जयपुर:-छतीसगढ़ पर आश्रित राजस्थान की 4350 मेगावाट क्षमता के चार विद्युत संयत्रों में कोयले की आपूर्ति के लिए सरगुजा जिले के ग्रामीण एकजुट हो गए हैं। उन्होंने पिछले दिनों दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री सहित उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा है। हालांकि की यह पत्र उन्होंने अपने यहां की खदानों में उत्पादन बंद होने से उत्पन्न रोजगार के खतरों के उद्देश्य से लिखा है लेकिन इसका दूसरा पहलू राजस्थान में कोयले की कमी से गहराने वाले बिजली संकट को भी दूर करना है।
राजस्थान सरकार के 4350 मेगावॉट के ताप विद्युत उत्पादन संयंत्रों के लिए केंद्र सरकार द्वारा सन् 2007 में ही सरगुजा जिले में तीन कोयला ब्लॉक परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी), परसा और केते एक्सटेंशन आवंटित किया गया था। जिनमें से पीईकेबी कोयला ब्लॉक के कुल 1898 हेक्टेयर के डाइवर्टेड वन भूमि में खनन कार्य दो चरणों में करने की अनुमति राज्य और केंद्र के मार्गदर्शन में करना तय किया गया था। वर्तमान में पीईकेबी खदान से कोयले की आपूर्ति हो रही जो की पुरे प्लांट में मानक स्टॉक के बराबर कोयले की आपूर्ति नहीं कर पा रहा। वहीं दो अन्य ब्लॉक परसा और केते एक्सटेंशन में खनन का कार्य अब तक शुरू भी नहीं हो पाया है। यही वजह है की राजस्थान के बिजली घरों का अपना कोयला ब्लॉक होते हुए भी कोयले की आपूर्ति के लिए कोल इंडिया की कॉम्पनियों से निम्न स्तर का कोयला महंगे दामों में खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
इसके लिए दोनों कांग्रेस शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा कई बार पत्राचार और मुलाकात भी किया जा चुका है। अभी हालही की बात करें तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा मई 11, 2023 को छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर उनके राज्य में कोयले की वर्तमान में बढ़ती किल्लत को देखते हुए वर्ष 2023-24 में 91.21 हेक्टेयर भूमि का हस्तांतरण जल्द से जल्द कराने का अनुरोध किया गया है।
पत्र में सीएम गहलोत ने यह भी लिखा की जमीन के सौंपे जाने के बाद खनन के उसकी ऊपरी सतह हटाने में कम से कम दो महीने का वक्त लगता है वहीं बढ़ती गर्मी में बिजली की मांग के मद्देनजर राजस्थान के बिजली घरों में कोयले का भंडार कम आपूर्ति की वजह से गंभीर संकट का सबब बनता जा रहा है। वर्तमान में माइनिगं के लिए पीईकेबी कोल ब्लाक के दूसरे चरण में कुल 1136 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध करवाई गई। जिसमें वर्ष वार खनन हेतु आवश्यक कुल 134.84 हेक्टेयर वन भूमि में से 43.63 हेक्टेयर भूमि में खनन समाप्त होने की कगार पर है। जबकि गत वर्ष वन विभाग की स्वीकृती के बावजूद भी 91.21 हेक्टेयर भूमि खनन के लिए राज्य वन विभाग, छत्तीसगढ़ द्वारा अब तक उपलब्ध नहीं कराया जा सका है।
नतीजतन दोनों राज्यों में से एक को जहां करोड़ों के राजस्व का नुकसान के साथ स्थानीयों को बेरोजगार होना पड़ सकता है तो वहीं दूसरे की जनता को उच्च कीमत की बिजली खरीदने में मजबूर है।
छत्तीसगढ़ में मई 18, शुक्रवार को मुख्यसचिव अमिताभ जैन की अध्यक्षता में एक बैठक हुई। जिसमें कोयला सचिव अमृत लाल मीणा, राजस्थान प्रमुख शासन सचिव ऊर्जा भास्कर ए सावंत, निदेशक तकनीकी देवेंद्र श्रृंगी सहित कोयला मंत्रालय,, आरवीयूएनएलऔरछत्तीसगढ़ सरकार के अन्य अधिकारीगण उपस्थित हुए। प्रमुख शासन सचिव ऊर्जा भास्कर ए सावंत ने आरवीयूएन के बिजली घरों में कोयले की कमी की वजह से होने वाली समस्याओं के बारे में जानकारी दी।
सावंत ने पीईकेबी ब्लॉक के लिए 91.21 हेक्टेयर जमीन में पेड़ों के विदोहन और हस्तांतरण में देरी की बात कहते हुए आरवीयूएनएल के थर्मल पावर प्लांट पीईकेबी कोयला ब्लॉक के कोयले पर निर्भरता और कोयला खनन के लिए आवश्यक भूमि जल्द ही प्रदान करने का आग्रह किया। इसके अलावा घाटबर्रा गांव में ग्राम सभा आयोजित करने में देरी और स्थानीय ग्रामीणों के लाभ के लिए कोयला ब्लॉक के आसपास के क्षेत्र में प्रस्तावित 100 बिस्तरों का अस्पताल स्थापित करने के लिए चाही गई 4 हेक्टेयर सरकारी भूमि के आवंटन के मुद्दे में भी प्रकाश डाला गया। उन्होंने अनुरोध किया कि पीईकेबी कोयला ब्लॉक से निर्बाध कोयला आपूर्ति के लिए आवश्यक सहायता तथा कदम शीघ्र उठाए जाएं ताकि निगम के ताप विद्युत गृहों को कोयले की आपूर्ति निर्बाध हो सके।