं की रक्षा करने में बिताया। एक युद्ध में गायों को लुटेरों से बचाने के लिए उन्होंने अपने प्राण न्योच्छावर कर दिए। उनकी मृत्यु 28 अगस्त 1103 को सुरसुरा (अजमेर) गांव में हुई। पिछले एक हजार वर्षो से राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में जब भी किसी को सांप काटता है, तो उसके जहर के प्रभाव से मुक्ति के लिए तेजाजी महाराज के मंदिर ले जाया जाता है। चूंकि उनका जन्म एक जाट परिवार में हुआ था, तो वे भारत के करोड़ों जाट लोगों के आराध्य देव हैं, लेकिन राजस्थान में तो सभी जाति-समुदाय के लोगों के बीच उनके प्रति गहरी श्रद्धा है।

विधानसभा से संसद तक मांग की है बेनीवाल ने

रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने भास्कर को बताया कि वे जब पहली बार 2008 में विधायक बने तो उन्होंने विधानसभा में और जब पहली बार 2019 में सांसद बने तो संसद में वीर तेजाजी महाराज के नाम का जयकारा लगाया। उन्होंने विधानसभा में मुख्यमंत्री गहलोत से और संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वीर तेजाजी का बोर्ड बनाने, खरनाल में उनके स्मारक को राष्ट्रीय दर्जा देने, स्कूली पाठ्यक्रमों में उनकी शिक्षाओं व जीवनी को शामिल करने की मांग की है।

रालोपा इस वक्त तीन विधायकों और एक सांसद के साथ राजस्थान में कांग्रेस, भाजपा के बाद तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। बेनीवाल जल्द ही इस मुद्दे को पूरे प्रदेश की राजनीति में गर्माने वाले हैं।

राजस्थान में हैं लगभग सभी समुदायों से जुड़े बोर्ड

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने इस कार्यकाल में ब्राह्मण समाज के आराध्य देव भगवान परशुराम, ज्योतिबा फुले बोर्ड, रजक (धोबी) विकास बोर्ड आदि बनाए हैं।

इससे पहले भी राजस्थान में कुम्हार समाज से जुड़े माटी कला बोर्ड, सेन समाज से जुड़े केश कला बोर्ड, गुर्जर समुदाय से जुड़े भगवान देवनारायण बोर्ड आदि गठित हैं। लेकिन यह वाकई ताज्जुब की बात है कि राजस्थान के सबसे बड़े समाज और ओबीसी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले जाट समाज से जुड़ा कोई बोर्ड गठित नहीं है।

ऐसे में अगर अब गहलोत इस मांग को नहीं मानेंगे तो उनके समक्ष एक बड़ी राजनीतिक उलझन खड़ी हो सकती है। जैसे पायलट, बेनीवाल, डूडी, भाकर, गवाड़िया तो उनके राजनीतिक विरोधी माने जाते हैं, लेकिन हाल ही गहलोत के समर्थक और उनके प्रति समर्पित माने जाने वाले कांग्रेसी नेता पवन गोदारा ने भी यह मांग कर दी है। गोदारा ने भास्कर को बताया कि राजस्थान में किसानों और पशुपालकों के आराध्य हैं वीर तेजाजी महाराज। ऐसे में उनके नाम पर सरकार को बोर्ड गठित करना ही चाहिए।

गोदारा जाट समुदाय से आते हैं और गहलोत द्वारा हाल ही राजनीतिक नियुक्तियों में उन्हें राजस्थान राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग वित्त व विकास आयोग का अध्यक्ष (राज्य मंत्री दर्जा) बनाया गया है। गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में गोदारा को राजस्थान युवा बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। गोदारा का इस मांग में सामने आने का सीधा सा राजनीतिक अर्थ है कि अगले दिनों में गहलोत से और भी बहुत से राजनेता यह मांग करेंगे।

राजस्थान की राजनीति में जाट समाज का वर्चस्व

राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से करीब 40 सीटों पर (लगभग 20 प्रतिशत) जाट विधायक हैं। लोकसभा की 25 सीटों में से सीकर, चुरू, झुन्झुनूं, नागौर, अजमेर, जैसलमेर-बाड़मेर, बारां-झालावाड़ और पाली (कुल 8 लगभग 33 प्रतिशत) सीटों पर जाट सांसद हैं। इनमें से एक जैसलमेर-बाड़मेर के सांसद कैलाश चौधरी केन्द्र सरकार में मंत्री भी हैं।

इनके अलावा बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, भीलवाड़ा, भरतपुर, जोधपुर आदि लोकसभा सीटों पर भी जाट समुदाय सबसे बड़ा वोट बैंक है। राज्य सरकार में लालचंद कटारिया, विश्वेन्द्र सिंह, रामलाल जाट, बृजेन्द्र ओला, हेमाराम चौधरी मंत्री हैं और लगभग 10-12 प्रमुख कांग्रेसी नेता विभिन्न बोर्ड-निगम में अध्यक्ष हैं, जिन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया हुआ है।

कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिहं डोटासरा व पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी भी जाट हैं। इससे पहले भी राजस्थान से नटवर सिंह, नारायण सिंह, शीशराम ओला, परसराम मदेरणा, रामनिवास मिर्धा, नाथुराम मिर्धा, बलदेवराम मिर्धा, कुम्भाराम आर्य, कमला बेनीवाल जैसे दिग्गज जाट नेता हुए हैं, जो केन्द्र व राज्य सरकारों में मंत्री रहे हैं।

उधर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया भी जाट हैं। प्रदेश में जब भी अब तक तीन बार भाजपा की सरकारें बनी हैं। इन सरकारों में प्रोफेसर सांवरलाल जाट, डॉ. दिगम्बर सिंह, रामनारायण डूडी राज्य सरकार में मंत्री रहे हैं। सांवरलाल जाट केन्द्र की भाजपा सरकार में मंत्री रहे हैं।

फिलहाल कैलाश चौधरी केन्द्र में मंत्री है। वर्ष 2003 से 2008 के बीच भाजपा की विधायक सुमित्रा सिंह विधानसभा अध्यक्ष भी रही थी। वर्तमान में कुल 8 सांसदों में से 7 सांसद भाजपा के हैं और एक सांसद रालोपा के हैं।

अब तक कभी जाट राजनेता नहीं बने मुख्यमंत्री

राजस्थान में जनसंख्या और राजनीति दोनों के हिसाब से अन्य समाजों की तुलना में बेहद भारी पलड़ा है जाट समाज का। लेकिन इसके बावजूद अभी तक कभी भी राजस्थान में कोई जाट राजनेता मुख्यमंत्री के पद पर नहीं पहुंचा है।

केन्द्रीय मंत्री, राज्य मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, दोनों पार्टियों के प्रदेशाध्यक्ष जैसे पदों पर जाट राजनेता काबिज रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री कोई नहीं बन सका। राजस्थान में वैश्य (मोहन लाल सुखाड़िया, कायस्थ (शिवचरण माथुर) और मुस्लिम (बरकतुल्ला खान) जैसे बेहद कम जनसंख्या वाले समाजों से आने वाले राजनेता भी मुख्यमंत्री बन चुके हैं।

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