नई दिल्ली: एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को घर में नजरबंद रखने के आदेश को वापस लेने की अर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की इस अर्जी को ठुकरा कर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि नवलखा को 24 घंटे के भीतर जेल से शिफ्ट करके घर में नजरबंद किया जाए। गौतम नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में जेल में बंद हैं। एनआईए ने अपनी अर्जी में कहा था कि नवलखा के माओवादियों और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी से संबंध हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट 10 नवंबर के अपने उस आदेश को वापस ले जिसमें नवलखा को मुंबई की तलोजा जेल से शिफ्ट करके घर में नजरबंद करने को कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए पर कमेंट करते हुए कहा कि आप कुछ खामियां निकालकर हमारे आदेश को नजरअंदाज कर रहे हैं तो हम इसे बहुत गंभीरता से लेंगे। यदि एक 70 साल के बीमार आदमी पर पूरा पुलिस तंत्र नजर नहीं रख सकता तो फिर यह आपकी कमजोरी है। करीब आधे घंटे की सुनवाई में तीखी बहस देखी गयी।
सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए के एक और ऐतराज को भी खारिज कर दिया। नवलखा ने हाउस अरेस्ट के दौरान जहां रहने के लिए कहा है उसके लोकेशन पर एनआईए ने ऐतराज जताया था और कहा था कि वह हॉल है और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की लाइब्रेरी के ऊपर है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया एक मान्यता प्राप्त पार्टी है, ऐसे में इस तरह के ऑब्जेक्शन का कोई मतलब नहीं है। जस्टिस जोसेफ ने कहा राजनीतिक दल वाला यह कैसा तर्क है? मुझे समझ नहीं आ रहा है। क्या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक मान्यता प्राप्त पार्टी नहीं है या यह एक प्रतिबंधित संगठन है?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नजरबंद रखने की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का शुक्रवार सुनवाई के दौरान जोरदार विरोध किया और कहा कि राष्ट्र ‘नक्सलवाद’ (माओवाद) से बच्चों के दस्तानों से नहीं निपट सकता। मैं यही धारणा पेश करने की कोशिश कर रहा हूं। मेरा मतलब अदालत को नाराज करना नहीं था। मैं अपनी धारणा के बारे में क्षमाप्रार्थी नहीं हूं, लेकिन मैं अदालत से क्षमाप्रार्थी हूं। पीठ ने कहा कि मेहता को अपनी राय रखने का पूरा अधिकार है।
NIA का प्रतिनिधित्व कर रहे मेहता ने जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की पीठ के समक्ष दलील दी कि- इस व्यक्ति (नवलखा) के जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों और आईएसआई से संबंध थे। मेहता ने नवलखा की नजरबंदी के आदेश को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि कानून के सामने सभी समान हैं, लेकिन यहां एक मामला है, जो कहता है कि कुछ दूसरों की तुलना में अधिक समान हैं। इस पर पीठ ने मेहता से कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू जिन शर्तों को शामिल करना चाहते थे, उन्हें हाउस अरेस्ट ऑर्डर में शामिल किया गया और इस लिहाज से यह एक सहमत आदेश था।