सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्तियों के कैशलेस इलाज की योजना को लागू न करने पर केंद्र सरकार को लगाई फटकार

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि सड़क दुर्घटना में घायलों के लिए प्रस्तावित कैशलेस इलाज योजना को अब तक लागू न किया जाना गंभीर लापरवाही है। कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक शीर्ष अधिकारियों को तलब नहीं किया जाता, तब तक सरकार अदालत के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेती।

अधिकारियों को 28 अप्रैल को पेश होने का आदेश

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव समेत वरिष्ठ अधिकारियों को 28 अप्रैल को कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल को ‘हिट एंड रन’ मामलों में क्लेम से जुड़ी ताजा रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है।

अदालत ने पहले 8 जनवरी को सरकार को मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 162(2) के तहत 14 मार्च तक योजना लागू करने का निर्देश दिया था। यह मामला डॉ. एस. राजशेखरन द्वारा दाखिल की गई याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने कैशलेस इलाज योजना को लागू करने की मांग की थी।

क्या है कैशलेस इलाज योजना?

सड़क परिवहन मंत्रालय ने 14 मार्च 2024 को इस योजना का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसके तहत दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक का कैशलेस इलाज मिल सकता है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 7 जनवरी 2025 को इसे जल्द ही पूरे देश में लागू करने की घोषणा की थी।

यदि इलाज का खर्च डेढ़ लाख से अधिक होता है, तो अतिरिक्त राशि मरीज या उसके परिजन को खुद वहन करनी होगी। इस योजना के तहत इलाज की रकम का भुगतान NHAI (नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया) करेगी।

‘गोल्डन ऑवर’ के दौरान इलाज जरूरी

विशेषज्ञों के अनुसार, दुर्घटना के बाद का पहला घंटा यानी ‘गोल्डन ऑवर’ इलाज के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण होता है। समय पर चिकित्सा न मिलने से जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। यह योजना इसी समस्या से निपटने के लिए लाई गई है।

दुर्घटनाओं के आंकड़े और खर्च का अनुमान

भारत में 2023 में करीब 1.5 लाख लोग सड़क हादसों में मारे गए, जबकि 2024 के पहले 10 महीनों में ही यह संख्या 1.2 लाख तक पहुंच गई थी। इनमें से 30-40% लोगों की मौत समय पर इलाज न मिलने के कारण हुई।

एक औसत सड़क हादसे में इलाज पर 50 हजार से 2 लाख रुपये तक का खर्च आता है, जबकि गंभीर मामलों में यह 5-10 लाख रुपये तक पहुंच जाता है। सरकार का अनुमान है कि इस योजना से हर साल करीब 10 हजार करोड़ रुपये का वित्तीय भार पड़ेगा।

सरकार पर अदालत का सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर अगली सुनवाई तक कैशलेस इलाज योजना में कोई प्रगति नहीं दिखी, तो अवमानना का नोटिस जारी किया जाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि जब तक शीर्ष अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में नहीं बुलाया जाएगा, तब तक वे संवेदनशील मामलों को गंभीरता से नहीं लेंगे।