नई दिल्ली:-केद्र ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि पीएम केयर्स फंड भारत के संविधान, संसद या किसी राज्य के कानून के तहत नहीं बनाया गया है। इसलिए इसे पब्लिक अथॉरिटी नहीं कहा जा सकता है। साथ ही कहा कि इंडिपेंडेंट पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट भारत के संविधान के दायरे में नहीं आते हैं।
ट्रस्ट को न तो सरकार या किसी सरकारी संस्थान ने बनाया है और न ही वह इसे फंड देती और न ही उस पर कोई नियंत्रण रखती है। दरअसल, चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने जुलाई में केंद्र की दायर एक पेज के जवाब पर नाराजगी व्यक्त की थी, जिसके बाद सरकार ने इस मामले में प्रतिक्रिया की दी थी।
ट्रस्टीज में केंद्रीय गृह मंत्री और केंद्रीय वित्त मंत्री शामिल
हलफनामे में आगे कहा गया कि ट्रस्टी बोर्ड के स्ट्रक्चर में पब्लिक ऑफिस के एक्स ऑफिस होल्डर भी शामिल हैं। पीएम केयर्स बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में केंद्रीय गृह मंत्री और केंद्रीय वित्त मंत्री के साथ टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज केटी थॉमस और पूर्व डिप्टी स्पीकर करिया मुंडा शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा कि उप-राष्ट्रपति जैसे सरकार के उच्च पदाधिकारियों ने राज्यसभा सदस्यों से डोनेशन लेने का अनुरोध किया था। साथ ही पीएम केयर फंड को सरकारी रूप में पेश किया गया।
स्वैच्छिक डोनेशन स्वीकार करता है पीएम केयर्स फंड
पीएम केयर्स फंड को एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट कहा जाता है, जो केवल स्वैच्छिक डोनेशन स्वीकार करता है न कि केंद्र सरकार का बिजनेस। PM CARES फंड को सरकार की तरफ से फंड या वित्त नहीं मिलता है।
कोई सरकारी फंड जमा नहीं किया जाता
केंद्र ने पहले भी इसी तरह की दलीलें दी थीं। पीएम केयर फंड RTI अधिनियम की धारा 2 (एच) के दायरे में पब्लिक अथॉरिटी नहीं है। आगे यह साफ करते हुए कहा कि पीएम केयर फंड में कोई सरकारी फंड जमा नहीं किया जाता है। ये केवल बिना शर्त के और स्वैच्छिक है।
इसके पहले पीएमओ ने जो हलफनामा दिया था उसमें कहा गया था कि ट्रस्ट का फंड भारत सरकार का फंड नहीं है। न ही इसकी राशि भारत के कंसोलिडेटेड फंड में जाती है।