नई दिल्ली:-संसद के विशेष सत्र का बुधवार 20 सितंबर को तीसरा दिन है। लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) पर वोटिंग शुरू हो गई है। वोटिंग पर्ची से हो रही है। इसमें भाग लेने के लिए पीएम मोदी सदन में पहुंच गए हैं।
इससे पहले डिबेट का जवाब देने अमित शाह ने कहा- संविधान के संशोधित करने वाले 128वें संशोधन पर बात करने के लिए मैं यहां खड़ा हूं। ये कहते ही विपक्ष का हंगामा शुरू कर दिया। इस पर शाह मुस्कुराते हुए राहुल गांधी की तरह बोले- डरो मत।
शाह ने कहा- चुनाव के बाद तुरंत ही जनगणना और डिलिटिटेशन होगा और महिलाएं की भागीदारी जल्द ही सदन में बढ़ेगी। विरोध करने से रिजर्वेशन जल्दी नहीं आएगा।
शाह ने कहा- महिला आरक्षण बिल युग बदलने वाला विधेयक है। कल का दिन भारतीय संसद के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा। कल नए सदन का पहली बार श्री गणेश हुआ, कल गणेश चतुर्थी थी और पहली बार कई सालों से लंबित पड़े बिल को पास किया गया। देश में एससी-एसटी के लिए जितनी सीटें आरक्षित हैं, उनमें से भी 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।
कुछ लोगों के लिए महिला सशक्तीकरण चुनाव जीतने का मुद्दा हो सकता है, लेकिन मेरी पार्टी और मेरे नेता मोदी के लिए यह मुद्दा राजनीति नहीं, बल्कि मान्यता का मुद्दा है। मोदी ने ही भाजपा में महिलाओं को पार्टी पदों पर 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाया।
PM मोदी को देश की जनता ने CM के बाद प्रधानमंत्री बनाया। 30 साल बाद उनके नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की भाजपा की सरकार बनाई। उस समय फिर जाहिर सी बात है कि PM मोदी ने CM के पद से इस्तीफा दिया। उस समय मोदी के एकाउंट में जितना भी पैसा था, उन्होंने वर्ग 3 के कर्मचारियों और बेटियों के खाते में अपना पैसा भेज दिया था।
आज दुनियाभर में विमान उड़ाने वाली महिलाओं की संख्या 5% है। भारत की इन महिलाओं की संख्या 15% है। यही महिला सशक्तीकरण है।
शाह बोले- पहली बार ये संविधान संशोधन नहीं आया। देवेगौड़ा जी से लेकर मनमोहन जी तक चार बार प्रयास हुए। क्या मंशा अधूरी थी? सबसे पहले इस पर प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के समय 12 सितंबर 1996 में संविधान संशोधन आया। कांग्रेस इस समय विपक्ष में थी। विधेयक को सदन में रखने के बाद गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में समिति को दे दिया गया, लेकिन विधेयक सदन तक पहुंच ही नहीं पाया।
जब 11वी लोकसभा आई तो विधेयक लैप्स हो गया। इसके बाद 12वीं लोकसभा अटल बिहारी वाजपेयी के समय बिल आया, लेकिन ये विलोपित हो गया। 13वीं लोकसभा में अटल जी के समय फिर बिल आया, लेकिन अनुच्छेद 107 के तहत बिल विलोपित हो गया।
इसके बाद मनमोहन सिंह बिल लेकर आए, लेकिन बिल विलोपित हो गया। शाह ने कहा कि कोई पुराना बिल जीवित नहीं है। लोकसभा जब विघटित हो जाती है तो लंबित विधेयक विलोपित हो जाते हैं।
शाह ने राहुल के आरोपों का जवाब देते हुए कहा- देश को सेक्रेटरी नहीं सरकार चलाती है। कैबिनेट चलाती है। हमारी पार्टी के 85 सांसद OBC समुदाय से आते हैं। 29 मंत्री भी इसी समुदाय के हैं। सस्ते वादे करना तो कांग्रेस पार्टी का काम है। भाजपा तो काम करके देखती है। भाजपा के विधायक में भी OBC की भागीदारी ज्यादा है, लेकिन कांग्रेस इस बात का जिक्र नहीं करेगी
राहुल ने कहा- सरकार चलाने वाले 90 में से सिर्फ 3 सेक्रेटरी OBC,इसे बदलें
शाह से पहले राहुल गांधी ने कहा कि मैं महिला आरक्षण बिल के समर्थन में हूं, लेकिन ये अधूरा है। जब सांसदों को पुरानी संसद से नई संसद में ले जाया जा रहा था तो राष्ट्रपति को मौजूद होना चाहिए था।
हमारे इंस्टीट्यूशंस में OBC की भागीदारी कितनी है, मैंने इसकी रिसर्च की। सरकार चलाने वाले जो 90 सेक्रेटरी हैं, उनमें से तीन सिर्फ 3 ही OBC से हैं। इसे जल्दी से जल्दी बदलिए। ये OBC समाज का अपमान हैं।
राहुल के बोलने के दौरान सांसदों ने हंगामा किया तो वे बोले- डरो नहीं। देश की आजादी की लड़ाई महिलाओं ने भी लड़ी थी। महिला आरक्षण बिल पर बिल्कुल भी देरी नहीं करना चाहिए और इसे आज से ही लागू कर देना चाहिए।
ओम बिड़ला ने इस दौरान उन्हें टोकते हुए कहा- मैं राहुल गांधी से अपील करता हूं कि सदन में सभी सदस्य बराबर हैं। इसलिए उन्हें ‘डरो मत डरो मत नहीं कहें।
सबसे पहले कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने सदन को बिल के बारे में बताया। उनके बाद कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी ने 10 मिनट तक अपनी बात कही। चर्चा के दौरान TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने मुस्लिम महिलाओं को भी आरक्षण देने की मांग की। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने महुआ मोइत्रा का नाम लिए बगैर कहा- मुस्लिम आरक्षण मांगने वालों को मैं बताना चाहती हूं कि संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण वर्जित है। जिस प्रकार से विपक्ष भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है, उसमें ना फंसें।
सोनिया बोलीं- तुरंत अमल में लाएं, सपा-एनसीपी की ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण की मांग सोनिया ने कहा, ‘कांग्रेस की मांग है कि बिल को फौरन अमल में लाया जाए। सरकार को इसे परिसीमन तक नहीं रोकना चाहिए। इससे पहले जातिगत जनगणना कराकर इस बिल में SC-ST और OBC महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए।’
NCP सांसद सुप्रिया सुले और SP सांसद डिंपल यादव ने भी बिल में OBC महिलाओं को आरक्षण देने की मांग की। सुप्रिया ने कहा कि सरकार बड़ा दिल करके बिल में SC, ST और OBC महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करे। वहीं, SP सांसद डिंपल यादव ने कहा कि बिल में OBC और अल्पसंख्यक महिलाओं को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।
सोनिया बोलीं- महिला आरक्षण का बिल सबसे पहले राजीव लाए
सोनिया ने कहा, ‘स्थानीय निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने वाला कानून सबसे पहले मेरे पति राजीव गांधी लाए थे, जो राज्यसभा में 7 वोटों से गिर गया था। बाद में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने उसे पास करवाया। इसी का नतीजा है कि देशभर के स्थानीय निकायों में 15 लाख चुनी हुई महिला नेता हैं। राजीव का सपना अभी आधा ही पूरा हुआ है, यह बिल पास होने से सपना पूरा हो जाएगा।
इस पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि ये सिर्फ PM मोदी का बिल है, जिसने गोल किया, नाम उसी का होता है। हमारे प्रधानमंत्री और हमारी पार्टी ये बिल लेकर आई है तो इनके पेट में दर्द हो रहा है।
सुप्रिया सुले बोलीं- देश में बाढ़ आ रही, स्पेशल सेशन क्यों बुलाया?
सुप्रिया सुले ने कहा कि महाराष्ट्र के पूर्व भाजपा प्रमुख ने मुझसे टीवी पर कहा था कि सुप्रिया सुले तुम घर जाओ, खाना बनाओ। देश कोई और चला लेगा। भाजपा इस पर जवाब दे।
उन्होंने कहा कि जनगणना और परिसीमन होने तक महिला आरक्षण को लागू नहीं किया जा सकता। फिर इसके लिए स्पेशल सेशन क्यों बुलाया गया। इसे विंटर सेशन में भी पास कर सकते थे। देश के कई हिस्सों में बाढ़ आ रही है, इस समय सेशन बुलाने की क्या जरूरत है।
TMC सांसद ने पूछा- बृजभूषण सिंह पर एक्शन क्यों नहीं
TMC सांसद काकोली घोष ने कहा, ‘देश में सिर्फ पश्चिम बंगाल में महिला CM है, भाजपा की 16 राज्यों में सरकार है, लेकिन एक भी राज्य में महिला CM नहीं है। देश के लिए मेडल जीतने वाली महिलाओं का सेक्सुअल हैरेसमेंट किया गया। आरोपी बृजभूषण सिंह आज संसद में बैठे हैं। भाजपा उनके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लेती।’
उधर, JDU के सांसद ललन सिंह ने कहा कि ये 2024 का चुनावी जुमला है। I.N.D.I.A गठबंधन से सरकार घबरा गई और ये बिल लेकर आई। इनकी मंशा सही होती तो 2021 में जनगणना शुरू करवा दी होती। इससे अब तक जनगणना पूरी हो जाती और महिला आरक्षण 2024 से पहले लागू हो जाता।
विशेष सत्र के तीसरे दिन के बड़े अपडेट्स…
- RJD, JDU, SP और BSP समेत कई विपक्षी पार्टियों ने ओबीसी महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने की मांग की है।
- भाजपा नेता उमा भारती और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी OBC महिलाओं के लिए भी कोटा तय करने की मांग की है।
- AAP सांसद संजय सिंह ने इस बिल को ‘महिला बेवकूफ बनाओ’ बिल बताया है। उन्होंने कहा कि इसे 2024 से पहले लागू करना चाहिए।
- कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी और पी चिदंबरम ने इस बिल को केंद्र सरकार का जुमला बताया।
- टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि इस 17वीं लोकसभा में सिर्फ दो मुस्लिम महिला सांसद हैं और दोनों हमारी पार्टी से हैं। भाजपा जो बिल लाई है, वो असल में विमेंस रिजर्वेशन रीशेड्यूलिंग बिल है। असल में ममता बनर्जी ने महिलाओं के लिए 37% रिजर्वेशन की बात की थी। भाजपा वाले अगर कहते हैं कि मोदी है तो मुमकिन है तो महिलाओं को 37% आरक्षण देकर दिखाए, वो भी जल्द से जल्द।
- असदुद्दीन ओवैसी ने इसे एंटी मुस्लिम और एंटी OBC बिल बताया। उन्होंने कहा- मैं अमित शाह से पूछना चाहता हूं कि सदन में एक भी जैन महिला सदस्य क्यों नहीं है, जबकि गुजरात में उनकी संख्या अच्छी खासी है।
नई संसद में कामकाज के पहले दिन यानी 19 सितंबर को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) पेश किया गया। इस बिल के मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन लागू किया जाएगा।
लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये रिजर्वेशन 15 साल तक रहेगा। इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है। यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा। यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा।
परिसीमन के बाद ही लागू होगा बिल
नए विधेयक में सबसे बड़ा पेंच यह है कि यह डीलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। परिसीमन इस विधेयक के पास होने के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर होगा। 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले जनगणना और परिसीमन करीब-करीब असंभव है।
इस फॉर्मूले के मुताबिक विधानसभा और लोकसभा चुनाव समय पर हुए तो इस बार महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। यह 2029 के लोकसभा चुनाव या इससे पहले के कुछ विधानसभा चुनावों से लागू हो सकता है।
तीन दशक से पेंडिंग था महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव करीब 3 दशक से पेंडिंग है। यह मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने उठाया था। 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था।
तब सपा और राजद ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी। इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया। तभी से महिला आरक्षण बिल पेंडिंग है।
महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग की टाइम लाइन
1931: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान महिलाओं के लिए राजनीति में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। इसमें बेगम शाह नवाज और सरोजिनी नायडू जैसी नेताओं ने महिलाओं को पुरुषों पर तरजीह देने के बजाय समान राजनीतिक स्थिति की मांग पर जोर दिया।
संविधान सभा की बहसों में भी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। तब इसे यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि लोकतंत्र में खुद-ब-खुद सभी समूहों को प्रतिनिधित्व मिलेगा।
1947: फ्रीडम फाइटर रेणुका रे ने उम्मीद जताई कि भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की गारंटी दी जाएगी। हालांकि यह उम्मीद पूरी नहीं हुई और महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सीमित ही रहा।
1971: भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति का गठन किया गया, जिसमें महिलाओं की घटती राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डाला गया। हालांकि समिति के कई सदस्यों ने विधायी निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का विरोध किया, उन्होंने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का समर्थन किया।
1974: महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए महिलाओं की स्थिति पर एक समिति ने शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई थी।
1988: महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perpective Plan) ने पंचायत स्तर से संसद तक महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की। इसने पंचायती राज संस्थानों और सभी राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य करने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधनों की नींव रखी।
1993: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल सहित कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया है।
1996: एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। इसके तुरंत बाद, उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा भंग हो गई
1998: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने 12वीं लोकसभा में 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में विधेयक को फिर से पेश किया। इसके विरोध में एक राजद सांसद ने विधेयक को फाड़ दिया। विधेयक फिर से लैप्स हो गया, क्योंकि वाजपेयी सरकार के अल्पमत में आने के साथ 12वीं लोकसभा भंग हो गई थी।
1999: NDA सरकार ने 13वीं लोकसभा में एक बार फिर विधेयक पेश किया, लेकिन सरकार फिर से इस मुद्दे पर आम सहमति जुटाने में नाकाम रही। NDA सरकार ने 2002 और 2003 में दो बार लोकसभा में विधेयक लाया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों ने समर्थन का आश्वासन दिए जाने के बाद भी इसे पारित नहीं कराया जा सका।
2004: सत्ता में आने के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने साझा न्यूनतम कार्यक्रम (CMP) में अपने वादे के तहत बिल पारित करने की अपनी मंशा की घोषणा की।
2008: मनमोहन सिंह सरकार ने विधेयक राज्यसभा में पेश किया और 9 मई, 2008 को इसे कानून और न्याय पर स्थायी समिति को भेजा गया।
2009: स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और विधेयक को समाजवादी पार्टी, जेडीयू और राजद के विरोध के बीच संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया।
2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी। विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन सपा और राजद के UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकियों के बाद मतदान स्थगित कर दिया गया। 9 मार्च को राज्यसभा से महिला आरक्षण विधेयक को 1 के मुकाबले 186 मतों से पारित कर दिया गया। हालांकि, लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार विधेयक को पारित नहीं करा पाई।
2014 और 2019: भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया, लेकिन इस मोर्चे पर कोई ठोस प्रगति नहीं की।
संसद के विशेष सत्र में ये 4 बिल भी पेश होने हैं…
1. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) बिल, 2023: यह बिल चीफ इलेक्शन कमिश्नर (CEC) और अन्य इलेक्शन कमिश्नर (ECs) की नियुक्ति को रेगुलेट करने से जुड़ा है। बिल के मुताबिक आयुक्तों की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा। जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे।
2. एडवोकेट्स अमेंडमेंट बिल 2023: इस बिल के जरिए 64 साल पुराने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करना है। बिल में लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 को निरस्त करने का भी प्रस्ताव है।
3. प्रेस एवं रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल्स बिल 2023: यह बिल किसी भी न्यूजपेपर, मैग्जीन और किताबों के रजिस्ट्रेशन और पब्लिकेशंस से जुड़ा है। बिल के जरिए प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 को निरस्त कर दिया जाएगा।
4. पोस्ट ऑफिस बिल, 2023: यह बिल 125 साल पुराने भारतीय डाकघर अधिनियम को खत्म कर देगा। इस बिल के जरिए पोस्ट ऑफिस के काम को और आसान बनाने के साथ ही पोस्ट ऑफिस के अधिकारियों को अतिरिक्त पावर देने का काम करेगा।