बेंगलुरु:-चंद्रयान-3 ने चांद पर पहुंचने के पांचवें दिन (28 अगस्त) दूसरा ऑब्जर्वेशन भेजा है। इसके मुताबिक चांद के साउथ पोल पर सल्फर की मौजूदगी है। इसके अलावा चांद की सतह पर एल्युमीनियम, कैल्शियम, आयरन, क्रोमियम, टाइटेनियम की मौजूदगी का भी पता चला है।
ISRO के मुताबिक, चंद्रमा की सरफेस पर मैगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन भी मौजूद हैं, जबकि हाइड्रोजन की खोज जारी है। प्रज्ञान रोवर पर लगे लिब्स पेलोड ने ये खोज की हैं।
इससे पहले, 28 अगस्त को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे चास्टे (ChaSTE) पेलोड ने चंद्रमा के तापमान से जुड़ा पहला ऑब्जर्वेशन भेजा था। ChaSTE के मुताबिक, चंद्रमा की सतह और अलग-अलग गहराई पर तापमान में काफी अंतर है।
चंद्रमा के साउथ पोल की सतह पर तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस है। वहीं, 80mm की गहराई में माइनस 10°C टेम्परेचर रिकॉर्ड किया गया है। चास्टे में 10 टेम्परेचर सेंसर लगे हैं, जो 10cm यानी 100mm की गहराई तक पहुंच सकते हैं।
ChaSTE पेलोड को स्पेस फिजिक्स लैबोरेटरी, VSSC ने अहमदाबाद की फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी के साथ मिलकर बनाया है।
साउथ पोल का तापमान पता चलने का फायदा क्या?
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया था कि उन्होंने चंद्रमा के साउथ पोल को इसलिए चुना, क्योंकि यहां भविष्य में इंसानों को बसाने की क्षमता हो सकती है। साउथ पोल पर सूर्य का प्रकाश कम समय के लिए रहता है। अब जब चंद्रयान-3 वहां के तापमान समेत अन्य चीजों की स्पष्ट जानकारी भेज रहा है, तो वैज्ञानिक अब यह समझने की कोशिश करेंगे कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी वास्तव में कितनी क्षमता रखती है।
चंद्रयान-3 के साथ कुल 7 पेलोड भेजे गए हैं
चंद्रयान-3 मिशन के तीन हिस्से हैं। प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर। इन पर कुल 7 पेलोड लगे हैं। एक पेलोड, जिसका नाम शेप है, वह चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल पर लगा है। ये चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाकर धरती से आने वाले रेडिएशन की जांच कर रहा है।
वहीं, लैंडर पर तीन पेलोड लगे हैं। रंभा, चास्टे और इल्सा। प्रज्ञान पर दो पेलोड हैं। एक इंस्ट्रूमेंट अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का भी है, जिसका नाम है लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर अरे। ये चंद्रयान-3 के लैंडर पर लगा हुआ है। ये चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी मापने के काम आता है।
चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग 4 फेज में हुई
ISRO ने 23 अगस्त को 30 किमी की ऊंचाई से शाम 5 बजकर 44 मिनट पर ऑटोमैटिक लैंडिंग प्रोसेस शुरू की और अगले 20 मिनट में सफर पूरा कर लिया।
चंद्रयान-3 ने 40 दिन में 21 बार पृथ्वी और 120 बार चंद्रमा की परिक्रमा की। चंद्रयान ने चांद तक 3.84 लाख किमी दूरी तय करने के लिए 55 लाख किमी की यात्रा की।
1. रफ ब्रेकिंग फेज:
- लैंडर लैंडिंग साइट से 750 Km दूर था। ऊंचाई 30 Km और रफ्तार 6,000 Km/hr।
- ये फेज साढ़े 11 मिनट तक चला। इस दौरान विक्रम लैंडर के सेंसर्स कैलिब्रेट किए गए।
- लैंडर को हॉरिजॉन्टल पोजिशन में 30 Km की ऊंचाई से 7.4 Km दूरी तक लाया गया।
2. ऐटीट्यूड होल्डिंग फेज:
- विक्रम ने चांद की सतह की फोटो खींची और पहले से मौजूद फोटोज के साथ कंपेयर किया।
- चंद्रयान-2 के टाइम में ये फेज 38 सेकेंड का था इस बार इसे 10 सेकेंड का कर दिया गया था।
- 10 सेकेंड में विक्रम लैंडर की चंद्रमा से ऊंचाई 7.4 Km से घटकर 6.8 Km पर आ गई।
3. फाइन ब्रेकिंग फेज:
- ये फेज 175 सेकेंड तक चला जिसमें लैंडर की स्पीड 0 हो गई।
- विक्रम लैंडर की पोजिशन पूरी तरह से वर्टिकल कर दी गई।
- सतह से विक्रम लैंडर की ऊंचाई करीब 1 किलोमीटर रह गई
4. टर्मिनल डिसेंट:
- इस फेज में लैंडर को करीब 150 मीटर की ऊंचाई तक लाया गया।
- सब कुछ ठीक होने पर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंड कराया गया।
चांद पर भारत का यह तीसरा मिशन था, पहले मिशन में पानी खोजा था
2008 में चंद्रयान-1 को लॉन्च किया गया था। इसमें एक प्रोब की क्रैश लैंडिंग कराई गई थी जिसमें चांद पर पानी के बारे में पता चला। फिर 2019 में चंद्रयान-2 चांद के करीब पहुंचा, लेकिन लैंड नहीं कर पाया। 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 चांद पर लैंड कर गया। चांद पर सकुशल पहुंचने का संदेश भी चंद्रयान-3 ने भेजा। कहा- ‘मैं अपनी मंजिल पर पहुंच गया हूं।’
14 दिन का है चंद्रयान-3 मिशन
चंद्रयान-3 मिशन 14 दिनों का है। दरअसल, चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। जब यहां रात होती है तो तापमान -100 डिग्री सेल्सियस से भी कम हो जाता है। चंद्रयान के लैंडर और रोवर अपने सोलर पैनल्स से पावर जनरेशन कर रहे हैं। इसलिए वो 14 दिन तो पावर जनरेट कर लेंगे, लेकिन रात होने पर पावर जनरेशन प्रोसेस रुक जाएगी। पावर जनरेशन नहीं होगा तो इलेक्ट्रॉनिक्स भयंकर ठंड को झेल नहीं पाएंगे और खराब हो जाएंगे।