पश्चिम बंगाल भाजपा विधायक और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने बुधवार (17 जुलाई) को कहा, ‘सबका साथ, सबका विकास’, लेकिन अब हम यह नहीं कहेंगे। अब हम कहेंगे ‘जो हमारे साथ, हम उनके साथ…’ सबका साथ, सबका विकास कहना बंद करो।
पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में शुभेंदु बोले, ‘भाजपा को अल्पसंख्यक मोर्चा की भी जरूरत नहीं है। हम जीतेंगे, हम हिंदुओं को बचाएंगे और संविधान को बचाएंगे।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था। हालांकि, कुछ घंटे बाद शुभेंदु ने अपने बयान पर सफाई दी। कहा, ‘यह नारा प्रधानमंत्री ने दिया था और यह अभी भी कायम है।’
शुभेंदु ने कहा- मेरी बात का PM के बयान से कोई लेना-देना नहीं
- ‘भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर मैंने बहुत दुख के साथ अपनी बात रखी कि भाजपा की राज्य इकाई को पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि उन लोगों के साथ जो भाजपा के साथ नहीं खड़े हैं। मैंने जो कहा- वो राजनीतिक बयान है और इसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे से कोई लेना-देना नहीं है।’
- ‘जब मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाता हूं तो वहां विकास कार्यों से हिंदू और मुस्लिम दोनों को फायदा होता है। फिर भी हमें सुनने को मिलता है कि भाजपा एक हिंदू पार्टी है। हमें काले झंडे दिखाए जाते हैं और हमारी गाड़ियों पर पत्थर फेंके जाते हैं।’
- ‘हमने अब तक जो कुछ भी किया है। वह देश के हर नागरिक के लिए है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। मेरे बयान निजी हैं और इसका पार्टी की सोच से कोई लेना-देना नहीं है। मेरे निर्वाचन क्षेत्र में अल्पसंख्यक मोर्चा था। मैंने मिलन उत्सव में 700 लोगों के साथ ईद मनाई और भाजपा उम्मीदवार अभिजीत गांगुली को एक भी वोट नहीं मिला। सांप्रदायिक मतदान ने भाजपा को बहुत प्रभावित किया।’
आखिर क्यों शुभेंदु को ऐसा बयान देना पड़ा, 4 बड़ी बातें
पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुमन भट्टाचार्य ने कहा, ‘बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मुस्लिम और हिंदु महिलाओं का ज्यादा वोट नहीं मिला। झारग्राम और नंदीग्राम में 90 फीसदी महिलाओं ने TMC को वोट दिया। ममता सरकार की योजनाओं का भी असर है। लक्ष्मी भंडार योजना से हर महीने महिलाओं को 1 हजार रुपए मिलते हैं।’
सीनियर जर्नलिस्ट प्रभाकर मणि तिवारी ने बताया कि शुभेंदु और सुकांत मजूमदार के बीच बनती नहीं है। बैठक में चुनावी रिजल्ट के विश्लेषण के दौरान बहस हुई। शुभेंदु का कहना था कि सबका साथ, सबका विकास बेकार की बात है। जो हमारे साथ है, हम उनके साथ हैं। राज्य में मुस्लिम वोट TMC को मिल रहा है। ऐसे में अल्पसंख्यक मोर्चे की क्या जरूरत है।
1. लोकसभा चुनाव के दौरान और बाद में हिंसा, BJP कार्यकर्ताओं-नेताओं पर हमले
राज्य में लोकसभा चुनाव के दौरान और चुनाव नतीजों के बाद कई जिलों में हिंसा हुई थी। नतीजे आने के बाद कोलकाता, नॉर्थ-24 परगना, साउथ-24 परगना, बर्धमान और कूचबिहार में चुनाव शुरू होने से लेकर अब तक हिंसा की 500 से ज्यादा घटनाएं हुईं। इनमें 5 लोगों की मौत हुई और करीब 6 हजार लोग घायल हुए।
कोलकाता में भाजपा पार्टी ऑफिस में 170 के करीब कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद शरण ले रखी थी। सभी साउथ और नॉर्थ-24 परगना से थे। उनका आरोप था कि रिजल्ट आने के बाद से TMC नेता उनके घर जला रहे हैं, जानलेवा हमला कर रहे हैं। हम 10 जून से परिवार के साथ यहां हैं।
2021 के विधानसभा चुनाव के वक्त भी ऐसे ही हालात थे। चुनाव के नतीजे सामने आने के 24 घंटे के अंदर 12 लोगों की मौत हुई थी। BJP ने 6 पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप लगाया था। वहीं, TMC ने 5 लोगों की मौत का दावा किया था। 2023 में हुए पंचायत चुनाव के वक्त भी 50 से ज्यादा लोगों की मौत की बात सामने आई थी।
2. दावा- 50 लाख हिंदुओं को वोट नहीं डालने दिया, पोर्टल लॉन्च
14 जुलाई को शुभेंदु ने राजभवन के बाहर धरना दिया था। उन्होंने दावा किया था कि राज्य में लगभग 50 लाख हिंदुओं को लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डालने दिया गया। विधानसभा उप-चुनाव में भी दो लाख से ज्यादा हिंदुओं मतदाता को वोट डालने से रोका गया।
16 जुलाई को अधिकारी ने एक पोर्टल लॉन्च किया। इसमें वे लोग शिकायत दर्ज कर पाएंगे, जिनका आरोप है कि लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव के दौरान वे वोट नहीं डाल सके। आज (17 जुलाई) को 100 से ज्यादा लोगों ने शुभेंदु के नेतृत्व में राज्यपाल सीवी आनंद बोस से मुलाकात की थी।
राज्यपाल से मुलाकात के बाद शुभेंदु ने कहा था कि राष्ट्रपति देश की संवैधानिक प्रमुख हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में क्या चल रहा है। इसे जारी रहने नहीं दिया जा सकता। मैं उनसे मिलने का समय मांगूंगा और इनमें से पांच लोगों को राष्ट्रपति से मिलवाऊंगा।
3. लोकसभा चुनाव में 42 में से केवल 12 सीटें मिलीं
लोकसभा चुनाव 2024 में पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में बीजेपी के खाते में केवल 12 सीटें आई। 2019 में 18 सीट पर जीत मिली थी। बीजेपी को इस बार 6 सीट का नुकसान हुआ। TMC को 29 सीट, कांग्रेस को एक और कांग्रेस के साथ अलायंस में चुनाव लड़ी CPI(M) ने एक जीत हासिल की थी।
BJP ने इस बार लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 30 सीटें जीतने का टारगेट रखा था। CAA, आरक्षण, संदेशखाली और करप्शन जैसे मुद्दे उठाने के बावजूद पार्टी कामयाब नहीं हो पाई। पार्टी के बड़े नेता जैसे निशीथ प्रमाणिक, लॉकेट चटर्जी और एसएस आहलूवालिया अपनी सीट नहीं बचा पाए।
रिजल्ट के बाद बिष्णुपुर के सांसद सौमित्र खान और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने स्टेट लीडरशिप के फैसलों पर सवाल उठाए थे। हालांकि खराब प्रदर्शन के बावजूद सुकांत मजूमदार को कैबिनेट में जगह मिली।
4. विधानसभा उप-चुनाव में सभी सीटों पर हार मिली
15 जुलाई को पश्चिम बंगाल की 4 विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का रिजल्ट आया था। BJP को यहां भी नुकसान हुआ। ममता बनर्जी की TMC ने चारों पर जीत दर्ज की। जिन सीटों को BJP को हार मिली, पिछली बार इनमें से 3 सीटें भाजपा के पास थीं, लेकिन इस बार TMC ने तीनों सीटें छीन लीं। यहां TMC अकेले चुनाव लड़ी थी।
एक्सपर्ट ने कहा था- BJP ने ग्राउंड पर मेहनत नहीं की, ममता ने डायरेक्ट बेनिफिट दिया
पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुमन भट्टाचार्य ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में सभी मुद्दे BJP के हाथ से रेत की तरह निकले। बंगाल में BJP के कई मिनिस्टर हारे। निसिथ प्रमाणिक और सुभाष सरकार हारे गए। पांच साल में BJP ने ग्राउंड पर मेहनत नहीं की। वहीं, ममता बनर्जी ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर किया। लक्ष्मी भंडार में ममता ने महिलाओं के हाथ में पैसे रख दिए।’
सुमन ने कहा था कि BJP का सुवेंदु अधिकारी को पार्टी की कमान सौंप देना गलत फैसला था। सुवेंदु ने पार्टी में किसी की नहीं सुनी, बल्कि पार्टी को अपनी तरह से कंट्रोल करने की कोशिश की। यही वजह है कि प्रदेश में BJP प्रेसिडेंट की जिम्मेदारी संभाल रहे सुकांता मजूमदार का विनिंग मार्जिन कम हुआ। दिलीप घोष बर्धमान-दुर्गापुर सीट से चुनाव हार गए। सुवेंदु की करीबी अग्निमित्र पॉल भी हार गईं। वो सुवेंदु के गढ़ मेदिनीपुर सीट से चुनाव हारीं।’
भट्टाचार्य ने कांग्रेस और CPI(M) की परफॉर्मेंस पर कहा था कि ये कांग्रेस और CPI(M) का अंत नहीं है। उन्हें खुद को नए सिरे से खड़ा करना होगा। CPI(M) आज भी 1940 के दौर की बातें करता है। उन्हें इस दौर की मुश्किलों के बारे में सोचना होगा। अधीर रंजन अपने सिवाय किसी के लिए काम नहीं करते थे। उन्हें इस चुनाव में लोगों ने इसी का सबक सिखाया है। कांग्रेस को समझना होगा कि अधीर रंजन चौधरी से कमान लेने का समय आ गया है।