श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस में मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज:हाईकोर्ट हिंदू पक्ष की 18 याचिकाएं एक साथ सुनेगा,दावा-ईदगाह गर्भगृह की जमीन पर

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मथुरा:-मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (1 अगस्त) को यह फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर 18 याचिकाएं एक साथ सुनी जाएंगी।

जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया। हिंदू पक्ष की ओर से दायर याचिकाओं में दावा किया गया है कि शाही ईदगाह का ढाई एकड़ का एरिया मस्जिद नहीं है। वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि का गर्भगृह है।

वहीं, मुस्लिम पक्ष ने दलील दी थी कि 1968 में हुए समझौते के तहत मस्जिद के लिए जगह दी गई थी। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं। हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई लायक नहीं है। हालांकि, हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद मुस्लिम पक्ष की इस दलील को स्वीकार नहीं किया। अब 12 अगस्त से हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई होगी।

विष्णु जैन ने कहा-अब हम सबूत पेश करेंगे
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा- 25 सितंबर 2020 को पहली याचिका दायर हुई थी। 4 महीने सुनवाई हुई। आज हाईकोर्ट ने 18 याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना। अब इस केस में ट्रायल चलेगा। हम लोगों को मौका मिलेगा कि हम सबूत पेश कर सकें। अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी

पक्षकार बोले-अयोध्या की तरह मुस्लिम पक्ष केस लंबा खींचना चाहता था
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष और पक्षकार महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा- श्रीकृष्ण जन्मभूमि के इतिहास में आज का दिन मील का पत्थर साबित होगा। शुरू से ही शाही ईदगाह पक्ष के लोग रहे हों, या सुन्नी वक्फ बोर्ड के लोग… कहते रहें कि केस सुनवाई योग्य नहीं है। आज हाईकोर्ट द्वारा स्पष्ट कर दिया गया कि यह केस सुनवाई योग्य है। ये लोग (मुस्लिम पक्ष) लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट में केस को अयोध्या की तरह से लंबा खिंचना चाहते थे।

हिंदू पक्ष बोला- नियमों के खिलाफ शाही ईदगाह कमेटी को जमीन दी गई
हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल 18 याचिकाओं को शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने बहस के दौरान कहा- मथुरा कोर्ट में दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। मामला पूजा स्थल अधिनियम 1991 और वक्फ एक्ट के साथ लिमिटेशन एक्ट से बाधित है। इसलिए इस मामले में कोई भी याचिका न तो दाखिल की जा सकती है और न ही उसे सुना जा सकता है।

हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया- इस मामले पर न तो पूजा स्थल अधिनियम का कानून और न ही वक्फ बोर्ड कानून लागू होता है। शाही ईदगाह परिसर जिस जगह मौजूद है वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन है। समझौते के तहत मंदिर की जमीन शाही ईदगाह कमेटी को दी गई, जो नियमों के खिलाफ है।

अब पढ़िए हिंदू और मुस्लिम पक्ष के तर्क…

हिंदू पक्षकारों के 11 तर्क

  • ढाई एकड़ में बनी शाही ईदगाह कोई मस्जिद नहीं है।
  • ईदगाह में केवल सालभर में 2 बार नमाज पढ़ी जाती है।
  • ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया भगवान कृष्ण का गर्भगृह है।
  • सियासी षड्यंत्र के तहत ईदगाह का निर्माण कराया गया था।
  • प्रतिवादी के पास कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
  • मंदिर तोड़कर मस्जिद का अवैध निर्माण किया गया है।
  • जमीन का स्वामित्व कटरा केशव देव का है।
  • बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति घोषित कर दी।
  • भवन पुरातत्व विभाग से संरक्षित घोषित है।
  • पुरातत्व विभाग (ASI) ने नजूल भूमि माना है। इसे वक्फ संपत्ति नहीं कह सकते।

मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें

  • समझौता 1968 का है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं। मुकदमा सुनवाई लायक नहीं।
  • प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत मुकदमा आगे ले जाने के काबिल नहीं है।
  • 15 अगस्त 1947 वाले नियम के तहत जो धार्मिक स्थल जैसा है वैसा रहे, उसकी प्रकृति नहीं बदल सकते।
  • लिमिटेशन एक्ट, वक्फ अधिनियम के तहत इस मामले को देखा जाए।
  • वक्फ ट्रिब्यूनल में सुनवाई हो, यह सिविल कोर्ट में सुना जाने वाला मामला नहीं।

पिछली सुनवाई में क्या हुआ था
31 मई को 5 घंटे तक सुनवाई चली। इस दौरान शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। वकीलों ने मांग की कि मथुरा कोर्ट में दाखिल वाद को खारिज किया जाए। मामला सुनवाई योग्य नहीं है। हिंदू पक्षकारों के वकीलों ने इसका विरोध किया।

कोर्ट ने 31 मई को बहस पूरी होने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था, लेकिन मुस्लिम पक्ष से वकील महमूद प्राचा ने सुनवाई के अधिकार की मांग की। इसे स्वीकार कर 6 जून को भी मामला सुना गया। तब भी फैसला सुरक्षित रख लिया गया। 30 मई को हुई सुनवाई में हिंदू पक्ष ने अपनी बहस पूरी की थी।

इसके बाद 1 अगस्त को मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलील पेश की। मुस्लिम पक्ष ने मुकदमे की पोषणीयता, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, लिमिटेशन एक्ट, वक्फ अधिनियम जैसे बिंदुओं पर अपनी बात रखी।

पक्षकार महेंद्र प्रताप बोले- अयोध्या की तरह मुस्लिम पक्ष केस लंबा खींचना चाहता था
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष और पक्षकार महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा- श्रीकृष्ण जन्मभूमि के इतिहास में आज का दिन मील का पत्थर साबित होगा। शुरू से ही शाही ईदगाह पक्ष के लोग रहे हों या सुन्नी वक्फ बोर्ड के लोग, ये कहते रहे कि केस सुनवाई योग्य नहीं है। आज हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया गया कि यह केस सुनवाई योग्य है। यह सनातन धर्म के लिए बहुत बड़ी जीत है। ये लोग केस को लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट में खींचना चाहते थे, जैसे अयोध्या मामले को यह लोग लंबा खींच ले गए थे।