सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना को देश के 51वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ दिलाई गई है। सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में यह शपथ दिलाई। इससे पहले, 10 नवंबर को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल समाप्त हो गया।
जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा होगा, क्योंकि वह 64 वर्ष की आयु में महज छह महीने के लिए इस पद पर आसीन हुए हैं। उनका कार्यकाल 13 मई 2025 तक चलेगा। सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपने करियर के दौरान जस्टिस खन्ना ने 65 महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं और 275 से अधिक बेंचों का हिस्सा रहे हैं।
परिवार से मिली कानूनी विरासत
जस्टिस संजीव खन्ना का कानूनी परिवार से गहरा संबंध है। उनके पिता, देवराज खन्ना, दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे हैं, जबकि उनके चाचा, जस्टिस हंसराज खन्ना, सुप्रीम कोर्ट के सम्मानित जज थे। जस्टिस हंसराज खन्ना ने 1975-77 के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ विरोध जताया था, जिसके कारण उन्हें चीफ जस्टिस का पद नहीं मिला और इसके विरोध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया था। बाद में, जस्टिस हंसराज खन्ना को सरकार में तीन दिन के लिए कानून मंत्री भी नियुक्त किया गया था।
कानूनी शिक्षा और करियर
जस्टिस संजीव खन्ना ने 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की डिग्री हासिल की और इसके बाद दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में वकालत शुरू की। वह दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसल भी रहे, जहां उन्होंने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और दीवानी मामलों में सरकारी वकील के रूप में कार्य किया। 2005 में उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाया गया, जहां उन्होंने 13 साल तक अपनी सेवाएं दीं। 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया, हालांकि उनका यह प्रमोशन भी विवादों में रहा था।
जस्टिस खन्ना के प्रमुख फैसले और विवाद
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस खन्ना ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। इनमें आर्टिकल 370, इलेक्टोरल बॉन्ड और हाल ही में AMU से जुड़े फैसले शामिल हैं, जिसमें उन्होंने यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस देने के पक्ष में निर्णय दिया। इस वर्ष जुलाई में उन्होंने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली बेंच का हिस्सा बने।
जस्टिस खन्ना ने सेम सेक्स मैरिज के मामले में व्यक्तिगत कारणों से सुनवाई से खुद को अलग किया था, और कहा था कि वह इस मामले से संबंधित निर्णय में शामिल नहीं होना चाहते।
चीफ जस्टिस बनने की प्रक्रिया और परंपरा
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के माध्यम से होती है, जिसमें सबसे वरिष्ठ जज की नियुक्ति होती है। इस प्रक्रिया में केंद्र सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों को स्वीकार करना होता है। हालांकि, भारतीय न्यायिक प्रणाली में इस प्रक्रिया को लेकर कुछ विवाद भी रहे हैं, खासकर 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के गठन को लेकर, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था।
छोटे कार्यकाल में अहम मामले
जस्टिस खन्ना का कार्यकाल मात्र छह महीने का होगा, और इस दौरान उन्हें कुछ प्रमुख मामलों की सुनवाई करनी है। इनमें मैरिटल रेप, चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति, बिहार जातिगत जनसंख्या पर वैधता, सबरीमाला केस के रिव्यू और राजद्रोह (sedition) की संवैधानिकता जैसे महत्वपूर्ण मामले शामिल हैं।
संक्षेप में, जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल और उनके निर्णय भारतीय न्यायिक इतिहास में महत्वपूर्ण होंगे, और उनकी कानूनी विरासत भी देश के न्यायिक ढांचे को प्रभावित करने वाली है।