प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस और पाली को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने के समारोह में भाग लिया। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया युद्ध में नहीं बल्कि बुद्ध में समाधान ढूंढ सकती है। दुनिया को शांति के रास्ते पर चलने के लिए बुद्ध की शिक्षाओं से सीखना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब दुनिया अस्थिरता से जूझ रही है, बुद्ध का विचार न केवल प्रासंगिक है, बल्कि अत्यंत आवश्यक भी है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि हर देश अपनी संस्कृति को अपनी पहचान से जोड़ता है, लेकिन भारत इस मामले में पीछे रह गया है।
मोदी ने कहा कि स्वतंत्रता से पहले आक्रमणकारियों ने भारत की पहचान को मिटाने की कोशिश की, जबकि बाद में गुलाम मानसिकता से ग्रसित लोगों ने इस दिशा में कदम बढ़ाया। एक समूह ने देश पर नियंत्रण स्थापित किया, जिसने इसे अपनी विरासत के विपरीत दिशा में ले जाने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने को भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान बताया। उन्होंने कहा कि भाषा, सभ्यता और संस्कृति की आत्मा है, और पाली को जीवित रखना तथा बुद्ध के शब्दों को संरक्षित करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शरद पूर्णिमा और वाल्मीकि जयंती के अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने अभिधम्म दिवस पर भगवान बुद्ध के अनुयायियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह दिन विशेष महत्व रखता है।
मोदी ने बताया कि इसी महीने भारत सरकार ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है, और यह उनके लिए गर्व का विषय है कि उनकी सरकार ने इस जिम्मेदारी को निभाया है।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे जन्म के समय भगवान बुद्ध से जुड़ने की जो यात्रा शुरू हुई, वह आज भी जारी है।” उन्होंने कहा कि उनका जन्म गुजरात के वडनगर में हुआ, जो कभी बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
मोदी ने पिछले 10 वर्षों में भारत के ऐतिहासिक बौद्ध स्थलों और विभिन्न देशों में कार्यक्रमों में भाग लेने का अनुभव साझा किया। उन्होंने नेपाल में बुद्ध के जन्मस्थान का दौरा करने और मंगोलिया में उनकी प्रतिमा का अनावरण करने का भी उल्लेख किया।
शास्त्रीय भाषाएं ऐसी भाषाएं होती हैं जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं। केंद्र सरकार ने 2004 में ‘शास्त्रीय भाषा’ की एक श्रेणी स्थापित की थी, जिसके तहत भाषा के 1500 से 2000 साल पुराने प्रमाण होने आवश्यक हैं। इसके अलावा, उस भाषा में प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का संग्रह भी होना चाहिए।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 अक्टूबर को पाली के साथ-साथ मराठी, प्राकृत, असमिया और बंगाली को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मंजूरी दी।
तमिल 2004 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने वाली पहली भाषा थी। इसके बाद 2005 में संस्कृत को यह दर्जा दिया गया। इसके अतिरिक्त, तेलुगु, कन्नड, मलयालम और उड़िया को क्रमशः शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली।
मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग 2013 से लंबित थी, और इसे महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मंजूरी मिली है।