आपातकाल की कहानी,मीसा बंदियों की जुबानी:आपातकाल की पीड़ाओं की याद आती है तो आज भी कांप उठती है रूह

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टोंक:-टोंक तत्कालीन इंदिरा कांग्रेस सरकार के समय देश में लगाए गए आपातकाल की पीड़ाओं को झेल चुके मीसा बंदी आज भी उस समय दी गई पीड़ाओं को याद करते है तो उनकी रूह कांप उठती है। आपातकाल के खिलाफ देश मे शुरू किए गए आंदोलन की चिंगारी न सिर्फ टोंक में उठी बल्कि टोंक जिले के कई कांग्रेस विरोधी दलों के राजनेताओं को जेलों में डाल दिया था।राजस्थान में इमरजेंसी  आंदोलन में  टोंक की जेल मीसा बंदियों का प्रमुख केंद्र रही थी। इस जेल में टोंक के अलावा जयपुर .सवाईमाधोपुर जिले के लोगों को बंदी बनाया गया था। जिनको  काफी यातनाएं दी गई थी।टोंक की जेल में उस वक्त मीसा बंदियों को दिए जाने वाले खाना में जली रोटिया तथा दाल में कंकड होते थे।  आपातकाल को 48 वर्ष हो गए  लेकिन आज भी आपातकाल की चर्चा की जाती है तो मीसा बंदियों की आंखों में आपातकाल की पीड़ाओं का खौफ दिखाई देने लगता है। टोंक की जेल में बन्द रहे निवाई निवासी राज्य के पूर्व सरकारी मुख्य सचेतक महावीर प्रसाद जैन  का कहना है कि उनको निवाई बस स्टैण्ड से गिरफ्तार किया गया था। जिनकी गिरफ्तारी का कारण नगर पालिका में सरकार के खिलाफ बोलना था। महावीर प्रसाद जैन का कहना है कि टोंक की जेल में शुरुआत में जली रोटियां व पानी की तरह की दाल दी गई, लेकिन जब जेल प्रशासन से शिकायत की तो इस तरफ कोई ध्यान नही दिया तो जेल का गेट बंद करके  जेल में ही जेलर को नीम के पेड़ से बांध दिया। इतना ही नहीं  इमरजेंसी में विद्यार्थियों तक को जेल में डाल दिया था जिनको जेल से परीक्षा दिलाने के लिए भी आंदोलन किया था। जैन ने आपातकाल की पीड़ाओं का जिक्र करते हुए बताया कि  जहां मजबूत लोग थे, वहां कोई ज्यादा यातनाएं नहीं दी जाती थी। जेलर को पेड़ से बांधने की घटना के बाद उनको अजमेर जेल में शिफ्ट किया गया। आपातकाल में सरकार के खिलाफ बोलना ही सबसे बड़ा अपराध  था, हालात इतने खराब थे कि रेलवे स्टेशन सहित कई भी परिवार कल्याण की गाडी दिखती थी, वैसे ही लोग थालियां बजाकर एक -दूसरे को सूचना देते थे कि नसवन्दी के लिए गाड़ी आ गई। उन्होनें बताया कि राज्य की कई जेलों में 17 महीने आपातकाल में बिताए। पुरानी टोंक निवासी श्याम बाबू नामा ने बताया कि उस वक्त  मीडिया की आजादी पर भी रोक लगा दी गई थी मीडिया पर सेंसरशिप लागू होने के कारण अखबार में वहीं छपता था, जो सरकार चाहती थी। उन्होंने बताया कि कोई भी जेल में पत्र आता था तो कोड वर्ड में होता था, क्योंकि सम्बधित व्यक्ति  को देने से पहले जेल प्रशासन इन पत्रों को खोल  करके पढ़ा जाता था जिसके  बाद दिया जाता था। आपातकाल में टोंक की जेल गए ताज कॉलोनी निवासी गोपाल पटवारी का कहना है कि टोंक जेल में बंद मीसा बंदियों के बाद वह अपने सहयोगियों के साथ  घंटाघर से सत्याग्रह करते हुए कोतवाली टोंक पहुंच करके गिरफ्तारियां दी थी, उस समय सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ आंदोलन को देखने के लिए बाजारों की छतों पर भीड़ जमा हो गई थी। उन्होंने बताया कि  कोतवाली में हवालात में शौच के लिए  भी हथकड़ी डाल करके दो  बंदियों को  ले जाया जाता था। पटवारी ने बताया कि कोर्ट में माफीनामा लिखने के लिए कहा गया लेकिन वह राजी नही हुए तो उनको जेल भेज दिया। जेल में टोंक, जयपुर व सवाईमाधोपुर के 100 कार्यकर्ता बन्द थे। गांधी पार्क टोंक निवासी स्वर्गीय रामरतन बुन्देल की धर्मपत्नी भगवती देवी ने बताया कि उस वक्त चारों तरफ डर व भय तथा ख़ौफ़ का माहौल था। लोग एक- दूसरे से बात तक नही कर पाते थे।उन्होंने 1975की इमरजेंसी को लोकतंत्र का काला अध्याय बताते हुए कहा कि उनके पति ने तो आपातकाल मेें अपनी कॉलेज की सरकारी नौकरी तक को छोड़ दिया था। बुंदेल ने भी आपातकाल के समय 19 महीने की जेल काटी थी। इतना ही नही विपक्षी दलों के नेताओ व संघ के स्वंयसेवकों को जेल में डाल दिया गया था। आपातकाल में टोंक जिले के फूलेता निवासी तत्कालीन  माकपा जिला संयोजक राजराजेश्वर सिंह ने इमरजेंसी का विरोध करते हुए इंदिरागांधी को पत्र लिखा तो  पुलिस ने उनको गिरफ्तार करके टोंक ले आईे तथा मकान को सीज करके परिवार वालों को भी बाहर निकाल दिया था। आपातकाल में टोंक जिले के टोडारायसिंह से विधायक रहे पूर्व मंत्री नाथूसिंह गुर्जर व टोंक जिले के कुछेक विद्यार्थी सहित 30 छात्रों ने बीए फाइनल की परीक्षा भी जयपुर जेल की बैरक में रह करके ही महाराजा कॉलेज में  दी थी। जयपुर जेल में बंद रहे टोंक के विद्यर्थियों का कहना है कि उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत, पूर्व मंत्री स्वर्गीय भंवरलाल शर्मा, कैलाश मेघवाल, जेसै कई दिग्गज लोग शामिल थे।