बाइडेन G20 समिट के लिए भारत पहुंचे:PM मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे;छोटे परमाणु रिएक्टरों पर समझौता संभव

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नई दिल्ली:-अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 3 दिन के दौरे पर भारत आ गए हैं। वे दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर लैंड हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति थोड़ी देर में PM आवास पर मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे।

अमेरिका के NSA जेक सुलिवन ने बताया कि इस दौरान दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा होगी। इस दौरान छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों पर समझौता हो सकता है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच GE जेट इंजन डील पर भी बात आगे बढ़ सकती है।

साथ ही दोनों नेताओं के बीच रूस-यूक्रेन जंग पर बातचीत होगी। इस दौरान इकोनॉमिक और सोशल लेवल पर जंग के असर को कम करने पर चर्चा की जाएगी। व्हाइट हाउस के मुताबिक मोदी-बाइडेन गरीबी से लड़ने के लिए वर्ल्ड बैंक सहित दूसरे मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक की क्षमता बढ़ाने और कई दूसरे ग्लोबल चैलेंज पर भी बात करेंगे।

बाइडेन भारत आने वाले अमेरिका के 8वें राष्ट्रपति होंगे। खास बात ये है कि भारत की आजादी के शुरुआती 50 साल में केवल 3 अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे। वहीं, पिछले 23 सालों में ये किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का छठा दौरा होगा।

जानिए पिछले 77 सालों में किस तरह बदले भारत-अमेरिका के रिश्ते …

ड्वाइट आइजनहावर (दिसंबर 1959)
ड्वाइट आइजनहावर भारत का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। दौरा ऐसे वक्त पर हुआ था जब भारत भयंकर सूखे से उबर रहा था और देश में महंगाई अपने चरम पर थी। इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन और फॉरेन एक्सचेंज बेहद कम था।

दूसरी तरफ दुनिया में चल रहे शीत युद्ध के बीच भारत ने अमेरिका और सोवियत यूनियन, दोनों में किसी का भी साथ नहीं देने का फैसला किया था। वो उन 120 देशों में शामिल था, जिन्होंने 1961 में नॉन-अलाइंड मूवमेंट पर साइन किए थे।

हालांकि, दुनिया में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल से परे भारत अपनी सीमा पर चीन के साथ तनाव झेल रहा था। ऐसे में अमेरिका ने भारत को चीन के खिलाफ साथी के रूप में देखा। आइजनहावर की यात्रा के वक्त न्यू ऑर्लीन्स टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति और तत्कालीन PM नेहरू के बीच भारत-चीन सीमा विवाद पर चर्चा हुई थी।

वहीं सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल ने कहा था कि आइजनहावर से मुलाकात के बाद एक रात में भारत गुट-निरपेक्ष से पश्चिमी समर्थक बन गया। वहीं द मिनट न्यूज ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा था कि नेहरू अब चीन के खिलाफ एक्शन लेने के लिए तैयार हैं।

रिचर्ड निक्सन (अगस्त 1969)
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन भारत में सिर्फ 23 घंटे रुके थे। निक्सन पाकिस्तानी सपोर्टर थे और वो भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के खिलाफ थे। उस वक्त अमेरिका का मानना था कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। वो भारत को सोवियत संघ की कठपुतली मानते थे।

अल जजीरा के मुताबिक, रिचर्ड के इस दौरे का फोकस इंदिरा गांधी से रिश्ते सुधारना था। दरअसल, वो भारत और इंदिरा गांधी को लेकर कई मौकों पर रेसिस्ट कमेंट कर चुके थे। राष्ट्रपति बनने से पहले 1960 के दशक में जब निक्सन भारत आए थे तब नेहरू सरकार के सीनियर मिनिस्टर मोरारजी देसाई ने उनका स्वागत किया था।

देसाई ने निक्सन के लिए खाने में सिर्फ वेजिटेरियन डिश ही रखी थीं, जबकि निक्सन नॉन-वेज और अल्कोहल के खासा शौकीन थे। देसाई की खातिरदारी से नाराज होकर निक्सन भारत से चले गए थे। उनके दौरे में अगला स्टॉप पाकिस्तान था। यहां उनके स्वागत में कई तरह के गोश्त और दूसरी नॉन-वेज डिश रखी गई थीं। इससे निक्सन पाकिस्तान से और प्रभावित हो गए थे।

इसके बाद जब बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने पर 1971 में जंग हुई तो अमेरिका में रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति बन चुके थे। उन्होंने इस वॉर में पाकिस्तान का साथ दिया था।

जिमी कार्टर (जनवरी 1978)
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर 1978 में 3 दिन के दौरे पर भारत आए थे। वो हरियाणा में गुरुग्राम के एक गांव दौलतपुर नसीराबाद भी गए थे। इसके बाद से उस गांव का नाम कार्टरपुरी रख दिया गया था। उनके दौरे का मकसद 1971 की पाकिस्तान जंग और 1974 में पोखरण में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद बिगड़े दोनों देशों के रिश्तों को सुधारना था।

साल 1974 में भारत ने बिना किसी को भनक लगे राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था। जिससे अमेरिका नाराज हो गया था। इसके चलते भारत पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगाए गए थे। जब जिमी कार्टर 1978 में भारत आए तो उन्हें पूरा यकीन था कि वो भारत से NPT यानी नॉन प्रोलिफरेशन ट्रीटी पर साइन करवा लेंगे और हमेशा के लिए हमारे परमाणु हथियार हासिल करने का रास्ता बंद करवा देंगे। हालांकि, ऐसा नहीं हो पााया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बड़ी चालाकी से उनके सामने तीन शर्तें रख दी। उन्होंने कहा कि भारत NPT पर साइन कर देगा अगर दुनिया की सभी परमाणु शक्तियां भी ऐसा कर दें। दूसरी शर्त में उन्होंने कहा कि कोई भी परमाणु हथियार नहीं बनाएगा। तीसरी शर्त में उन्होंने कहा कि जितने देशों के पास परमाणु हथियार हैं अगर वो उन्हें खत्म कर देते हैं तो भारत भी कभी कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा।

बिल क्लिंटन (मार्च 2000)
परमाणु संधि NPT पर सहमति नहीं बनने के अगले 22 सालों तक कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति भारत नहीं आया। साल 2000 में इस ब्रेक को तोड़ते हुए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन अपनी बेटी के साथ 5 दिन के दौरे पर भारत आए थे। उनकी यात्रा का मकसद भारत और अमेरिका के रिश्तों को नए सिरे से लिखना था।

1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद ग्लोबल पॉलिटिक्स में कई बदलाव आए थे। टाइम के मुताबिक, ग्लोबल फोरम में पाकिस्तान का साथ देने वाले अमेरिका ने पहली बार 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारत का साथ दिया था। जंग के खत्म होने के बाद 2000 में क्लिंटन भारत आए।

अटल बिहारी वाजपेयी के अध्यक्षता में क्लिंटन का धूमधाम से स्वागत हुआ। भारत की संसद में उनकी स्पीच को भी काफी सराहना मिली। क्लिंटन सबसे ज्यादा दिनों तक भारत दौरे पर रहने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बने। इसी भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीति शुरू की थी, जिसने विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोल दिए। यह अमेरिका और भारत के बीच व्यापार संबंधों को भी एक बड़ा बढ़ावा था।

जॉर्ज बुश (मार्च, 2006)
क्लिंटन के दौरे के 6 साल बाद राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भारत आए थे। इसी यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट हुआ था। इसके बाद भारत इकलौता ऐसा देश बन गया जो न्यूक्लियर प्रॉलिफेरेशन ट्रीटी का हिस्सा नहीं होने के बावजूद न्यूक्लियर ट्रेड करने वाला देश बन गया। इस अग्रीमेंट के तहत भारत ने अमेरिका की 2 शर्तें मानी थीं।

पहली- भारत अपनी नागरिक और सैन्य परमाणु गतिविधियों को अलग-अलग स्थापित करेगा। दूसरी- न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी IAEA भारत के परमाणु केंद्रों की निगरानी करेगी। इसके बदले अमेरिका ने भारत पर न्यूक्लियर ट्रेड को लेकर लगे बैन को हटा दिया।

2008 में न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप ने अमेरिका के कहने पर भारत को परमाणु व्यापार के लिए विशेष छूट देने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद बुश और तत्कालीन PM मनमोहन सिंह ने न्यूक्लियर डील पर ऑफिशियली साइन किया था।

बराक ओबामा (नवंबर, 2010 और जनवरी, 2015)
बराक ओबामा इकलौते ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो 2 बार भारत दौरे पर आ चुके हैं। 2010 में भारत यात्रा के दौरान ओबामा ने यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) में भारत की परमानेंट मेंबरशिप का समर्थन किया। इसके अलावा दोनों देशों के बीच 10 अरब डॉलर की ट्रेड डील भी हुई थी। साथ ही डिफेंस और नेशनल सिक्योरिटी को लेकर कई समझौते हुए थे।

दूसरी बार ओबामा 2015 में रिपब्लिक डे पर बतौर चीफ गेस्ट शामिल हुए थे। शुरुआती दौर में ये यात्रा काफी अच्छी रही थी। लोगों को संबोधित करते हुए ओबामा ने हिन्दी शब्दों का इस्तेमाल किया था, जो भारत के लोगों को काफी पसंद आया था।

हालांकि, बाद में उन्होंने कहा था कि भारत तब तक सफल रहेगा जब तक वो धर्म के आधार पर भी जुड़ा रहेगा। अमेरिका लौटने पर भी उन्होंने भारत की एकता पर सवाल उठाए थे। इसके बाद उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।

डोनाल्ड ट्रम्प (फरवरी 2020)
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फरवरी 2020 में 2 दिन के दौरे पर भारत आए थे। इस दौरान वो 3 शहर गए थे। इनमें अहमदाबाद, आगरा और नई दिल्ली शामिल थे। ट्रम्प की भारत दौरे की शुरुआत अहमदाबाद से हुई थी, जिसे नमस्ते ट्रम्प नाम दिया गया था।

ट्रम्प अमेरिका में लोगों को दिखाना चाहते थे कि वह विदेशों में बेहद लोकप्रिय हैं। वो इस दौरे के जरिए अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को भी लुभाना चाहते थे। यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका चीन के खिलाफ एक बार फिर साथ आए थे। ट्रम्प ने भारत में अपनी स्पीच और जॉइंट स्टेटमेंट्स के दौरान इंडो-पैसिफिक में शांति और क्वाड जैसे मुद्दों को भी उठाया था, जिसका कॉमन पॉइंट चीन रहा है।

2017 में डोकलाम विवाद के वक्त अमेरिका ने भारत का साथ दिया था। ट्रम्प से मुलाकात के दौरान दोनों देशों में कई रक्षा सौदे हुए। उनकी यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 3 अरब डॉलर की डिफेंस डील हुई थी। भारत ने अमेरिका से 24 MH-60 रोमियो हेलीकॉप्टर सहित 6 AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर खरीदने का समझौता किया था।