मुंबई के वर्ली डोम में शुक्रवार को महाराष्ट्र की राजनीति का एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब करीब दो दशक बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक ही मंच पर नजर आए। राज्य में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किए जाने को लेकर शुरू हुए विवाद के बीच दोनों नेताओं की यह साझा रैली ‘मराठी एकता’ के नाम पर आयोजित की गई।
इस रैली को ‘विजय रैली’ नाम दिया गया है, जिसमें किसी राजनीतिक पार्टी का झंडा या बैनर नहीं लगाया गया। रैली में कांग्रेस और एनसीपी शामिल नहीं हुईं।
“हमारा एजेंडा सिर्फ मराठी” – राज ठाकरे
मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने मंच से कहा, “मैंने एक इंटरव्यू में कहा था कि झगड़े से बड़ा महाराष्ट्र है। 20 साल बाद हम एक साथ यहां खड़े हैं। हमारा कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं, सिर्फ महाराष्ट्र और मराठी एजेंडा है।”
राज ने चुटकी लेते हुए कहा, “जो बाला साहेब ठाकरे नहीं कर पाए, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया, हमें एक कर दिया। आपके पास विधान भवन में ताकत है, लेकिन हमारे पास सड़कों पर ताकत है।”
रैली की पृष्ठभूमि और विवाद का कारण
दरअसल, अप्रैल 2025 में महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने के दो आदेश जारी किए थे। इन आदेशों का राज्य के मराठी और अंग्रेजी मीडियम दोनों स्कूलों पर असर पड़ना था।
इस फैसले का विपक्षी दलों, खासकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने विरोध किया था। इसके बाद दोनों नेताओं ने 5 जुलाई को संयुक्त रूप से एक विरोध रैली का ऐलान किया था।
हालांकि विवाद बढ़ने के बाद 29 जून को राज्य सरकार ने ये दोनों आदेश रद्द कर दिए। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने 5 जुलाई की प्रस्तावित रैली को ‘विजय रैली’ में बदलने की बात कही थी।
क्या है विवाद की जड़?
- महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य कर दिया था।
- इस फैसले के तहत राज्य के सभी स्कूलों में हिंदी पढ़ाना जरूरी कर दिया गया था, चाहे वे मराठी माध्यम के हों या अंग्रेज़ी माध्यम के।
- विरोध के बाद सरकार ने नई गाइडलाइंस जारी कीं, जिनमें छात्रों को हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं को भी तीसरी भाषा के रूप में चुनने की अनुमति दी गई।
- शर्त यह है कि कम से कम 20 छात्र यदि किसी अन्य भाषा को चुनते हैं, तो स्कूल को उस भाषा का शिक्षक उपलब्ध कराना होगा, अन्यथा पढ़ाई ऑनलाइन माध्यम से की जाएगी।
राजनीतिक और सामाजिक संकेत
इस रैली को महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रतीकात्मक मोड़ माना जा रहा है, जहां ठाकरे परिवार के दो धड़ों ने भाषा और पहचान के मुद्दे पर एकजुटता दिखाई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह रैली राज्य में मराठी अस्मिता को लेकर एक नई बहस की शुरुआत कर सकती है।