भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि न्यायाधीश बनना महज 10 से 5 की नौकरी नहीं है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र की सेवा करने का अवसर है। यह बयान उन्होंने जजों के असभ्य व्यवहार को लेकर आ रही शिकायतों के संदर्भ में दिया।
मुंबई में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में CJI गवई ने कहा कि न्यायाधीशों को अपनी मर्यादा बनाए रखनी चाहिए। “हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे संस्था की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे, क्योंकि यह वर्षों की मेहनत, निष्ठा और समर्पण से बनी है।”
‘शपथ और कानून के प्रति रहना चाहिए सच्चे’
CJI ने कहा कि जजों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने विवेक, शपथ और कानून के मुताबिक कार्य करें। उन्होंने कहा, “किसी फैसले के बाद जज को विचलित नहीं होना चाहिए। उसे निष्पक्ष और निडर रहना चाहिए।”
CJI ने न्यायिक व्याख्या को व्यावहारिक बनाने की बात कही और कहा कि यह समाज की वर्तमान जरूरतों और पीढ़ी की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिए।
न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं होगा
जजों की नियुक्ति पर बोलते हुए CJI गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में नियुक्तियों के दौरान कॉलेजियम योग्यता, विविधता और समावेशिता को ध्यान में रखता है। “न्यायपालिका की स्वतंत्रता से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा।”
‘संविधान सर्वोपरि, न कि संसद’
इससे पहले, 25 और 27 जून को भी CJI ने लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका को लेकर अहम बयान दिए थे। उन्होंने कहा था कि संविधान भारतीय लोकतंत्र का सर्वोच्च दस्तावेज है और संसद इसकी सीमाओं को पार नहीं कर सकती। CJI ने न्यायिक सक्रियता को ज़रूरी बताया, लेकिन इसे न्यायिक आतंकवाद में बदलने की चेतावनी भी दी।
न्यायिक जिम्मेदारी की मिसाल
कार्यक्रम के दौरान CJI गवई को नागपुर जिला कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट में वकील और फिर जज के तौर पर सेवाएं देना उनके लिए गौरव की बात रही है। “जब लोग मेरे फैसलों की सराहना करते हैं, तो मुझे गर्व होता है।”
CJI गवई के इन बयानों को न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने और संवैधानिक संतुलन की दिशा में एक अहम हस्तक्षेप के तौर पर देखा जा रहा है।