जयपुर:-नगर परिषद करौली में कचरा संग्रहण और सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए के घोटाले को सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पाठक ने उजागर किया है। जयपुर के पिंक सिटी प्रेस क्लब में सोमवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने करौली से कॉन्ग्रेस विधायक और जान विकास बोर्ड के चेयरमैन लाखन सिंह मीणा और करौली नगर परिषद सभापति के पुत्र व प्रतिनिधि अमीनुद्दीन खान द्वारा करौली नगर परिषद को एक प्राइवेट लिमिटेड फर्म की तरह मिलीभगत कर कचरे संग्रहण और सफाई में करोड़ों का घोटाला किया जा रहा है ।
पाठक ने बताया है कि प्रधानमंत्री स्वच्छता कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार की ओर से करौली नगर परिषद के लिए 26 हूपर, दो बड़े रोड स्वीपर ट्रक और दो डंपर के रूप में कुल 30 वाहन उपलब्ध कराए गए थे। जिनमें से करीब 2 साल से करीब 28 वाहन कबाड़खाने में नाकारा पड़े हुए हैं और शेष बचे दो वाहनों के जरिए पूरे करौली नगर परिषद क्षेत्र के बजाय महज ढोलीखार मोहल्ला जो कि खुद सभापति का मोहल्ला है, उसमें ही दो वाहनों से सफाई कार्य कराया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि मजे की बात यह है कि इन सभी वाहनों के नाम पर नगर परिषद द्वारा तेल की पूरी खपत दिखाकर करोड़ों रुपए के का घोटाला किया जा रहा है। तेल खपत में प्रतिमाह करीब 8 से 10 लाख रुपए इन वाहनों के नाम पर खर्च दिखाए जा रहे हैं लेकिन अगर उस तेल की खपत की वास्तविकता को देखा जाए तो यह तेल डीजल और पेट्रोल के रूप में क्षेत्रीय विधायक लाखन सिंह मीणा, सभापति प्रतिनिधि अमीनुद्दीन खान, आयुक्त नरसी मीणा सहित इनके रिश्तेदार, मित्रगण और अन्य नगर परिषद कार्मिकों के निजी और व्यावसायिक वाहनों में जमकर खपाया जा रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पाठक ने कहा कि विधायक, सभापति, आयुक्त और उनके परिचितों के वाहनों में खपाए जा रहे तेल का भुगतान नगर परिषद के खाते से किया जा रहा है। ऐसी सैकड़ों रसीदें अशोक पाठक के पास मौजूद हैं जिनके जरिए यह साबित होता है कि जिस डीजल पेट्रोल के बिलों का भुगतान नगर परिषद द्वारा किया गया है, वह सफाई वाहनों के बजाय विधायक, सभापति, आयुक्त, नगर परिषद कार्मिकों और उनके परिचितों के निजी और व्यवसायिक वाहनों में फूंका गया है।
उन्होंने कहा है कि करौली नगर परिषद में हर्षिता एंटरप्राइजेज के कर्ता-धर्ता और नगर परिषद के संवेदक रामगोपाल मीणा को प्रधानमंत्री स्वच्छता कार्यक्रम के तहत प्रतिमाह करीब 50 लाख रुपए से अधिक का भुगतान किया जा रहा है जिसके तहत पिछले करीब 2 साल से करीब 800 अस्थाई सफाई कर्मचारियों को सफाई कार्य के लिए लगाकर करौली शहर को स्वच्छ बनाने की जिम्मेदारी दी गई है।
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पाठक ने कहा कि इंदिरा गांधी शहरी रोजगार योजना में लगाए गए सफाई व अन्य कार्यों के लिए 1500 श्रमिक और करीब 102 स्थाई सफाई कर्मचारियों के जरिए शहर को स्वच्छ बनाने का दावा किया जा रहा है लेकिन अगर करौली नगर परिषद प्रशासन की हकीकत को देखा जाए तो इन करीब 2400 कार्मिकों के बावजूद भी जगह-जगह गंदगी के ढेर पड़े रहने के साथ ही करौली शहर पूरी तरह से सड़ रहा है। अगर करौली नगर परिषद में दुरुस्त संसाधनों की संख्या को देखा जाए तो उनमें प्रतिमाह करीब 1000 लीटर से ज्यादा डीजल की खपत की आवश्यकता महसूस नहीं होती है लेकिन नगर परिषद के कारनामों की नजीर देखिए कि कबाड़ और नाकारा पड़े संसाधनों के नाम पर भी करीब 8 से 10 लाख रुपए के तेल को विधायक, सभापति, आयुक्त, नगर परिषद कार्मिक और उनके परिचितों के निजी वाहनों में खपा कर केंद्र और राज्य सरकार के बजट को जमकर चूना लगाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि विधायक के निजी वाहन संख्या 1490, सभापति के निजी वाहन संख्या 0255, सभापति की निजी जेसीबी 0781 और 0479,आयुक्त के निजी वाहन संख्या 7007,1506, 5970 एवम् 1904, उपसभापति के वाहन संख्या 4194, आयुक्त के बुआ के लड़के के निजी वाहन संख्या 1931 एवम 5460 सहित ऐसे कई निजी और व्यावसायिक वाहन हैं जिनमें 1 या 2 या 10 बार नहीं बल्कि सैकड़ों बार नगर परिषद के खाते से तेल का टैंक फुल किया गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक पाठक ने कहा कि वाहनों के साथ-साथ नगर परिषद कार्मिकों के दोपहिया वाहन और विधायक के गांव के लिए ड्रम और कैनो में पैट्रोल,डीजल और आयुक्त के गंगापुर में स्थित स्कूल की बसों के लिए भी डीजल कैनो के जरिए करौली नगर परिषद के खाते से ही भेजा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार सहायक अभियंता स्तर के अधिकारी को आयुक्त पद पर नहीं लगाया जा सकता इसके बाद यूडीएच मंत्री श्री धारीवाल के आशीर्वाद के चलते इन्हें आयुक्त पद पर लगाया गया।6 माह पूर्व नगर परिषद में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते पार्षदों की शिकायत पर संभागीय आयुक्त भरतपुर द्वारा नरसी मीणा को एपीओ कर हटा दियाविधायक की मेहरबानी के चलते इन्हें तुरंत वापस लगा दिया गया। आश्चर्य की बात ये है कि जो वाहन कबाड़े में नाकारा पड़े हुए हैं उनकी मरम्मत के नाम पर दो-दो, तीन-तीन बार ईकोसेंस फर्म के नाम से अब तक लाखों रुपये का फर्जी भुगतान किया जा चुका है।